विसर्जन मामले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल

Allahabad-High-Courtवाराणसी। गंगा में प्रतिमा विसर्जन के मसले पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में पक्षकार बनने के लिए अर्जी लगाई। विसर्जन पर जिस बेंच के फैसले का हवाला देकर प्रशासन ने गणेश प्रतिमा को गोदौलिया चौराहे पर रोका था और संतों.भक्तों पर लाठी चलाई थी, उसी खंडपीठ के समक्ष उन्होंने अर्जी दाखिल की है। इस पर सुनवाई सोमवार को होगी। इसमें स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से 2009 में दिए गए एक फैसले को आधार बनाने की तैयारी की है, जिसमें चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय खंडपीठ ने विसर्जन को धार्मिक अधिकार बताते हुए इस पर रोक संबंधी याचिका खारिज कर दी थी। संतों और पूजा समितियों ने उम्मीद जाहिर की है कि जल्द ही इस मामले में परंपरा के पालन के लिए राहत मिल जाएगी।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने दोपहर इलाहाबाद हाईकोर्ट में विसर्जन प्रकरण पर दाखिल मुकदमे में पक्षकार बनने के लिए वकील के जरिए अर्जी दी। इस पर कोर्ट ने 12 अक्तूबर को सुनवाई की तिथि तय की है। अविमुक्तेश्वरानंद के वकील ने पक्षकार बनने के लिए दाखिल अर्जी में वर्ष 2009 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को आधार बनाया है। बताया है कि 2009 में यमुना में दुर्गाए सरस्वतीए गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन से होने वाले प्रदूषण पर रोक लगाने संबंधी दिल्ली के व्यापारी शालेक चंद जैन की याचिका सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन सीजे न्यायमूर्ति केजी बालाकृष्णन और न्यायमूर्ति जेएम पंचाल की खंडपीठ ने खारिज कर दी थी। अविमुक्तेश्वरानंद ने अपनी अर्जी में कहा है कि शालेक चंद्र की याचिका में धारा.21 के तहत व्यक्तिगत जीवन जीने का अधिकार बताते हुए मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाने का आग्रह किया गया थाए जिस पर सीजे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए फैसला दिया कि धारा 25 में देश के नागरिकों को अपने धर्मशास्त्र के अनुसार जीने का अधिकार है। इस पर कोर्ट वक्त जाया नहीं करेगी। इसी फैसले के आधार पर अब गंगा में मूर्ति विसर्जन पर लगाई गई रोक को हटाने की उच्च न्यायालय से दरख्वास्त की गई है।