डिजिटल इंडिया : सपना और हकीकत

modiविचार डेस्क। भारत के सवा अरब नागरिकों को डिजिटल रूप से जोडऩे का सपना बहुत बड़ा है, पर यह असंभव भी नहीं है। इसके लिए युद्ध स्तर पर प्रयास करने होंगे। सबसे पहले यह समझना होगा कि इसका मतलब किसी व्यक्ति तक डिजिटल साधन पहुंचा देना भर नहीं है। इसकी सार्थकता तभी है जब वे साधन उस व्यक्ति की सामाजिक-आर्थिक बेहतरी में सहायक बनें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिलिकॉन वैली में आईटी सेक्टर के कुछ प्रमुख सीईओज के बीच अपनी महत्वाकांक्षी योजना डिजिटल इंडिया की चर्चा की और उनसे इसके लिए सहयोग मांगा। कुछ कंपनियों ने इस संबंध में आश्वासन भी दिया है।
भारत में कंप्यूटरीकरण की शुरुआत अस्सी के दशक में काफी झिझक और अगर-मगर के बीच हुई थी। उस वक्त लोगों में भय था कि कहीं यह बड़े पैमाने पर बेरोजगारी का कारण न बने। बहरहाल, नब्बे के दशक में विश्व में सूचना क्रांति के जोर पकडऩे के बाद भारत पर भी इसका गहरा असर हुआ। उसी का नतीजा है कि आज क्या शहर क्या गांव, कमोबेश हर व्यक्ति के पास सेलफोन है।
गांव के कई लोग तो मोबाइल को शौचालय से ज्यादा अहम मानते हैं। जहां तक इंटरनेट का प्रश्न है, इस साल जून तक देश में इसके 35 करोड़ 40 लाख यूजर्स हो चके थे। मोबाइल के इस्तेमाल से कामगार वर्ग की आमदनी बढ़ी है क्योंकि इसके जरिए उसे अब ज्यादा काम मिलने लगे हैं। लेकिन यह बात इंटरनेट के लिए नहीं कही जा सकती। दफ्तरों के डिजिटल होने के बाद भी उनमें काम करने वाले लोग पुरानी लय पर ही चल रहे हैं। अक्सर कई विभागों के सिस्टम डाउन रहते हैं जिससे कामकाज तेज होने के बजाय और धीरे होने लगता है। सरकारी स्कूलों का आलम यह है कि वहां कंप्यूटर खरीदकर रख दिए गए हैं। कहीं उनके इस्तेमाल और देखरेख की व्यवस्था नहीं है, तो कहीं बिजली न होने के कारण वे बेकार पड़े रहते हैं। छोटे कारोबारियों और किसानों तक इसकी पहुंच नहीं हो पाई है क्योंकि गांवों में ब्रॉडबैंड का अपेक्षित विस्तार नहीं हो पाया है। चीन और पूर्वी एशियाई देशों में इंटरनेट ने उद्यमिता पैदा करने और बढ़ाने में जैसी भूमिका निभाई, भारत में अभी उसकी कल्पना भी करना कठिन है। ई-कॉमर्स में इंटरनेट जरूर अहम भूमिका निभा रहा है, पर इस व्यवसाय से जुड़े कई सवालों के जवाब अभी मिलने बाकी हैं। हमारे देश में इंटरनेट के लिए जरूरी संसाधन की जबर्दस्त कमी है और इसे आम लोगों की रोजी-रोटी से जोडऩे का काम अभी ठीक से शुरू भी नहीं हुआ है। दुनिया के आईटी सेक्टर में अपना लोहा मनवा लेने के बाद भी हकीकत यही है कि इस क्षेत्र में भारत का दखल सेवाओं तक ही सीमित है। हम अब भी अच्छे सॉफ्टवेयर प्रॉडक्ट बनाने वाले देश के रूप में नहीं जाने जाते। डिजिटल इंडिया की असली कामयाबी यही होगी कि हम सूचना प्रौद्योगिकी के मामले में हर स्तर पर आत्मनिर्भर हों।