श्रीलंका का कैंडी शहर: आबोहवा में है दिलकश रोमानियत

kandy_sri_lanka

फीचर डेस्क। दुनिया के नक्शे पर बूंद के समान श्रीलंका के बीचोबीच है खूबसूरत शहर कैंडी। यह देश की सेन्ट्रल प्राविन्स की राजधानी है। कैंडी का सिंहली नाम महा नुवारा है, यानी महान शहर। कैंडी दरअसल उसके तमिल नाम का अंग्रेजी अपभ्रंश है। 14 वीं शताब्दी में बसा यह शहर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। कैंडी का अहसास बाकी श्रीलंका से अलग है। कोलंबो, गाल, जापफना या त्रिंकोमाली- ज्यादातर बड़े शहर समुद्र के किनारे हैं और इसलिए यहां समुद्री उमस और लहरें आपका पीछा नहीं छोड़तीं। कैंडी इस द्वीप देश का हिल स्टेशन सरीखा है, इसलिए यहां की आबोहवा बिलकुल अलग है। उसमें एक दिलकश रोमानियत है।
वैसे श्रीलंका का असली हिल स्टेशन तो नुवारा एलिया है जो छह हजार पफुट से ज्यादा उचाई पर स्थित है। कैंडी से यह नजदीक ही है। अक्सर कैंडी घूमने जाने वाले सैलानी नुवारा एलिया भी साथ ही घूम लेते हैं। कैंडी उचाई पर स्थित है इसलिए सामरिक रूप से दो तरफ की घाटियों पर निगरानी कर सकता है। इसीलिए यह पहले राजाओं और बाद में पुर्तगाली, डच व ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों के लिए सत्ता के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में रहा। लिहाजा जैसे अंग्रेजों ने भारत में अपने शासन में रानीखेत, लैंसडाउन, कसौली जैसे स्थान विकसित किए, वैसा ही विकास श्रीलंका में कैंडी व नुवारा एलिया का भी हुआ। यही वजह है कि दोनों ही शहरों में ज्यादातर पुरानी इमारतों में औपनिवेशिक झलक देखने को मिलती है।
कैंडी घाटी में पहाडिय़ों के उपर बसा कैंडी लंबे समय तक देश की राजधनी रहा। श्रीलंका पर शासन करने वाली राजशाही यहीं से पूरे द्वीप देश पर नियंत्राण करती रहीं। कैंडी राजनीतिक सत्ता के अलावा या यूं कहे तो उसकी बदौलत ही देश की धर्मिक आस्था का भी केंद्र रहा। इसलिए कई लोग कैंडी को राजधनी कोलंबो से भी कई मायने में ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं।
श्रीलंका के लिए कैंडी का बहुत बड़ा धर्मिक महत्व भी है। यहां गौतम बुद्ध का एक दांत रखा है, इसलिए दुनियाभर के बोद्हों के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। श्रीलंकाई मिथकों के अनुसार बुद्ध के देहत्याग के बाद जब उनका अंतिम संस्कार कुशीनगर ;आज के उत्तर प्रदेश मेंद्ध में हुआ तो अरहत खेमा ने उनकी चिता से उनका एक दांत निकाल कर राजा ब्रह्मदत्त को दे दिया था। उसके बाद वह दांत पहले कई साल भारत में रहा। उसके मूल में यह बात रही कि जिसके पास गौतम बुद्धका प्रतीकस्वरूप वह दांत होता था, उसके पास देश पर शासन करने का अधिकार होता था। उस दौर में दांत के लिए कई लड़ाइयां लड़ी गईं। इन्हीं के परिणामस्वरूप वह दांत बचता-बचाता, छिपता-छिपाता श्रीलंका में पहुंच गया। यह सन 301 से 328 के बीच की बात है। हालांकि श्रीलंका में भी उसने कई स्थान देखे- अनुराधपुर, पोलोनारुवा, दम्बादेनिया, यापाहुवा, कुरुनेगाला, रत्नपुर आदि। वहां से वह कैंडी पहुंचा, जहां उसके लिए भव्य मंदिर राजमहल परिसर में बनाया गया। सन् 1603 में पुर्तगालियों के आव्रफमण के समय इसे दुम्बारा ले जाया गया, लेकिन बाद में पिफर यह कैंडी पहुंच गया। तब से ये यहीं है। हर साल जुलाई-अगस्त में अब यह दांत कैंडी पेराहेरा नाम से होने वाले शानदार श्रनसने जलसे में बाहर निकाल कर पूरे शहर में घुमाया जाता है। श्रीलंका के दो प्रमुख बौ( मतों के मठ भी कैंडी में हैं। सिंहलियों के पारंपरिक संगीत व नृत्य की परंपरा भी कैंडी में सुरक्षित है। यही वजह है कि 1998 में यूनेस्को ने कैंडी को विश्व विरासत की सूची में शामिल किया। बुद्ध के दांत का यह मंदिर आज श्रीलंका में देशी-विदेशी सैलानियों द्वारा देखे जाने वाले स्थानों की सूची में सबसे उफपर है, यानी श्रीलंका का सबसे पहला टूरिस्ट स्पॉट है यह। इस समय मंदिर के साथ मौजूद महल का हिस्सा पुरातत्व संग्रहालय बना हुआ है। झील के सामने पहाड़ी पर बना रानी का महल आजकल राष्ट्रीय संग्रहालय है। झील के दक्षिणी छोर पर 18वीं सदी में बना खूबसूरत मलवत्ते विहार है और 17वीं सदी का असगिरिया विहार निकट ही पहाड़ी पर है जिसमें कई पुरानी पांडुलिपियां सुरक्षित रखी हैं।
