अमेरिकी राजनीति का ट्रंप कार्ड

s.nihal singh

एस. निहाल सिंह। अमेरिकी लोग उस प्रदर्शन से मंत्रमुग्ध हुए पड़े हैं, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना कहा जाता है, और वह है अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव। हर चार साल बाद होने वाले इन चुनावों का प्रचार चक्र अबकी बार लंबा हो चला है। इस बार प्रतिभागियों और पार्टियों के बीच न केवल कटुता ज्यादा ही तीखी है बल्कि मसखरापन भी सौ गुणा बढ़ गया है।
सच तो यह है कि जमीन-जायदाद के कारोबार का सुल्तान कहे जाने वाले डोनल्ड ट्रंप जिस तरीके का भड़कीला चुनाव प्रचार करके लोगों के बीच लोकप्रियता पाने में सफल रहे हैं, उसमें इस अजीबोगरीब स्थिति का मनोवैज्ञानिक आकलन करने के लिए दिव्य पांडित्य की जरूरत पड़ेगी। पिछले राष्ट्रपति चुनावों में ऐसे उम्मीदवारों के हश्र के आधार पर कहा जा सकता है कि कायदे से अब तक तो चुनाव परिदृश्य से ट्रंप का अवसान हो चुका होता। लेकिन वे हैं कि सभी पूर्वानुमानों को धता बताते हुए आगे बढ़ते ही जा रहे हैं। हालांकि उन्होंने महिलाओं और प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ काफी नागवार टिप्पणियां की हैं फिर भी रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों की भीड़ में वे सबसे ऊपरी पायदान पर बने हुए हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि लोग राजनीतिक विशुद्धता की बातें करने वाले की बजाय उस व्यक्ति के प्रति ज्यादा रुझान रखने लगे हैं, जो अपने भाषणों में वह सब कुछ कह डालता है जो भी उसके मन में होता है, भले ही ये उद्गार कितने ही अनगढ़ क्यों न हों। ट्रंप का आकर्षण इसलिए भी कायम है कि वे ऐसी कथित शुचितापूर्ण रिवायतों का खंडन साहसपूर्वक कर रहे हैं जिन पर किंतु-परंतु करने से अन्य राजनीतिज्ञ अकसर जानबूझकर बचते हैं। भावार्थ यह कि अमेरिकी नागरिक उन राजनेताओं की जमात से आजिज आने लगे हैं जो चुनाव से पहले कहती कुछ है और जीत कर आनेे के बाद वापिस उसी काम में लग जाती है, जिसके लिए अकसर नेतागण जाने जाते हैं।
हालांकि ट्रंप की छवि सदा ही अपनी वास्तविक स्थिति से ज्यादा बड़ी रही है, फिर भी कुछ लोगों को ही यह उम्मीद थी कि एक दिन वे रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बन कर उभरेंगे। उनके अलावा इस दल की ओर से दूसरे मुख्य उम्मीदवार जेब बुश हैं जो अमेरिका के मशहूर बुश परिवार की ओर से राष्ट्रपति बनने के लिए तीसरे दावेदार हैं। लेकिन फिर भी इस संगठन के एक वर्ग में यह हताशा घर करने लगी है कि सर्वोच्च पद पर आसीन करवाने के लिए केवल एक ही परिवार के सदस्यों पर निर्भरता ठीक नहीं है। डेमोक्रेटिक पार्टी भी कमोबेश ऐसे ही परिवारवाद वाले हालात से ग्रस्त है, जहां पर पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन राष्ट्रपति पद की इच्छुक हैं। पिछली बार अपनी इस मुहिम में वे ओबामा से पिछड़ गई थीं। इस बार जो चीज उनके खिलाफ जा रही है, वह है अपने निजी इंटरनेट ब्लॉग पर उन बातों को उजागर करना जो विदेश मंत्री रहते हुए उनके आधिकारिक कार्य का गोपनीय हिस्सा थीं। काफी आनाकानी करने के बाद आखिरकार उन्होंने अपनी चूक के लिए माफी मांग ली।
