ममता खोलेंगी नेताजी के राज: हटेगा गुमनामी बाबा से पर्दा

gumnami baba
सुशील सिंह
लखनऊ। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि अगले शुक्रवार को नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 64 फाइलें सार्वजनिक की जाएंगी। इस बयान के आने के बाद एक बार फिर लोगों का ध्यान फैजाबाद के गुमनामी बाबा की ओर चला गया है। अभी माना जाता रहा है कि फैजाबाद के रामभवन में रहने वाले गुमनामी बाबा ही सुभाष चन्द्र बोस थे। बाबा के पास से नेताजी से जुड़ी चीजें भी बरामद हुईं है जिनको यूपी सरकार भी जनता के सामने लाने के लिए प्रयासरत है। मालूम हो कि भारत की स्वतंत्रता के लिए आजाद हिंद फौज का नेतृत्व करने वाले सुभाष चंद्र बोस की मौत एक रहस्य बनी हुई है। इस मुद्दे पर फिर राजनीतिक हलकों और बुद्धिजीवियों के बीच तीखी बहस छिड़ हुई है।
आखिर नेताजी सुभाष किन परिस्थितियों में गायब हुए या फिर उनकी मौत हुई? क्यों कई जाने-माने लोग उनकी मौत की खबर पर भरोसा नहीं कर रहे हैं? गौरतलब है कि 1945 में 18 अगस्त को वह विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें सुभाषचंद्र बोस सवार बताए जाते थे, हालांकि नेताजी को लेकर कई विरोधाभासी बातें सामने आती रही हैं और उनसे जुड़ी गोपनीय जानकारी को सार्वजनिक करने की मांग उठती रही है। इसी कड़ी में फैजाबाद के गुमनामी बाबा ही तो कहीं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस नहीं थे, अगर वही थे तो उन्होंने क्यों अपना राज छुपाया। मामले की जांच के लिए तीन कमेटियां बनी, लेकिन अभी भी रहस्य बना हुआ है की क्या है गुमनामी बाबा का सच। ज्यादातर लोग मानते हैं विमान दुर्घटना में नेताजी सुभाष चंद्र बोस मारे गए, लेकिन वहां से कोई ऐसा ब्लैक बॉक्स नहीं मिला। उनकी मौत पर आज भी रहस्य बरकरार है, लेकिन एक और रहस्य है जो उससे भी बड़ा है। जिसकी शुरुआत होती अयोध्या के पश्चिमी कोने यानी फैजाबाद से, यहां के रामभवन के मालिक शक्ति सिंह के मुताबिक सुभाष चन्द्र बोस की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुयी। ताईवान की सरकार ऐसा शपथ पत्र भी दे चुकी है। अदालत के आदेश पर कई सबूत फैजाबाद के कोषागार में मौजूद हैं जो सच के बहुत करीब ले जा सकतें हैं।
कब फैजाबाद आये गुमानामी बाबा
शक्ति सिंह बताते हैं कि साल 1983 में किराये पर रहने यहां एक बाबा आये। जिनका नाम तो था भगवन, लेकिन तीन सालों तक उनका चेहरा कोई न देख सका। खास बात ये थी की कोलकाता से अक्सर मिलने वाले लोग आया जाय करते थे लेकिन तेईस जनवरी यानि नेता जी के जन्म की तारीख में लोगों आमद बढ़ जाती। उनके पास बंगाल से प्रकशित वहां के भाषा के अखबार और पात्रिकाएं आती। शक्ति सिंह बताते हैं की बाबा खुद का नाम भगवन बताते थे, बोलते काम थे, लेकिन जितना बोलते पूरे तर्क और ज्ञान के साथ थी शक्ति सिंह मकान के मालिक होते हुए भी उस छोठी सी कोठारी में रहने वाले बाबा के किरायेदार हो चुके थे। शक्ति बताते हैं कि धीरे धीरे फैजाबाद और आस पड़ोस के लोगों ने गुमनामी बाबा को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मानने लगे थे।
गुपचुप तरीके से हुआ था दाह संस्कार
शक्ति सिंह बताते हैं 16 सितम्बर 1985 को उनकी मौत हो गयी, जिनको कोलकाता से आये उनके शिस्यों ने यहां के गुप्तार घाट के पास अंतिम संस्कार कर दिया। बाद में जब उनके कमरे की तलाशी ली गयी तो वहां मिले सामानों ने शक्ति सिंह के परिवार को पुख्ता कर दिया की गुमनामी बाबा ही सुभाष चन्द्र बोस थे।