बात लंका की हो तो रामायण का जिव्रफ आना स्वाभाविक है। रामायण से जुड़ी कई घटनाओं के स्थान श्रीलंका में चिन्हित किए गए हैं। कैंडी से नुवारा एलिया के रास्ते में हनुमान जी का एक प्रसिद्ध मंदिर पड़ता है। वहीं नुवारा एलिया में सीता मंदिर है। कहा जाता है कि यह सीता मंदिर उसी जगह है, जहां अशोक वाटिका हुआ करती थी। मंदिर के निकट चट्टानों में हनुमान के पांवों के निशान द्वीप उपसमद हैं। कैंडी की खूबसूरती शहर के बीच में बनी एक झील बोगम्बारा झील से भी है। हालांकि यह प्राकृतिक नहीं है इसे कैंडी के आखिरी राजा ने 19वीं सदी के शुरुआती सालों में बनवाया था। झील के बीच में एक छोटा सा महल है जो संभवतया राजा ने गर्मियों में सुकून के कुछ पल बिताने के लिए बनाया होगा। झील के चारों तरफ पैदल टहलने का रास्ता बना है। पेड़ों के साये में झील के किनारे टहलने का अहसास कुछ-कुछ हमारे नैनीताल की नैनी झील रंपें है। इसी झील के किनारे कैंडी के कुछ सबसे शानदार होटल हैं, जिनमें से कई डच व ब्रिटिश काल के हैं। इनमें से कई ने उस दौर की यादों को बखूबी सहेजा हुआ है जिन्हें देखने सैलानी पहुंचते हैं। मुख्य बाजार भी साथ ही है।
कैंडी की एक और खासियत वहां की हरियाली है। पेरादेनिया गार्डन्स में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान माउंटबैटन का मुख्यालय हुआ करता था। यह श्रीलंका का सबसे बडा बोटैनिकल गार्डन तो है ही, भारत में भी इतनी विविध्ता वाला बोटैनिकल गार्डन बामुश्किल ही देखने को मिलेगा। कई तरह के पेड़, पौध्, लताएं, औषध्यि, फूल, बोंजाई- कई दुर्लभ तो कई अत्यंत हैरतअंगेज। मैंने यहां कई ऐसे पेड़ देखे जिनके बारे में कल्पना तक रोमांचित करती थी। एक जमाने में यह शाही उद्यान हुआ करता था। महावेली नदी के किनारे स्थित 147 एकड़ में फैले इस बोटैनिकल गार्डन में आर्किड की तीन सौ से ज्यादा किस्में हैं। इसी तरह यह ताड़ के आसमान छूते पेड़ों के लिए भी प्रसिद्ध है। हर साल 12 लाख से ज्यादा लोग इसे देखने आते हैं। इस बाग का मूल तो 14वीं सदी से ही है, लेकिन दो सौ साल पहले अंग्रेजों के समय में इसे इसकी विविध्ता मिली। बोटैनिकल गार्डन से दो घंटे की ड्राइव पर और कोलंबो से 90 किलोमीटर की दूरी पर पिन्नवला का एलिफेंट आर्फनेज है। 1975 में बने इस आर्फनेज में फिलहाल 100 छोटे-बड़े हाथी हैं और लोग यहां खासतौर पर हाथियों को खाना खाते व बोतल से दूध् पीते देखने आते हैं। इसके बाद उन्हें पास की नदी में नहाते और शरारतें करते देखने के लिए आप घंटों यहां बैठना पसंद करेंगे।
कैसे जाएं: श्रीलंका की एयरलाइंस देश में तमाम जगहों से जुड़ी है। कोलंबो के पास एयरपोर्ट पर उतरने के बाद कैंडी दो घंटे की ड्राइव पर है। कैंडी पहुंचना भी अपने आपमें बहुत मनोहारी है। यूं तो कैंडी को अंग्रेजों ने अपने समय में ही रेल लाइन से जोड़ दिया था, लेकिन कोलंबो से सड़क के रास्ते कैंडी जाने की बात ही कुछ और है। स्पाइस गार्डन, पिन्नावाला हाथी शरणागाह से होकर महावेली नदी के साथ-साथ आप कैंडी पहुंचते हैं।
कहां ठहरें: यहां आप बजट के मुताबिक रिज़ार्ट व होटल चुन सकते हैं।
क्या खाएं: उबला हुआ भुट्टा, ग्रीन टी, रास्ते में मिलने वाला घर का बना दही अन्य डिशेज के साथ जरूर ट्राई करें।