इसके अलावा श्रीमती क्लिंटन के अभियान की संभावना पर एक ऐसी आत्मा की छाया भी पड़ रही है जो वास्तव में मौजूदा उपराष्ट्रपति जो-बिडेन का यह कथन है कि उनके दिवंगत पुत्र ने मरने से पहले इच्छा जाहिर की थी कि उसके पिता (बिडेन) राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ें। सार्वजनिक तौर पर जो-बिडेन अभी इसी पसोपेश में हैं कि राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए वे अपना दावा प्रस्तुत करें या नहीं। जाहिर है कि उनकी नजर हिलेरी के इस प्रयास पर भी टिकी हुई है कि वे अपने ई-मेल प्रकरण से किस प्रकार पार पाती हैं। यह ठीक है कि ई-मेल झमेले से पहले हिलेरी डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए एक स्वाभाविक उम्मीदवार थीं लेकिन अब ऐसा नहीं है, हालांकि इसके बावजूद वे अब भी वे एक तगड़ी दावेदार हैं। महिला वोटर जिनका रोल राष्ट्रपति चुनाव में पलड़ा झुकाने में काफी अहम रहता है, वे हिलेरी को लेकर खासकर इसलिए भी काफी उत्साहित हैं कि उनके रूप में देश को पहली महिला राष्ट्रपति मिल सकेगी।
इस लड़ाई में जहां एक तरफ रिपब्लिकन पार्टी की ओर से ट्रंप चुनाव अभियान का नेतृत्व करते और विपक्ष के तीर झेलते दिखाई दे रहे हैं वहीं इसके मुकाबले जेब बुश ने अपने अभियान की शुरुआत बनिस्पत कम शोरशराबे से की है। उन्हें उम्मीद है कि एक बार जब ट्रंप का बुलबुला फूट जाएगा तो लोकप्रियता की सूची में उनका नाम स्वत: ऊपर आ जाएगा और एक प्रांत का गवर्नर रहने का उनका अनुभव लाभ दे जाएगा।
हालांकि अमेरिकी राजनीतिक विश्लेषक यह बड़ा सवाल उठा रहे हैं कि ढर्रे का पालन करने वाले राजनेताओं से लोगों का मोह भंग आमतौर पर क्यूं होने लगा है? डोनल्ड ट्रंप ने एक घटिया तंज में राष्ट्रपति ओबामा को इसलिए मुसलमान ठहराया क्योंकि उन्होंने यूरोप में आये सीरिया के शरणार्थियों का सैलाब बांटने की खातिर उन्हें अमेरिका में पनाह देने की घोषणा की है।
इसके अतिरिक्त अमेरिका के मध्य वर्ग की एक जगह पर आकर रुक गई आमदनी भी एक चुनावी मुद्दा है क्योंकि दूसरी ओर अमीर वर्ग दिनोंदिन अमीर होता जा रहा है। सच तो यह है कि धनाढ्य और वंचित वर्गों के बीच असमानता एक ऐसा राजनीतिक मामला है, जिससे सभी सियासी पार्टियों को जूझना होगा। सोचने का विषय यह है कि इस व्यवस्था के प्रति विद्रोह पर न सिर्फ गरीब और हाशिए पर रह रहे लोग उतारू हैं बल्कि अन्य मतदाताओं का एक अहम हिस्सा भी एकजुट होकर अपना रोष जता रहा है। कोई शक नहीं कि डोनल्ड ट्रंप की लोकप्रियता इसलिए भी बढ़ी है कि उन्होंने लोकलुभावन मुद्दे उठाए हैं, जिनमें एक है 1 करोड़ 1 लाख गैरकानूनी मेक्सिकन आव्रजकों का अमेरिका में घुसपैठ करना। ट्रंप इसे रोकने के लिए समूची सीमा रेखा पर दीवार बनाकर अमेरिका की किलेबंदी करते हुए इस मुसीबत से बचाने वाला प्रस्ताव चुनावी सभाओं में रख रहे हैं।
इस चुनाव अभियान में संजीदा उम्मीदवारों के वास्ते खासतौर पर कष्टप्रद यह है कि अमेरिकी चुनावों के मौजूदा दौर में ऊटपटांग डींगें मारने वाला सिलसिला काफी ज्यादा लंबा खिंच गया है। अभी तक इसमें मतलब की बातें कम और हवाबाजी ज्यादा हो रही है और जिन गंभीर मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए, उन्हें नेपथ्य में धकेल दिया गया है। यह मानकर कि बढ़ा-चढ़ा कर बातें करना और भाव-भंगिमाएं बनाना अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के खून में होता है, परंतु जिस स्तर पर एक-दूसरे को नीचा दिखाया जा रहा है, उससे कोफ्त होने लगी है।
अब जबकि राष्ट्रपति ओबामा अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम साल में दाखिल हो गए हैं, ऐसे में राजनीतिक प्रतिष्ठान इस फेरबदल के लिए तैयारियां करने लगे हैं, लेकिन यह अमेरिका-इस्राइल संबंधों को एक तरफ छोड़कर किया जा रहा है। अमेरिका-ईरान एटमी करार में रिपब्लिकन पार्टी के पुरजोर विरोध के बावजूद व्हाइट हाउस के मौजूदा कर्णधार इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के इरादों पर विजय पाने में कामयाब रहे थे। इसकी छाया परंतु पीछे छूट गयी है और यह आगामी राष्ट्रपति के पद ग्रहण से पहले अपना असर जरूर दिखाएगी।