रिश्तों के नये दौर में भारत-श्रीलंका

Ind_SL_Flagजी. पार्थसारथी। श्रीलंका के आम चुनावों में विजयी होकर प्रधानमंत्री बने रानिल विक्रमसिंघे पिछले दिनों नई दिल्ली की यात्रा पर आए तो उनका स्वागत काफी गर्मजोशी से किया गया। काफी पहले से ही विक्रमसिंघे को एक भारत हितैषी राजनेता माना जाता है, साथ ही वे भारत के सुरक्षा संबंधी हितों के प्रति उदारवादी नजरिया रखते हैं। इसके अलावा उन्होंने श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में रह रहे तमिल अल्पसंख्यकों के साथ मधुर रिश्ते बनाने की दिशा में निर्णय लेने का साहस दिखाया है। अपने दूसरे प्रधानमंत्रित्वकाल में विक्रमसिंघे ने युद्ध-विराम संधि को सिरे चढ़ाया था और एलटीटीई के साथ शांति वार्ता की शुरुआत की थी, जिसे बाद में इस अतिवादी संगठन के सर्वोच्च नेता वैलुपिल्लै प्रभाकरण ने तोड़ दिया था। प्रभाकरण का यह निर्णय आत्मघाती था, जिसकी वजह से आखिर में एलटीटीई की हार हुई थी।
श्रीलंका में इन पक्षों के बीच खूनी जातीय जंग हुई, जिसमें दोनों तरफ से जमकर ज्यादतियां हुई थीं। इसमें मिली जीत की लहर पर सवार होकर राजपक्षे एक बार फिर से सत्तारूढ़ हो गए थे। इसके बाद उन्होंने एक दंभी विजेता की तरह बर्ताव करना शुरू कर दिया था और अपने किए उस वादे को नहीं निभाने पर उतारू हो गए, जिसमें उन्होंने बेगुनाह तमिलों को न्याय और सत्ता में और ज्यादा भागीदारी देने का भरोसा दिया था। राजपक्षे के इस रवैये में वह बेरहमी भी शामिल थी, जिसमें उनके परिवार ने धन संग्रह करने के अलावा विरोधी पक्ष को दबाना शुरू कर दिया था, और आरोप तो यहां तक है कि कइयों को खत्म तक कर दिया गया। उनका यह विश्वास था कि जातीय संघर्ष में मिली जीतÓ ने उन्हें अनिश्चितकाल तक सत्ता में रहने की गांरटी दे डाली है। यहां वर्णनयोग्य है कि द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद ब्रिटेन में हुए आम चुनाव में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को हार का मुंह देखना पड़ा था।
यह राजपक्षे के अधिनायकवाद का ही असर था कि एक ऐसा गठबंधन अंदरखाते बन गया, जिसमें एक ओर से उनके पूर्व सहयोगियों मैत्रीपाला सिरिसेना और पूर्व राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारातुंगा के नेतृत्व में उनकी अपनी पार्टी के असुंतष्ट वर्ग ने और दूसरी तरफ से उनके घोर प्रतिद्वंद्वी रानिल विक्रमसिंघे ने हाथ मिला लिया। इसका हश्र यह हुआ कि अजेय समझे जाने वाले राजपक्षे की न सिर्फ हार पुन: राष्ट्रपति बनने वाले प्रयास में हुई बल्कि हाल ही में हुए संसदीय चुनावों में भी प्रधानमंत्री बनने की उनकी हसरत उस वक्त चकनाचूर हो गई जब उनकी अपनी पार्टी(एसएलएफपी) के लोगों और विपक्षी यूएनपी ने एक बार फिर से गठबंधन कर लिया। ऐसे संकेत मिल रहे हैं सत्ता के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के आरोपों पर उन्हें न्यायिक जांच का सामना कर पड़ सकता है। लेकिन सत्तारूढ़ पक्ष के हित में होगा यदि वह यह बात याद रखे कि राजनीति में किस्मत का चक्र बहुत जल्दी घूमता है। यहां फिर से बता दें कि ब्रिटेन में भले ही द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुए आम चुनावों में प्रधानमंत्री चर्चिल हार गए थे, लेकिन जल्द ही उन्होंने इस पद पर वापसी भी की थी, इसी तरह 1971 के बांग्लादेश युद्ध में विजेता रहीं भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 1977 के संसदीय चुनाव में हार के बाद अपना पद छोडऩा पड़ा था, परंतु तीन साल बाद ही 1980 में वे फिर से इस कुर्सी पर दुबारा बैठने में सफल हुई थीं।
