काला धन वापसी के जटिल प्रश्न

black moneyडॉ. अश्विनी महाजन। पिछले साल लोकसभा चुनाव मुख्यतौर पर भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दों पर लड़ा गया। कोयला, 2-जी स्पैक्ट्रम, कॉमन वैल्थ गेम्स समेत कई घोटालों का कैग और अन्य एजेंसियों द्वारा खुलासा होने के बाद देश की जनता ने नई सरकार के गठन हेतु वोट डाला। काले धन के बारे में कई गैर सरकारी अनुमान भी आए। इससे पहले वर्ष 2009 के चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने एस. गुरुमूर्ति के नेतृत्व में एक टॉस्क फोर्स का गठन भी किया था और काले धन के विषय में एक रिपोर्ट भी तैयार हुई थी। काले धन का प्रकार क्या है और काला धन कहां पड़ा है, इस बारे में अटकलें लग रही थीं। इस बारे में भी अटकलें लग रही थीं कि कुल मिलाकर विदेशों में भारत का कितना काला धन पड़ा है। उस समय की सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी विदेशों में काले धन की मात्रा को कम आंक रही थी, लेकिन उसका विरोध कर रहे राजनीतिक दल, अन्य संगठन, बाबा रामदेव और अन्ना हजारे समेत सभी लोग विदेशों में बड़ी मात्रा में पड़े काले धन के बारे में अलग-अलग अनुमान दे रहे थे। 2014 के चुनावों के दौरान उस समय के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी ने यह वादा किया था कि सत्ता में आने के 100 दिन के भीतर काला धन वापिस लाया जाएगा, लेकिन ऐसा हो न सका। इसमें सरकार की ओर से इच्छा शक्ति की कमी से ज्यादा काले धन के मुद्दे की जटिलता बड़ा कारण थी। चुनाव में किए गए वादे के अनुसार देर से ही सही, लेकिन सरकार ने एक कानून पारित किया। हालांकि कुछ लोगों का यह भी कहना था कि नया कानून बनाने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि देश में काले धन के बारे में पहले से पर्याप्त कानून हैं और उन्हें केवल लागू करने की जरूरत है। लेकिन यह भी सही है कि जो नया कानून बनाया गया, उसमें जुर्माने और जेल समेत बहुत-सी सख्त धाराएं जोड़ी गईं।
विदेशों में काले धन के बारे में अलग-अलग अनुमान हैं। कुछ लोग कहते हैं कि यह जीडीपी के 10 फीसदी के बराबर है तो कुछ लोग उसे जीडीपी के 100 फीसदी तक भी बताते हैं, यानी 2 खरब डालर से थोड़ा-सा कम। सीबीआई इसे 500 अरब डालर कहती है तो अमेरिका की ग्लोबल फाइनेंसिएल इंटेग्रिटी इसे 440 अरब डालर बताती है। भारतीय जनता पार्टी के अनुसार विदेशों में पड़ा काला धन इतना है कि अगर उसे बांट दिया जाए तो हर नागरिक के हिस्से 15 लाख रुपए आएंगे। कई लोगों का यह मानना है कि भारतीयों द्वारा विदेशों में पड़े काले धन को किसी न किसी रूप में भारत में वापिस लाया जाता है। उसमें से एक तरीका शेयर बाजार में पैसा लगाने वाले विदेशी संस्थागत निवेशकों के माध्यम से काला धन लाए जाने का है। इस तरीके में पार्टिसिपेटरी नोट्स के माध्यम से पैसा लाया जाता है। गौरतलब है कि विदेशी संस्थागत निवेशक पार्टिसिपेटरी नोट्स बेचकर धन इक_ा करते हैं और इस माध्यम से पैसे के स्रोत के बारे में जानकारी नहीं होती। पिछले कुछ समय से यह मुद्दा खासा गरमाया हुआ है कि इस तरीके से न केवल काला धन रखने वाले लोग बिना टैक्स दिए शेयर बाजार में पैसा लगा सकते हैं, बल्कि उग्रवादी संगठन भी इस माध्यम से भारत के शेयर बाजार में पैसा लगाकर लाभ कमा रहे हैं।
