जिंदगी पर भारी काहिली का डेंगू

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रवि शंकर।
दिल्ली में डेंगू ने तेजी से अपना कहर बरपाना शुरू कर दिया है। जिससे दिन-प्रतिदिन डेंगू के मरीजों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है। दिल्ली, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद और गुडग़ांव में सरकारी आंकड़ों से उलट जो हकीकत है, वो आंखें खोलने वाली है। गौरतलब है कि राजधानी दिल्ली में डेंगू प्रभावित लोगों की कुल संख्या 2000 के करीब पहुंच गयी है। वैसे निगम ने इस साल डेंगू से पांच मरीजों के मरने की बात कही है, लेकिन प्राप्त आंकड़ों के अनुसार उनकी संख्या 14 बताई जा रही है। यदि आंकड़ों पर गौर करें तो अगस्त की तुलना में सितंबर में मामले तेजी से बढ़े हैं। पिछले एक सप्ताह में 600 से अधिक डेंगू के मामले सामने आये हैं।
गौरतलब है कि दिल्ली में सात साल के बच्चे अविनाश की डेंगू से मौत के बाद सदमे में आये मां-बाप ने आत्महत्या कर ली। इस मामले ने निजी अस्पतालों की संवेदनहीनता को उजागर किया कर दिया है। इस घटना ने स्वास्थ्य तंत्र को कठघरे में खड़ा करने के साथ ही देश को लज्जित करने का काम किया है।
यह घटना तब हुई जब दिल्ली सरकार ने कथित तौर पर यह आदेश जारी कर रखा था कि कोई भी अस्पताल डेंगू के मरीज को लौटाएगा नहीं। निजी अस्पतालों के पास मरीजों को लौटाने के तमाम बहाने होते हैं। यह अमानवीयता के साथ-साथ आपराधिक कृत्य है और इस तरह के कृत्य इसलिए होते रहते हैं क्योंकि ऐसे अस्पतालों के खिलाफ कभी कोई कठोर कार्रवाई नहीं की गई। ज्यादा से ज्यादा उन्हें नोटिस दे दिया जाता है और यह मान लिया जाता है कि जो कार्रवाई होनी चाहिए थी, वह कर दी गई है।
दिल्ली नगर निगम भले ही खुद को गंभीर दिखाने की कोशिश करे लेकिन एमसीडी में फैले कुशासन से दिल्ली में जिस तेजी से डेंगू फैल रहा है, उससे एमसीडी पर सवालिया निशान खड़े होने लगे हैं। सरकार चाहे जो दावे करे लेकिन डेंगू के मरीजों की संख्या सरकारी आंकड़ों से शायद कहीं ज्यादा है। फिलहाल डेंगू से होने वाली मौतों का आंकड़ा भयावह नहीं है, लेकिन थोड़ी-सी लापरवाही से स्थिति बिगडऩे का अंदेशा बना हुआ है। वहीं दिल्ली के सरकारी अस्पतालों का हाल यह है कि एक बेड पर तीन से चार मरीज लेटे पाये गए। हालांकि, दिल्ली सरकार ने अपने सभी अस्पतालों से डेंगू के मरीजों के इलाज के लिए फीवर क्लीनिक खोलने को कहा है।
खास बात यह है कि इस साल डेंगू टाइप टू वायरस सबसे ज्यादा सक्रिय है जो डेंगू वन और थ्री की तुलना में ज्यादा खतरनाक माना जाता है। ये एडिस मच्छरों के काटने से फैलता है। इसलिए इसका उपचार किसी एक तरह से संभव नहीं है। डेंगू का उपचार इसके लक्षणों में होने वाले आराम को देखते हुए किया जाता है। फिलहाल डेंगू से बचाव के लिए अभी तक कोई टीका नहीं है इसलिए इससे बचाव के लिए हमारी सजगता और भी जरूरी है।
