जानिए कहां है 1300 किलो प्योर गोल्ड से बनी वंशीधर की मूर्ति

gadva jharkhandगढ़वा, झारखंड। झारखंड के रामगढ़ से नजदीक ऐतिहासिक श्रीवंशीधर मंदिर देश ही नहीं बल्कि विदेशों के श्रद्धालुओं के लिये आस्था का केन्द्र है। श्री वंशीधर मंदिर में स्थित श्रीकृष्ण की वंशीवादन करती प्रतिमा की ख्याति देश में ही नही विदेशों में भी है। यहां नटवर श्रीकृष्ण की आदमकद प्रतिमा त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों स्वरुप में विद्यमान हैं। यहां प्रतिवर्ष देश के कोने-कोने एवं विदेशों के भी श्रद्धालु नंदलाला के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। मंदिर में श्रीवंशीधर जी की स्वर्ण प्रतिमा लगभग साढ़े चार फीट की है। श्रीकृष्ण नृत्य व वंशीवादन की मुद्रा में एक गोल कमलदल पर खड़े हैं। इतना तक तो मंदिर में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को तो दिखता है। तथ्य और मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि श्रीवंशीधर जी कमलदल के साथ शेषनाग के फन पर भी स्थित हैं, जो भूगर्भ में गड़े होने के कारण लोगों को दिखाई नहीं पड़ता हैं। प्रतिमा को गौर से देखने पर ज्ञात होता है कि यहां श्रीकृष्ण त्रिदेव के स्वरुप में विराजमान है। यहां स्थित श्रीवंशीधरजी जटाधारी के रुप में दिखाई देते है जबकि शास्त्रों में श्रीकृष्ण के खुले लट और घुंघराले बाल का वर्णन है, किसी ग्रंथ में श्रीकृष्ण के जटा बांधने की चर्चा नहीं है। इस लिहाज से मान्यता है कि श्रीकृष्ण जटाधारी अर्थात देवाधिदेव महादेव के रूप में विराजमान हैं।
श्रीकृष्ण के शेषशैय्या पर होने का वर्णन शास्त्रों में मिलता है लेकिन यहां श्रीवंशीधरजी शेषनाग के उपर कमलपुष्प पर विराजमान हैं, जबकि कमलपुष्प ब्रह्मा का आसन है इस लिहाज से माना जाता है कि कमल पुष्पासीन श्रीकृष्ण कमलासन ब्रह्मा के रुप में विराजमान हैं। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं लक्ष्मीनाथ विष्णु के अवतार है इसलिये विष्णु के स्वरुप में विराजमान हैं। साढ़े चार फीट की स्वर्ण प्रतिमा के बाद कमलदल और शेषनाग की उंचाई लगभग साढ़े तीन फीट की है। कुल मिलाकर लगभग आठ फीट की है तथा यह पूरी प्रतिमा शुद्ध सोने की बनी है। प्रतिमा की कीमत भौतिकवादी युग मे 250 करोड़, पुरातात्विक दृष्टि से ढाई हजार करोड़ रूपये एवं आस्थावानों के लिये अनमोल प्रभु प्रतिमा की कीमत भला कौन लगाये। लगभग 13 कुंतल शुद्ध सोने की बनी प्रतिमा का यूं ही भगवान भरोसे पड़े रहना आश्चर्य चकित नहीं करता स्तब्ध कर देता है। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति का दर्शन कर यकीनन लोग गदगद हो जाते हैं। जानकारी के अनुसार यहां मौजूद मूर्ति राजा को एक स्वप्न में दिखायी दी थी और जब इस मूर्ति को लाने के लिए हाथी भेजा गया तो वह मूर्ति लेकर ज्यादा दूर नहीं चल पाया और जहां हाथी रुक गया वहीं इसको स्थापित कर मंदिर का निर्माण कराया गया।