यही नहीं, अलग-अलग मुल्कों में टैक्स के अलग-अलग कानून होने का भी काले धन वाले लोग फायदा उठाते हैं और टैक्स हैवन मुल्कों के जरिए देश में काला धन लाने में सफल हो जाते हैं। भारत सरकार ने पहले से ही विभिन्न मुल्कों के साथ दोहरे कर आवंचन (डीटीएटी) संधियां कर रखी हैं, जिसके कारण इन लोगों को देश में पैसा ट्रांसफर करने में न तो कोई अड़चन आती है और न कोई टैक्स देना पड़ता है। गौरतलब है कि एक छोटे से मुल्क मॉरिशस, जिसकी जीडीपी बहुत ही कम है, से भारत में आने वाले निवेश का 40 प्रतिशत आता है। स्पष्ट है कि मॉरिशस मार्ग का लाभ उठाकर विदेशी ही नहीं, काला धन रखने वाले भारतीय लोग भी देश में पैसा ले आते हैं। सरकार ने कहा है कि सितंबर 30 तक विदेशों में रखे काले धन को घोषित कर बड़े जुर्माने और जेल से बचा जा सकता है। यदि काले धन को घोषित कर दिया जाता है तो 30 प्रतिशत कर और 30 प्रतिशत जुर्माना यानी 60 प्रतिशत देकर पैसा देश में लाया जा सकता है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने यह कहा कि ऐसा न करने पर काला धन रखने वालों की मुसीबत आ सकती है, क्योंकि 2017 तक सरकार अपनी सूचना को सार्वजनिक कर देगी। लेकिन साथ ही साथ इस बाबत यह भी चिंता व्यक्त की जा रही है कि कानून इतना सख्त है कि छोटे स्तर पर अफसर लोगों को परेशान कर सकते हैं। इसके लिए सरकार इस कानून के लागू करने के बारे में कुछ नियम बना रही है। नए मानकों के अनुसार इस कानून के बारे में निर्णय लेने का अधिकार केवल संयुक्त कमिश्नर स्तर के अधिकारी को ही होगा। इस कानून को लागू करने में यह कठिनाई आएगी कि संयुक्त कमिश्नरों के स्तर पर बड़ी संख्या में भर्ती नहीं हुई है। इसलिए इस कानून को लागू करना भी एक चुनौती होगा। इसमें बड़ी चुनौती यह भी है कि किसी सख्त कानून के अभाव में बड़े धनाढ्य लोगों ने बड़ी मात्रा में काला धन विदेशों में भेज दिया था। ऐसा मत व्यक्त किया जा रहा है कि इनमें से कुछ बिजनेस वालों समेत प्रभावशाली लोग भी हैं। इस कारण से भी इस कानून के हिसाब से सरकार को खुलासे करने में मुश्किल आ सकती है।
वर्तमान में कितना काला धन विदेशों में है और कितना वापिस आ पाएगा, इस पर तो सवालिया निशान है ही, लेकिन सोचना यह होगा कि भविष्य में लोग काला धन कमाने और उसे विदेशों में रखने से बाज आएं। नए तरीके खोजने होंगे, ताकि कॉरपोरेट के लोगों द्वारा विदेशों में रखा काला धन वापिस आ सके। यही नहीं, विदेशों से दोहरे कर आवंचन की संधियों का जो दुरुपयोग कॉरपोरेट घरानों द्वारा किया जा रहा है, उस पर भी लगाम लगाना जरूरी है। चूंकि मॉरिशस में नाममात्र का टैक्स है, इसलिए भारत में उन पर टैक्स लगाया जाना चाहिए। इसके लिए मॉरिशस समेत कई अन्य मुल्कों से संधि को बदला जाना जरूरी है।
देश में जहां गरीबी के उन्मूलन और विकास के लिए धन का अभाव है, वहीं अमीर और भ्रष्टाचारी लोगों द्वारा विदेशों में काला धन रखने और उसे गलत तरीके से भारत में लाने में किसी भी प्रकार की सुविधा देना देश के हित में नहीं है। इस बाबत सख्ती करने, कानूनों और विदेशों से संधियों में बदलाव निहायत ही जरूरी हैं, ताकि भविष्य में भ्रष्टाचारी लोग काला धन कमाने और उसे विदेशों में ले जाने की हिम्मत न कर पाएं।