जानिए किस मंदिर में हैं आधे में कृष्ण और आधे में राधा

radha-ballabh-templeफीचर डेस्क। कृष्ण भक्तों के लिए उनके नामजप का जितना महत्व है उतना ही वृंदावन की धरती का भी है। इस धरती पर कृष्ण ने बाललीला की और राधाजी तथा गोपियों संग रास रचाया। इसी पावन पुण्य भूमि पर विराजित राधा वल्लभ मंदिर के दर्शन मात्र से ही भक्त की हर इच्छा पूरी होती है। पुराणों में वर्णित इस मंदिर की सबसे बड़ी बात है इसकी गाथा भगवान शिव से जुड़ी हुई है। भगवान विष्णु के उपासक आत्मदेव ने एक बार भगवान शिव के दर्शन पाने के लिए कठोर तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा। इस पर ब्राह्मण ने कहा कि वो उन्हें ऐसा कुछ प्रदान करें जो उनके ह्रदय को सबसे प्रिय हो। इस पर भगवान शिव ने अपने ह्रदय से श्री राधावल्लभलाल को प्रकट किया तथा उन्हें राधावल्लभ की सेवा पद्धति भी बताई।ब्राह्मण आत्मदेव इस विग्रह की कई वर्षों तक पूजा करते रहे। इसके बाद राधाजी के आदेशानुसार हरिवंश महाप्रभु ने उनसे इस विग्रह को प्राप्त कर वृंदावन में स्थापित कर मंदिर की नींव रखीं। हरिवंश महाप्रभु राधा वल्लभलाल को लेकर वृंदावन आए और मदनटेर जिसे ऊँची ठौर बोला जाता है वहां पर लताओं का मंदिर बनाकर विराजमान किया। राधावल्लभ मंदिर में विराजमान इस अनूठे विग्रह में आधे में कृष्ण और आधे में राधाजी है। यहां पर कई सदियों से एक कहावत है राधा वल्लभ दर्शन दुर्लभ। यहां हर किसी को दर्शन नहीं होते। केवल वही व्यक्ति इस मंदिर में दर्शन कर पाते हैं जिनके ह्रदय में प्रेम है, भावुकता है और भक्ति हैं। इसी लिए यहां आने वाले भक्तजन उन्हें रिझाने के लिए भजन-कीर्तन करते हैं। उन्हें पंखा झलते हैं और यथासंभव उनकी सेवा-पूजा कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। कहा जाता है जिस पर भी भगवान राधावल्लभ प्रसन्न हो जाएं उनकी सभी मनोकामनाएं तुरंत पूर्ण होती हैं।