जानिए ग्रीस संकट से जुड़ी दस अहम बातें

euro

नई दिल्ली। ग्रीस के लोगों ने कर्जदाताओं की शर्तों के आगे झुकने से इनकार कर दिया है। इसका नतीजा यह है कि यह देश आज डिफाल्ट होने के कगार पर खड़ा है। दूसरी तरफ वहां की सरकार ने जो आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, उसके कारण लोगों को मुश्किल हो रही है। आइए जानते हैं कि ग्रीस संकट से जुड़ी दस महत्वपूर्ण बातें-
ग्रीस सरकार और उसके कर्जदाताओं के बीच जून के आखिरी हफ्ते में चली मीटिंग विफल हो गयी थी, जिसके बाद वहां बैंकों को बंद करना पडा। ग्रीस के आर्थिक संकट के कारण दुनिया भर के देशों के शेयर बाजार गिरने लगे। इसका प्रमुख कारण ग्रीस को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को 60 करोड यूरो का कर्ज चुकाना है, जिसे समय पर चुकाने में ग्रीस असमर्थ रहा।
ग्रीस की जनता भी कर्जदाताओं के शर्तों के खिलाफ, खासतौर से खर्चे कम करने के लिए लगाये गये प्रतिबंध के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है। 29 जून को 17 हजार लोग सडक पर उतरे। लोग संसद भवन के सामने भी जुटे हुए हैं। प्रदर्शनकारी यूरोपीय यूनियन के कार्यालय के बाहर यूरो नोट में आग लगा कर अपना विरोध जता रहे हैं. प्रदर्शनकारी अपने हाथों में ग्रीस का झंडा लेकर विरोध जता रहे हैं।
इस बीच यूरोपीय संघ ने ग्रीस पर यूरोजोन से बाहर होने के मंडराते खतरे के हल के लिए एक नया प्रस्ताव पेश किया। यूरोपीय संघ की कार्यकारी शाखा के प्रमुख क्लॉड जंकर ने ग्रीस के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास को एक प्रस्ताव देकर कहा कि गरीब पेंशन धारकों को बोनस के भुगतान में कटौती करने की मांग पर रियायत दी जा सकती है। यूरोपीय संघ के अधिकारियों ने इस रियायत के बदले प्रधानमंत्री सिप्रास को कर्जदाताओं की मांगें मानने का एक बार फिर दबाव बनाया। लेकिन ग्रीस अपने रूख पर अडिग है।
ग्रीस को संकट से उबारने की दिशा में 29 जून एक सार्थक पहल हो पायी, जब इस मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने यूरो जोन की दो प्रमुख अर्थव्यवस्था फ्रांस व जर्मनी के राष्ट्रप्रमुखों से फोन पर बात की। बराक ओबामा ने फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलांद और जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल को फोन कर इस पूरे मामले में पहल करने का सुझाव दिया, जिसके बाद दोनों नेताओं ने सक्रियता दिखायी।
यूरोपीय संघ ने ग्रीस की जनता को चेतावनी दी है कि अगर उन्होंने पांच जुलाई, रविवार को होने वाले जनमत संग्रह में उनके देश को कर्ज देने वालों देशों के प्रस्ताव के विरुद्ध वोट दिया, तो इसका मतलब होगा कि वे यूरो क्षेत्र से बाहर हो जायेंगे। हालांकि इस तरह की चेतावनी आग में धी डालने का काम किया और लोगों ने मतदान में कर्जादाताओं की शर्तों के खिलाफ वोट दिया।
ग्रीस के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास ने जनता से प्रस्ताव के विरोध में वोट देने की अपील की। हालांकि उन्होंने यह इशारा किया कि अगर उनके देश की जनता कर्ज देने वाले देशों के प्रस्ताव के समर्थन में वोट करती है, तो वे उस फैसले का सम्मान तो करेंगे, लेकिन खुद पद छोड देंगे। उन्होंने कहा है कि खर्च में कटौती का जो प्रस्ताव देश को मिला है, वह अपमानजनक है।
यूरोपीयन सेंट्रल बैंक ने 29 जून को ग्रीस के छह बिलियन यूरो कर्ज देने के आग्रह को ठुकरा दिया था। इस कारण ग्रीस के बैंकों को बंद करना पडा। यहां तक कि एटीएम मशीनों से 60 यूरो तक निकासी की सीमा निर्धारित कर दी गई है।