जगदलपुर। नवरात्र के प्रारंभ से ही स्थानीय सिरहासार में बस्तर दशहरा की महत्वपूर्ण रस्म जोगी बिठाने की प्रथा संपन्न की जाती है। योगी ही बस्तर के दशहरा के संदर्भ में जोगी की संज्ञा पाता है, जो दशहरा दर्शन में प्रमुख भूमिका तो निभाता है किन्तु रथ चालन का साक्षी और दशहरा समारोह का दर्शक नहीं होता बल्कि इसकी अराधना, साधना और संकल्प को सम्मान देते हुए स्थानीय सिरहासार में लोग जोगी का दर्शन करते हैं।
इसी दिन स्थानीय सिरहासार में जोगी बिठाई की रस्म अदा की जाती है। एक मान्यता के अनुसार कभी दशहरा के अवसर पर एक हल्बा आदिवासी दशहरा निर्विघ्न सम्पन्न होने की कामना को लेकर अपने सुविधा के अनुसार योग साधना में लगातार 9 दिनों राजमहल के समीप बैठ गया था। कुछ समय के बाद वह योगी आकर्षण का केन्द्र बन गया। जोगी को बिठाने के लिए सिरहासार के मध्य भाग का चुनाव किया जाता है। जहां एक गढ्ढे में हल्बा जाति का एक व्यक्ति लगातार 9 दिनों तक योगासान की मुद्रा में बैठा रहता है, इस बीच जोगी फलाहार तथा दूध का सेवन करता है।
रियासतकाल में राजा द्वारा चयन किए जाने के पश्चात से ही हल्बा जनजाति का जोगी इस परम्परा का निर्वहन करता आ रहा है। एक ही परिवार से एक जोगी लगातार दो वर्षों तक नहीं बैठता। उसके ही परिवार का दूसरा व्यक्ति दूसरे वर्ष जोगी के रूप में बैठता है। एक वर्ष के अंतराल में बैठने के पीछे जोगी परिवार की मान्यता है कि लगातार दो या दो से अधिक वर्षों तक लगातार परिवार का कोई भी व्यक्ति नहीं बैठता। नवें दिन जोगी के समक्ष इष्ट देवी की पूजा करके जोगी उठाने की रस्म पूजा की जाती है। जोगी अपने स्थान से उठकर नौ दिनों के योग अनुष्ठान विधान से मुक्त हो जाता है।