कई दुर्लभ चीजें भी मिलीं
शक्ति सिंह ने संस्कार स्थल पर बाद में एक समाधी बनायी। कमरे की तलाशी में कई दुर्लभ फोटो मिली जिसमें नेताजी और उनके करीबियों की तस्वीरें थी, नेताजी की रोलेक्स घड़ी जो जर्मनी में मिली थी। जापान की बनी ओमेगा रिस्ट वाच, उनके सात चश्मे, ढेर सारा बंगाली सहित्य और अखबार जो कलकत्ता से फैजाबाद सिर्फ उनके लिए आते थे , सुभाष चन्द्र बोस से जुड़ी हर खबर की कटिंग, जिन पर लिखी उनकी पंक्तिया, तमाम  टेलीग्राम , विदेशी साहित्य, डब किये कैसेट, ग्रामोंफोन, छोटा जर्मन टाइप राईटर। जिनकी बिना पर शक्ति सिंह के परिवार को यकीन हो गया की वो शख्सियत नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ही थे।  शक्ति बताते हैं इसकी जांच के लिए उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया तो अदलात ने सारा सामान सरकारी कोषागार में जमा करा दिया। तीन तीन कमेटियां इस मामले की जांच के लिए बनायीं गयी, लेकिन उनकी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गयी जैसे सच सामने लाने की मनाही हो दो साल पहले ही इलाहबाद हाईकोर्ट ने उनके सामान को संग्रहालय में रखने और सच सामने लाने के लिए एक रिटायर जज की कमिटी बनाने का आदेश दिया था। लेकिन न जाने क्यों अमल नहीं हुआ। अभी भी फैजाबाद के लोग गुप्तार घाट की उनकी समाधि पर इस भरोसे से जाते हैं की गुमानमी बाबा ही सुभाष चन्द्र बोस थे। करोड़ों रूपये की लागत से तैयार हुए अंतरराष्ट्रीय राम कथा केंद्र में राम के जीवन काल से जुड़ी हर एक छोटी बड़ी चीज विशेष रूप से सजाई जाने की योजना तैयार हो रही है। इसके साथ ही यहां पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन काल से जुड़ी अनेक चीजें होंगी। जहां पर यह चीजें सजाई जाएंगी उसका नाम गुमनामी बाबा का रहस्य होगा।
रामकथा में डिस्पले के जरिये बतायी जायेगी कहानी
अयोध्या के नवनिर्मित अंतरराष्ट्रीय रामकथा केंद्र में भगवान राम के साथ ही गुमनामी बाबा भी आकर्षण का केंद्र होंगे। यहां पर गुमनामी बाबा से जुड़ी करीब 2600 वस्तुएं दर्शकों को नेताजी सुभाषचंद्र बोस का आभास कराएंगी. एक तरफ राम की जीवनगाथा होगी, तो दूसरी तरफ गुमनामी बाबा का रहस्य लोगों को रोमांचित करेगा। हाई कोर्ट के आदेश पर इसके लिए शासन की हरी झंडी मिल गई है। अंतरराष्ट्रीय राम कथा केंद्र करीब 12 करोड़ रुपये की लागत से बनकर तैयार हुआ है। पहले चरण में यहां राम से जुड़ी चित्र कथाएं सजाई जाएंगी। इसी के साथ गुमनामी बाबा से जुड़ी वस्तुएं नेताजी सुभाषचंद्र बोस की यादें ताजा कराएंगी। गुमनामी बाबा से जुड़ी वस्तुएं कोषागार में रखी हैं। इसमें उनका चश्मा, घड़ी, चप्पल, जूते, रोजमर्रा के इस्तेमाल की वस्तुएं, देश-विदेश से आए टेलीग्राम, अंग्रेजी व बांग्ला भाषा के अखबार, शंख व अन्य सामान शामिल हैं। सुभाष चंद्र बोस विचार मंच का मानना है कि गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे। उन्होंने कई वर्ष अयोध्या के एक मंदिर में बिताये थे। मंच के मुताबिक 1985 में उनका निधन हो गया था, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के इशारे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस के परिवारीजन की खुफिया निगरानी कराई जाती थी, इस खुलासे से गुमनामी बाबा के नेताजी होने के दावे को और दम मिला है।