तोगडिय़ा बोले: कारखानों से मैली होती हैं गंगा विर्सजन से नहीं

praveen
नई दिल्ली। विहिप नेता प्रवीण तोगडिय़ा ने कहा है कि गणेश भगवान की प्रतिमा के विसर्जन पर विवाद बनाकर प्रशासन ने गणेश-भक्तों पर अमानवीय अत्याचार किए हैं। इन अत्याचारों ने औरंगजेब के अत्याचारों की याद दिला दी, जब उसने काशी विश्वनाथ के पावन मन्दिर को तोडऩे के लिए इसी प्रकार काशी विश्वनाथ के भक्तों पर बर्बर अत्याचार किए थे। उच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद प्रशासन ने गणेश विसर्जन के लिए उपयुक्त वैकल्पिक व्यवस्था नहीं बनाई। कोई व्यवस्था न होने के कारण भक्तों ने तय किया कि अब वे पावन गंगा में ही गणेश विसर्जन करेंगे। 21 सितम्बर, 2015 को ही गणेश भक्तों को जब रोक दिया गया तो वे धरने पर बैठ गए, जिनमें काशी के कई प्रमुख साधु-सन्त और महिलाएं भी सम्मिलित थे। अचानक बिना किसी उत्तेजना व पूर्व सूचना के 22 सितम्बर की रात्रि 12 बजे पुलिस बल लेकर प्रशासन पहुँच गया और सर्च लाइट जलाकर एक-एक भक्त को ढूँढ़ कर बर्बरता के साथ पीटा। कई सन्तों को तो खास निशाना बनाया गया। विश्व हिन्दू परिषद का आरोप है कि प्रशासन ने न्यायालय के निर्णय की अवहेलना करते हुए गणेश विसर्जन की वैकल्पिक व्यवस्था प्रदान करने में असफलता की खीझ को हिन्दू समाज पर अत्याचार के रूप में उतारा और सन्तों, महिलाओं तथा बच्चों पर अत्याचारों का नया इतिहास लिख दिया।
माता गंगा को प्रदूषण से रोकने के लिए उपयुक्त उपाय लेने के लिए माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय का हिन्दू समाज सम्मान करता है। लेकिन उपयुक्त वैकल्पिक व्यवस्था नहीं बनाने के लिए अकर्मण्य प्रशासन विफल रहा, परन्तु न्यायालय के निर्णयों को केवल हिन्दू समाज पर मनमाने ढंग से थोपना किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जा सकता। क्या प्रशासन औद्योगिक इकाइयों के कचरे को माँ गंगा में बहाने से रोक पाया है ? क्या बकरीद पर लाखों बकरों की कुर्बानी से बहने वाले रक्त से माँ गंगा प्रदूषित नहीं होगी ? यह याद रखना चाहिए कि इस रक्त से कई जगह पर माँ गंगा के पवित्र जल का रंग ही बदल जाता है। क्या मस्जिदों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण को रोकने के उच्चतम न्यायालय के निर्णयों का पालन करना आवश्यक नहीं है ?
यह भी स्मरण रखना चाहिए कि गंगा का 95 प्रतिशत प्रदूषण कल-कारखानों और नगरों के नालों के कारण होता है, न कि चन्द मूर्तियों के विसर्जन से। मूल कारणों को रोकने का सामथ्र्य न रखने वाला प्रशासन केवल हिन्दुओं की धार्मिक आस्थाओं पर आघात करना चाहता है। विश्व हिन्दू परिषद माननीय न्यायालय से प्रार्थना करता है कि वह स्वत: संज्ञान लेते हुए इस भेदभावपूर्ण निर्णय पर पुनर्विचार करे।