लखनऊ। उत्तर प्रदेश महिला हिंसा के मामलों में देश में दूसरे स्थान पर है। महिला हिंसा पीडि़त महिलाओं के परिवार के सदस्यों तक सीमित नहीं है। यह जेण्डरगत हिंसा और असामनता हमारी अर्थव्यवस्था और दूसरी सामाजिक संरचनाओं में भी व्याप्त है। यह बातें मेन्स एक्शन फॉर स्टापिंग वायलेंस अगेन्सट करप्शन (मैसवा) के शिशिर ने कही। प्रेस क्लब में जेण्डर न्याय में पुरूषों व लड़कों की भूमिका पर आयोजित गोष्ठी में उन्होंने कहा कि पिछले 10-15 सालों से नागर समाज और सरकार जेण्डर समानता के मुद्दे उठा रही है। जिससे इनमें कुछ सकारात्मक सुधार भी देखने को मिले हैं। इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता अरूनधति धुरू ने कहा कि विभिन्न आन्दोलनों के अंतर्गत जेण्डर न्याय की दिशा में पुरूषों व लड़कों के साथ काम को जोड़ा जाना जरूरी है। इसके लिए दलित, छात्र, महिला, मजदूर आदि का आपस में एक साथ आना व समायोजन भी बेहद जरूरी है। यूएन विमेन से जुड़ी पीयूष एण्टोनी ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जेंडर न्याय की दिशा में पुरूषों व लड़कों के साथ काम के महत्व को समझा जा रहा है। इसके लिए अलग-अलग स्तर पर प्रभावी रणनीतियां बनाई जा रही हैं। महिला समा या की निदेशक स्मृति सिंह ने कहा कि महिलाओं के साथ किये जाने वाले कार्यों में पुरूषों व लड़कों के साथ काम को देखा जा सकता है। जिससे महिला आन्दोलन को भी बल मिलेगा। गोष्ठी में लविवि की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता गुरजीत सिंह, माध्वी कुकरेजा व छात्रों ने भी अपने विचार रखे।