जैसी कि उम्मीद थी, राष्ट्रपति पद पर मैत्रीपाला सिरिसेना का चुना जाना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के नेतृत्व में दोनों बड़ी पार्टियों के गठबंधन वाली राष्ट्रीय सरकार बनने का भरपूर स्वागत भारत में हुआ। जहां भारत ने एलटीटीई के साथ हुई लड़ाई में पहले राजपक्षे का समर्थन किया था, लेकिन बाद में उसे बहुत जल्द यह एहसास भी हो गया था कि श्रीलंका के तमिल बहुल इलाकों को सत्ता में भागीदारी देने का उनका कोई इरादा नहीं है। इसके साथ ही राजपक्षे द्वारा लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को दबाने और चीन की तरफ बढ़ते झुकाव ने नई दिल्ली में खतरे की घंटी घनघना दी थी। भारत द्वारा चिंता जताने के बावजूद श्रीलंका ने कोलंबो के बंदरगाह पर दो चीनी पनडुब्बियों को लंगर डालने की इजाजत दे दी थी। अमेरिका और जापान भी इससे चिंतित हो उठे थे। फिलहाल भारत को यह भरोसा है कि उसके सुरक्षा हितों को लेकर श्रीलंका की नई सरकार ज्यादा सावधान रहेगी।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार आयोग की एक रिपोर्ट जारी हुई है, जिसमें एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय न्यायिक ट्रिब्यूनल बनाने का प्रस्ताव दिया गया है, जिसके पास श्रीलंका में हुए कथित युद्ध अपराधों की जांच और दंड प्रकिया में दखल देने का ज्यादा अधिकार हो। यह सुझाव भारत के लिए राजनयिक और घरेलू स्तर पर चुनौतियां उत्पन्न करता है, क्योंकि यह रिपोर्ट ऐसे वक्त पर आई है जब तमिलनाडु में यह मांग उठाई जा रही है कि श्रीलंका में हुए जातीय संघर्ष के आखिरी सालों में मानव अधिकारों का हनन करने वाले सभी आरोपियों पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चलाया जाना चाहिए। जाहिर है कि श्रीलंका का बहुसंख्यक सिंहला समुदाय इस प्रस्ताव का विरोध करेगा। भारत को इस मुद्दे पर बड़ी सूझबूझ से काम लेना होगा। हमारा प्रयास उनके बीच सौहार्द कायम करने वाला होना चाहिए। ऐसे कदम उठाने जाने चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि जहां एक ओर संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार आयोग ऐसे प्रस्तावों के साथ आगे आए, जिसमें बेजा अंतरराष्ट्रीय दखलअंदाजी न हो और दूसरी तरफ जिनके ऊपर ज्यादतियां करने का आरोप है, उन पर भरोसे योग्य जांच और मुकदमा चलाया जाए। अमेरिका और इसके सहयोगी यूरोपीय देश श्रीलंका की मौजूदा सरकार पर पिछले कुछ सालों की अपेक्षा ज्यादा भरोसा कर रहे हैं और वे नहीं चाहेंगे कि ऐसा कुछ हो कि यह अस्थिर हो जाए।
भारत द्वारा श्रीलंका को दी जाने वाली कुल मदद अब लगभग 2.6 बिलियन डॉलर राशि की हो गई है। जिसमें युद्ध की वजह से विस्थापित हुए तमिलों के लिए 50,000 घरों का निर्माण भी है, जिससे उनके फिर से बसने में सहायता मिली है। श्रीलंका में भारत के निजी निवेशकों द्वारा लगाई गयी रकम अब 1 बिलियन का आंकड़ा पार कर चुकी है। कुल मिलाकर कहें तो भारत द्वारा लगाया जाने वाला 4.5 बिलियन डॉलर का प्रस्तावित निवेश चीन के लगभग 5 बिलियन डॉलर के निवेश का उचित मुकाबला करते नजर आ रहा है। इसके अलावा श्रीलंका में बनने वाली वे चीनी परियोजनाएं, जिनके वास्ते लिए गए कर्ज पर वहां की सरकार को भारी ब्याज भरना पड़ रहा है, ज्यादातर सफेद हाथी सिद्ध होने लगी हैं। अब श्रीलंका की मौजूदा सरकार बहु-प्रचारित कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखाने से पहले बड़ी सावधानी से इसके सभी पहलुओं पर भी विचार करेगी। इस परियोजना के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण राजधानी कोलंबो के साथ लगती 108 हेक्टेयर भूमि चीन को लंबे पट्टे पर देने की तजवीज शामिल है।
जापान के अलावा अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगी भी श्रीलंका में आर्थिक रूप से ज्यादा सक्रिय भागीदारी निभाएंगे। यह ज्यादा अच्छा होगा यदि राष्ट्रपति सिरिसेना और प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे श्रीलंका की पूर्व सरकार द्वारा दिए गए उस वचन को निभाएं, जिसमें तमिलों को सत्ता में और ज्यादा भागीदारी देने की बात कही गई थी। भारत-श्रीलंका के बीच साझेदारी समूचे हिंद महासागर क्षेत्र में द्विपक्षीय हितों और विश्वास, मैत्री और सहयोग कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।