ललित गर्ग। जिन्दगी के सवालों से घिरा वक्त जीवन के सच को ढूंढऩे की कोशिश कर रहा है। यह कोशिश अतीत से वर्तमान तक होती रही है। अनेक महापुरुषों ने इसके लिये अपना जीवन होम कर दिया। इसी जीवन के सच की सांसों की बांसुरी में सिमटे हैं कितने ही अनजाने-अनसुने सुर जो बुला रहे हैं अपनी ओर, बाहें फैलाए हुए। हमें बिना कुछ सोचे, ठिठके बगैर, भागकर जिंदगी की पगडंडी को ढूंढ लेना चाहिए। लेकिन क्या कारण है कि हम चाह कर भी जिन्दगी का सच नहीं ढूंढ़ पाये?…
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अर्थ एवं विकास के असन्तुलन से उपजी समस्याएं
ललित गर्ग। पैसे के बढ़ते प्रवाह में दो तरह की स्थितियां देखने को मिल रही है। एक स्थिति में अर्थ के सर्वोच्च शिखरों पर पहुंचे कुछ लोगों ने जनसेवा एवं जन-कल्याण के लिये अपनी तिजोरियां खोल रहे हैं तो दूसरी स्थिति में जरूरत से ज्यादा अर्जित धन का बेहूदा एवं भोंडा प्रदर्शन कर रहे हैं। जहां कुछ वैभवसम्पन्न घराने आदर्श बन रहे हैं तो वहीं कुछ तिरस्कार की दृष्टि से देखे जा रहे हैं। अर्थ एवं विकास के असन्तुलन से अनेक समस्याएं पैदा की है और उन्हीं से आतंकवाद, नक्सलवाद,…
Read Moreअणुव्रत के आदर्शों का हो नया भारत
ललित गर्ग। सत्तर वर्ष पूर्व भारत की स्वतंत्रता के बुनियादी पत्थर पर नव-निर्माण का सुनहला भविष्य लिखा गया था। इस लिखावट का हार्द था कि हमारा भारत एक ऐसा राष्ट्र होगा जहां न शोषक होगा, न कोई शोषित, न मालिक होगा, न कोई मजदूर, न अमीर होगा, न कोई गरीब। सबके लिए शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा और उन्नति के समान और सही अवसर उपलब्ध होंगे। आजादी के सात दशक बीत रहे हैं, अब एक बार पुन: नये भारत, स्वर्णिम भारत एवं अणुव्रत के आदर्शों का भारत बनाने के लिये हम तत्पर…
Read Moreजन-गण की पीड़ाओं से लबरेज है: एक पेड़ छतनार
दिनेश कुमार शुक्ल की कविता में जीवन और जन के राग का उत्सव है जो आश्चर्य नहीं कि अक्सर छन्द में आता है, नहीं तो छन्द की परिधि पर कहीं दूर-पास मँडराता हुआ। उनकी कविता समय की समूची दुखान्तिकी से परिचित है, उस पूरे अवसाद से भी जिसे समय ने अपनी उपलब्धि के रूप में अर्जित किया है, लेकिन वह उम्मीद की अपनी ज़मीन नहीं छोड़ती। कारण शायद यह है कि जन-जीवन, लोक-अनुभव और भाषा के भीतर निबद्ध जनसामान्य के मन की ताकत की एक बड़ी पूँजी उनके पास है।…
Read Moreभयमुक्त इंसान ही आनन्द का पात्र
ललित गर्ग। वर्तमान की जटिल जीवन शैली के कारण आज के जनमानस पर असुरक्षा एवं भय का व्यापक प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहा है। उससे मुक्त होने के लिए अपनी वृत्तियों और भावनाओं में सकारात्मक सोच को विकसित करना होगा अन्यथा इस समस्या से छुटकारा नहीं पा सकते। दूसरों का सहयोग और मार्गदर्शन एक सीमा तक उपयोगी हो सकता है, लेकिन चलना स्वयं को ही होगा, बंधनमुक्त बनना होगा। क्योंकि बंधा आदमी कष्टों से बहुत जल्द घबरा जाता है और घबराया मन कभी कोई नई साहसिक कार्य नहीं करना चाहता, वह…
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