लोकसेवक करेंगे भ्रष्टाचार तो होगी विजलेंस जांच

up govtलखनऊ। यूपी सरकार ने लोक सेवकों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार, घूसखोरी, दुराचरण, दुव्र्यवहार तथा अन्य कदाचार की शिकायतों की सतर्कता जांच व विवेचना के परिणामस्वरूप दोषी लोक सेवकों के विरुद्ध अभियोजन की संस्तुतियों पर प्रभावी एवं समयबद्ध कार्यवाही सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।
इस सम्बन्ध में एक शासनादेश में समस्त प्रमुख सचिवों, सचिवों, विभागाध्यक्षों, कार्यालयाध्यक्षों, समस्त आयुक्तों तथा जिलाधिकारियों को दिए गए निर्देश में कहा गया है कि लोक सेवकों के विरुद्ध अभियोजन की कार्यवाही को गतिशील एवं प्रभावी बनाने के लिए सतर्कता विभाग द्वारा 15 सितम्बर, 1990 के शासनादेश के तहत दिशानिर्देश जारी किए गए हैं, जिसमें जांचोपरान्त प्राप्त जांच व अन्वेषण आख्या के फलस्वरूप अभियोजन की विधिक पूर्व स्वीकृति प्रदान किए जाने के प्रकरणों में यथोचित निर्णय लेने हेतु समय सीमा निर्धारित की गयी है।
शासनादेश में कहा गया है कि सतर्कता विभाग के शासनादेश 15 सितम्बर, 1990 तथा 5 मार्च, 1993 में निर्धारित प्रक्रिया एवं स्पष्ट समय सीमा के बावजूद कई मामलों में सतर्कता विभाग द्वारा अपचारी लोक सेवकों के विरुद्ध अभियोजन की संस्तुति किए जाने के उपरान्त भी सक्षम स्तर से अभियोजन की स्वीकृति के आदेश प्रशासकीय विभाग द्वारा निर्गत नहीं किए जाते हैं। अभियोजन जैसे संवेदनशील एवं गम्भीर मामलों में इस प्रकार की उदासीनता से दोषी लोक सेवकों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही होनेे में अत्यधिक विलम्ब होने से सतर्कता जांच का उद्देश्य विफल हो जाता है और भ्रष्टाचार पर कठोर अंकुश लगाने की शासन की नीति भी कुप्रभावित होती है।
शासनादेश में कहा गया है कि कमलेश व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य में मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा पारित आदेश दिनांक 1 जुलाई, 2015 में दोषी लोक सेवकों के विरुद्ध अभियोजन की विधिक पूर्व स्वीकृति निर्धारित अवधि में निर्गत किए जाने हेतु दिशानिर्देश दिए गए हैं। उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय द्वारा विनीत नारायण बनाम भारत संघ (1998) में अभियोजन स्वीकृति हेतु दी गई 3 माह की समय सीमा एवं जिन मामलों में अटॉर्नी जनरल या अटॉर्नी जनरल कार्यालय के किसी अन्य विधि अधिकारी से विधिक परामर्श लिया जाना आवश्यक हो, ऐसे मामलों में एक माह का अतिरिक्त समय दिए जाने सम्बन्धी आदेश का उल्लेख करते हुए अभियोजन स्वीकृति के आदेश 3 माह के भीतर एवं असाधारण मामलों में एक अतिरिक्त माह के भीतर निर्गत किए जाने के आदेश दिए गए हैं।
शासनादेश में उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा पारित आदेश दिनांक 1 जुलाई, 2015 की छायाप्रति प्रेषित करते हुए अपेक्षा की गई है कि सतर्कता विभाग द्वारा अभियोजन स्वीकृति हेतु संस्तुत किए गए प्रकरणों में उक्त निर्धारित समय सीमा के अन्तर्गत कार्यवाही सुनिश्चित की जाए। साथ ही, अधीनस्थ विभागाध्यक्षों, सार्वजनिक उद्यमों, निगमों, स्वायत्तशासी संस्थाओं एवं स्थानीय निकायों को भी कठोर कार्यवाही करने के निर्देश दिए जाएं। इसके साथ ही, निर्देशों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित किया जाए, जिससे भ्रष्टाचार पर कठोर अंकुश लगाने की शासन की नीति किसी दशा में कुप्रभावित न हो।