छोटे कंधों पर बड़ा बोझ: गुब्बारा बेचकर करा है पिता का इलाज

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सुशील सिंह

लखनऊ। गरीबी और लाचारी क्या होती है यह दीपक से ज्यादा कोई नहीं बता सकता जो महज 9 साल की उम्र में गुब्बारे बेच कर अपने मां बाप और छोटे भाई बहनों को सहारा बना हुआ। हर बच्चे के मन में पढ़ लिखकर मां-बाप के सपने को पूरा करने की हसरत होती है और वह दीपक में भी है मगर समय और भाग्य की मार ने उसे सड़कों पर भटकने को मजबूर कर दिया है। दीपक पुल पर गुब्बारे बेचकर घर का खर्च चलाने के साथ ही पिता की बीमारी का बोझ भी अपने छोटे से कंधों पर उठाये है।
लखनऊ के गांधी सेतु पर 9 साल का दीपक शाम को अक्सर गुब्बारे बेचते हुए देखा जा सकता है। अपनी गरीबी और लाचारी को बयां करते हुए दीपक ने बताया कि उसके पिता रिक्शा चलाते है जो पेट की गंभीर बिमारी के चलते घर पर लाचार पड़े हुए है। मां घरों में काम करती है जिससे सबका गुजारा चलता है। दीपक ने बताया कि उसके 2 छोटे भाई और 1 बहन है। वह दिन में सरकारी स्कूल में पढ़ता है और रात में पुल पर गुब्बारे बेचता है। दीपक के अनुसार वह हर रोज 250 रुपये तक कमा लेता है जो ले जाकर अपनी मां को देता है। पिता पेट की गंभीर बिमारी से जूझ रहे है लखनऊ के कई अस्पतालों में दिखाने के बाद डाक्टरों ने जवाब दे दिया। अब वह एक मेडिकल स्टोर से दवा के सहारे चल रहें है। दीपक ने बताया कि सरकारी अस्पताल में भी उसे कोई मदद नहीं मिली।
ऐसे में दीपक लाचारी देखते हुए शहर की शिक्षिका ने एक कदम बढ़ाते हुए उसे पढ़ाने का सोची और वह हर रोज आकर इस गरीब दीपक को अंग्रेजी पढ़ाती है। दीपक ने बताया कि मैडम रोज आती है और पुल पर ही स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर उसे अंग्रेजी व अन्य विषयों को पढ़ाती है। दीपक ने कहा कि वह बड़ा होकर डाक्टर बनना चाहता है ताकि गरीब और लाचार लोगों का इलाज कर सके। लखनऊ शहर और यूपी भर में फर्जी कार्यों को दिखाकर करोड़ो रुपये सरकारी धन का घपला करने वाली सामाजिक संस्थाओं का ध्यान दीपक की तरफ नहीं जाता। राजधानी लखनऊ में ही ऐसे बहुत से एनजीओ है जो गरीब और असहाय बच्चों की खबर बना कर मीडिया में तो जगह बना लेते है लेकिन वास्तविकता से कोसों दूर है।

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