पिता ने दूध बेचकर सिखाई कुश्ती, विश्व चैंपियनशिप में जीता मेडल

narsingh yadav

वाराणसी। रेसलर नरसिंह यादव ने एक बार फिर देश के माथे पर जीत से तिलक किया है। लास वेगास में चल रही वल्र्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर 2016 में होने वाले रियो ओलिंपिक का टिकट भी हासिल कर लिया। उन्होंने 74 किलोग्राम फ्री स्टाइल कैटेगरी में ये मेडल जीता। वल्र्ड रेसलिंग चैंपियनशिप के जरिए ओलपिंक का टिकट कटाने वाले वो पहले इंडियन रेसलर भी बन गए हैं। उनकी इस कामयाबी पर पूरे काशी में जश्न मनाया जा रहा है। बता दें कि नरसिंह यादव ने साल 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स में इसी कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता था।
नरसिंह यादव चोलापुर ब्लॉक के नीमा गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता पंचम यादव और मां भूलना देवी ने कई मुश्किलों का सामना करते हुए बेटे को इस मुकाम तक पहुंचाया है। पिता पंचम यादव के मुताबिकए ब’चों की परवरिश के लिए सालों पहले वो महराष्ट्र चले गए। दो बेटे और दो बेटियों का पेट पाल पाना आसान नहीं था। दोनों बेटे विनोद और नरसिंह कुश्ती खेलना चाहते थे। तब उन्होंने किराए पर दूध खरीदकर उसे बेचना शुरू कर दिया। वो साइकिल पर बाल्टी लादकर 40 किमी मलाड, कांदिवली, अंधेरी और गोरेगांव जैसी जगहों पर दूध बेचने जाते थे। पैसे नहीं होने की वजह से ब’चों को दूध नहीं पिला पाते थे।
नरसिंह के पिता ने बताया कि वो और उनकी पत्नी ब’चों को खाना खिलाकर खुद भूखे सो जाते थे। हालात इतने बुरे हो गए थे कि घर का 15 रुपए का किराया भी नहीं चुका पाते थे। छोटी सी टीन शेड पड़ी कोठरी में किसी तरह पूरा परिवार गुजारा करता था। वहींए बारिश के दिनों में घर तालाब बन जाता था। दोनों बेटों ने जब कुश्ती खेलनी शुरू की तो उनके लिए कपड़े खरीदने तक के पैसे नहीं थे। दोनों फटे नेकर और बनियान पहनकर प्रैक्टिस करने जाते थे। पंचम यादव के मुताबिक गरीबी ने घर में इस कदर पैर पसार लिए थे कि ब’चों को दुकान से खरीदा हुआ घटिया अनाज खिलाना पड़ता था। खराब गेहूं को पिसवाकर उसकी रोटी बनाई जाती थी। वहीं, मां भूलना देवी ने बताया कि वो कंकड़ और कीड़े वाले चावल खरीदती थीं। उसे बड़ी मुश्किल से साफ करके पकाती थीं। नरसिंह को अरहर की दाल बेहद पंसद थी लेकिन वो महीने में सिर्फ एक ही बार उसे खिला पाती थीं।