बिहार चुनाव में क्या है ओवैसी की ताकत

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पटना। फायर ब्रांड नेता असदुद्दीन ओवैसी बिहार चुनाव में सभी के लिए सिरदर्द बन गये हैं। सभी पार्टियों में हलचल है कि ओवैसी की मौजूदगी से समीकरण गड़बड़ा सकते हैं। वैसे तो ओवैसी की पार्टी का बिहार में कोई बड़ा वोट बैंक तो नहीं है मगर उनके द्वारा उठाये जा रहे मसले जरूर प्रभावित कर सकते हैं। बिहार चुनाव में ओवैसी गब्बर बन गये हैं और दूसरी पार्टियों को उनके ताप से वे ही बचा पायेंगे।
बिहार में 12 अक्तूबर से शुरू हो रहे विधानसभा चुनाव के चलते राज्य में राजनीतिक पार्टियों के बीच चल रही सियासी जंग में अब और तेजी देखने को मिल सकती है। दरअसल, अब ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी बिहार का चुनावी दंगल लडऩे का ऐलान कर दिया है। वैसे तो यह लड़ाई मुख्य रूप से भाजपा की अगुवाई वाली राजग और जदयू-राजद-कांग्रेस के महागठबंधन के बीच ही मानी जा रही है लेकिन कई राजनीतिक विशेषज्ञ इस चुनाव को यादव, कुर्मी, दलित, महादलित और अल्प संख्यक समुदाय (मुस्लिम) के परंपरागत समीकरणों के बीच देख रहे हैं। ऐसे में मुस्लिम नेता ओवैसी के बिहार में चुनाव लडऩे से राजनीतिक दलों की सियासी चालों को खासा नुकसान हो सकता है। अभी बीते दिन महागठबंधन ने जिस तरह से 242 सीटों के लिए उम्मीदवारों का चयन किया है उससे साफ है कि वह इस चुनाव को जाति आधारित रूप से लड़ रही है। उनके 242 उम्मीदवारों में कुल 14 प्रतिशत मुस्लिम उम्मीदवार भी हैं जो राज्य के सीमांचल इलाकों में अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि ओवैसी ने भी उन्ही विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लडऩे की योजना बनाई हैं जहां ज़्यादातर मतदाता मुस्लिम हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों में विजेता का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। आपको बता दें कि ओवैसी ने भी सीमांचल इलाकों से ही चुनाव लडऩे का ऐलान किया है। आपको बता दें कि यहाँ मुस्लिमों की जनसंख्या ज्यादा है। महागठबंधन ने विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवारों का चयन वहाँ के मतदाताओं की जनसभा को ध्यान में रखते हुए किया है। जिस क्षेत्र में जिस जाति के जितने ज्यादा मतदाता उस क्षेत्र में उसी जाति के उम्मीदवार की दावेदारी मजबूत। ऐसे में महागठबंधन ने 242 सीटों पर 14 प्रतिशत मुस्लिम को भी अपना उम्मीदवार घोषित किया है। ऐसे में अगर एमआईएम भी उस क्षेत्र के अपन उम्मीदवार खड़ा करती है तो इस बात का फैसला करना मुश्किल है कि उस क्षेत्र में जीत होगी तो किसकी, क्योंकि भले की मुस्लिम प्रत्याशी का चयन मुस्लिम वोटबैंक के क्षेत्रों के लिए लाभकारी हो लेकिन एक मुस्लिम हितैषी पार्टी उस उममीवादवार पर भारी पड़ सकती है, फिर चाहे वो देश के किसी भी कोने की क्यों न हो।
बिहार में ओवैसी के आगमन का प्रभाव जानने के लिए एक समाचार एजेंसी ने सर्वे किया। आइये हम आपको इस सर्वे के कुछ पहलुओं से अवगत कराते हैं और बताते हैं कि क्या कहना हैं सीमांचल क्षेत्र के मतदाताओं का। सबसे पहले चलते हैं अररिया के रहने वाले 40 वर्षीय तुफैल के पास जो पटना में मजदूरी करते हैं। तुफैल का कहना है कि उनके नेता नीतीश कुमार हैं न कि ओवैसी। ऐसा ही बयान पूर्णिया निवासी 50 साल के अंसारी का भी है। उन्होने कहा कि बीते चार चुनावों से वह जनता दल (युनाइटेड) को मत देते रहे हैं और इस बार भी देंगे। लेकिन, यहां बेकरी में काम करने वाले बेलाल मियां और राजू मियां ने कहा कि अगर ओवैसी की पार्टी पटना से लड़े तो वे उसका साथ देंगे। पटना के व्यापारी अहमद इमाम और नवादा के लेखक समी खान ने भी कहा कि वे ओवैसी का समर्थन करेंगे। ऐसे में इस बात का तो फैसला करना मुश्किल है कि इन विधानसभा क्षेत्रों से जीतेगा कौन लेकिन यह साफ है कि भले ही ओवैसी चुनाव न जीत पाये लेकिन यहाँ के चुनावी समीकरण को प्रभावित जरूर करेंगे। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि ओवैसी बिहार में भाजपा को प्रभावित करे या न करे एमआईएम से महागठबंधन पर खासा प्रभाव पड़ सकता है।