तीन साल बाद क्रांति की भ्रांति

हरीश खरे। कहते हैं 26 मई, 2014 को राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में एक क्रांति का पदार्पण हुआ था। तीन साल बाद यह साफ जाहिर है कि उस आडम्बर को अभी फीका नहीं पडऩे दिया गया है। और तो और क्रांतिकारियों ने भी अपना जज्बा नहीं गंवाया है। क्रांति और उसके पुरोधा न तो थके हैं और न ही उनके कदम रुके हैं। अपने समय के महानतम प्रवचक के तौर पर प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा धुंधली भी नहीं हुई है। तिरुवल्लुवर के शब्दों में कहें तो उनकी वाणी का वरदान है।…

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असुरक्षित हाईवे

विकास के प्रतीक बताये जा रहे यमुना एक्सप्रेस वे के निकट सरेआम कार रोककर हत्या व सामूहिक दुष्कर्म हो जाये और घंटों पुलिस न पहुंचे तो कानून व्यवस्था की धज्जियां ही उड़ती हैं। अपराधियों को उत्तर प्रदेश छोडऩे की मुख्यमंत्री की चेतावनी के बाद अपराधी जिस तरह बेधड़क होकर अपराधों को अंजाम दे रहे हैं, उससे लोगों का कानून व्यवस्था से भरोसा ही उठता जा रहा है। कैसी विडंबना है कि किसी मरीज को देखने जा रहे परिवार पर आफतों का ऐसा पहाड़ टूटा कि वो जीवनभर इस त्रासदी से…

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सुकमा की शहादत का मुंहतोड़ जबाव हो

ललित गर्ग छत्तीसगढ़ के सुकमा क्षेत्र में नक्सलवादियों ने २६ सीआरपीएफ जवानों की नृशंस हत्या करके करोड़ों देशवासियों को आहत किया है। इस प्रकार की अमानवीय एवं नृशंस हत्या ने हर बार की तरह अनेक सवाल पैदा किये हैं। मुख्य सवाल तो यही है कि क्या हमारे सुरक्षाकर्मियों की जान इतनी सस्ती है कि उन्हें इस तरह बार-बार नक्सलियों से जूझना पड़ता है? क्यों अपनी जान देनी पड़ती है? बार-बार सरकार का यह कहना कि शहीदों की शहादत व्यर्थ नहीं जायेगी, तो फिर हम कब इस शहादत का मुंह तोड़…

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लालबत्ती के आतंक से मुक्ति की नई सुबह

 ललित गर्ग  देश में वीवीआईपी कल्चर को खत्म करने के लिए नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने ऐतिहासिक निर्णय लिया है। इस फैसले के बाद शान समझी जाने वाली लालबत्ती वाहनों पर लगाने का अधिकार किसी के पास नहीं होगा। इस निर्णय से राजनीति की एक बड़ी विसंगति को न केवल दूर किया जा सकेगा, बल्कि ईमानदारी एवं प्रभावी तरीके से यह निर्णय लागू किया गया तो समाज में व्याप्त लालबत्ती संस्कृति के आतंक से भी जनता को राहत मिलेगी। क्योंकि न केवल कीमती कारों में बल्कि लालबत्ती लगी गाड़ियों में धौंस…

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कठोर तप की पूर्णता के पचास वर्ष

ललित गर्ग। आज के भौतिकवादी एवं सुविधावादी युग में जबकि हर व्यक्ति अधिक से अधिक सुख भोगने के प्रयत्न कर रहा है, ऐसे समय में एक जैनसंत जैन धर्म के कठोर तप – वर्षीतप का पचासवां वर्षीतप कर एक नया इतिहास बनाया है। अध्यात्म के क्षेत्र में तप का सर्वाधिक महत्त्व है। भारत के ख्यातनामा ऋषि-महर्षि-संतपुरुष आत्मसाक्षात्कार के लिए बड़ी-बड़ी तपस्याएँ करते रहे हैं और उत्कृष्ट कोटि की साधना में लीन रहे हैं। जो एक आत्मा को समग्र रूप से जान लेता है वह पूरे ब्रह्मांड को जान लेता है।…

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