डेंगू वायरस के तीन मुख्य प्रकार हैं। ये क्लासिकल (साधारण) डेंगू बुखार, डेंगू हैमरेजिक बुखार (डीएचएफ) व डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस) है। एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में सिर्फ एक बार ही किसी खास प्रकार के डेंगू से संक्रमित होता है। क्लासिक डेंगू साधारण प्रकार का डेंगू है, यह स्वयं ही ठीक होने वाला है और इससे मृत्यु नहीं होती। लेकिन यदि व्यक्ति को डेंगू हीमोरेगिक बुखार या डेंगू शाक सिंड्रोम हुआ है और इसका ठीक प्रकार से उपचार नहीं किया गया तो व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। इसलिए यह पहचानना सबसे जरूरी है कि बुखार साधारण डेंगू है, डीएचएफ है या डीएसएस है। हालांकि डेंगू की स्थिति में मृत्यु दर हमारे देश में लगभग एक प्रतिशत है।
जिस तरह से डेंगू के मरीजों की तादाद बढ़ रही है, उससे आने वाले दिनों में बीमारियों के लिहाज से यह खतरनाक साबित हो सकता है। लेकिन अभी भी इस बीमारी की रोकथाम के कार्यक्रम अनमने ढंग से चलाए जा रहे हैं। सितंबर और अक्तूबर के महीने में डेंगू का कहर सबसे ज्यादा टूटता है। इसलिए आने वाले समय में अगर डेंगू के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी होती है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि डेंगू के फैलने और गंभीर रुख अख्तियार करने के बाद नगर निगम जागरूकता अभियान और सुरक्षात्मक उपाय कर रहा है। जबकि ये सारी कोशिशें काफी पहले ही हो जानी चाहिए थीं, जिससे डेंगू को फैलने का मौका ही नहीं मिल पाता।
ऐसा नहीं कि इस खतरनाक बुखार का सामना पहली बार करना पड़ रहा है या संबंधित महकमे इसकी वजहों और प्रकृति से अनजान हैं। इसके बावजूद इससे निपटने के लिए कारगर उपाय की कमी संबंधित विभागों की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाती है। दरअसल इसका प्रकोप जिस तरह पिछले कुछ सालों से गंभीर रूप में सामने आ रहा है, वह न सिर्फ सरकारी स्तर पर बरती जाने वाली लापरवाही का नतीजा है, बल्कि खुद आम नागरिक भी अपने स्तर पर अपेक्षित और जरूरी सावधानी बरतना जरूरी नहीं समझते। यही वजह है कि हर साल सैकड़ों लोगों को डेंगू के कहर का शिकार होना पड़ता है और कई लोगों की मौत हो जाती है। सच्चाई यह है कि डेंगू पर काबू पाना हर साल कुछ कठिन साबित हो रहा है।
स्वास्थ्य महकमा हर साल यह दम भरता है कि डेंगू के मच्छरों को फैलने से रोकने के लिए दवा छिड़काव से लेकर घर-घर जाकर जांच की जाएगी और पानी के जमाव के लिए दोषी पाए जाने वाले लोगों को दंडित किया जाएगा, लेकिन व्यवहार में क्या कुछ होता है, यह किसी से छिपा नहीं है। हालत यह है कि सरकारी कार्यालयों और यहां तक कि खुद नगर निगम के दफ्तरों के कूलरों में भी डेंगू फैलाने वाले मच्छरों का पाया जाना अब हैरानी की बात नहीं रह गई है।
डेंगू बेशक गंभीर बीमारी है, लेकिन लाइलाज नहीं है। डेंगू पर रोक न लग पाने की एक वजह और भी नजर आती है। वह है राजधानी में दिल्ली सरकार और नगर निगमों की कार्यशैली में तालमेल का अभाव। इसका परिणाम यह होता है कि दोनों अपनी जिम्मेदारी निभाने की बजाय एक-दूसरे पर दोषारोपण करने लगते हैं, जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है। विडंबना है कि समय रहते सरकार इससे निपटने के उपाय नहीं कर पाती।
पिछले सालों के दुखद अनुभवों से सबक नहीं लेने का ही नतीजा है कि इस बार फिर डेंगू अपने पांव पसारने लगा है। जरूरत इस बात की है कि नगर निगम और राज्य सरकार समस्या की गंभीरता को समझें और सुरक्षात्मक उपाय करें।