वोट के नाम पर धर्म और जाति के उलझे धागे

ललित गर्ग। पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर व गोवा के चुनावी कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही विभिन्न राजनीतिक दल अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिये धर्म एवं जाति के कंधे पर सवार हो गयी है। जबकि धर्म और जाति के नाम पर वोट की राजनीति करना गैरकानूनी है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में जाति, धर्म, भाषा और समुदाय के नाम पर वोट मांगने को गैर कानूनी करार दिया है लेकिन राजनीतिक दलों पर इसका कोई…

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बेरोजगारी, अशांति एवं असन्तुलन की आशंकाएं

ललित गर्ग। संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने ‘2017 में वैश्विक रोजगार एवं सामाजिक दृष्टिकोण’ पर हाल ही में अपनी रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के अनुसार रोजगार की जरूरतों के कारण आर्थिक विकास पिछड़ता प्रतीत हो रहा है और इसमें पूरे 2017 के दौरान बेरोजगारी बढ़ने तथा सामाजिक असामनता की स्थिति के और बिगड़ने की आशंका जताई गई है। इस रिपोर्ट में दुनिया में अशांति की संभावनाओं को उजागर किया गया है और इसका मूल कारण बढ़ती बेरोजगारी, असमानता और अच्छी नौकरियों की कमी को माना है। विशेषतः दुनिया…

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सपा का घमासान लोकतंत्र पर प्रहार

सुरेश हिंदुस्थानी। उत्तरप्रदेश में चल रहा समाजवादी पार्टी का घमासान देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर करारा प्रहार कहा जा सकता है। राजनीतिक पार्टियां लोकतांत्रिक व्यवस्था का भले ही दम भरती हों, लेकिन इस प्रणाली का राजनीतिक दलों के नेता कितना पालन करते हैं, यह कई बार देखा जा चुका है। पूरी तरह से एक ही परिवार पर केन्द्रित समाजवादी पार्टी अलोकतांत्रिक रुप से आगे बढ़ती हुई दिखाई देने लगी है। समाजवादी पार्टी की खानदानी लड़ाई के चलते पिछले कई दिनों से समाचार पत्रों व विद्युतीय प्रचार तंत्र की मुख्य खबर…

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सेना की साख में सुराख होना चिन्तनीय

ललित गर्ग। कभी-कभी एक आवाज करोड़ों की आवाज बन जाती है। जब कोई मानव का दम घुट रहा हो और वह घुटन से बाहर आना चाहता है तो उसकी आवाज एक प्रतीक बन जाती है। ऐसा ही बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव और सीआरपीएफ के एक जवान का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद हुआ है। सुरक्षा बलों और सेना के जवान की मनोस्थिति को समझने एवं सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार की गहराई को जानने के लिए यह पर्याप्त हैं। इन वीडियो ने पूरे देश में हलचल मचा…

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बचपन मुस्कुराने से महरूम न हो जाए

ललित गर्ग। इन दिनों बन रहे समाज में बच्चों की स्कूल जाने की उम्र लगातार घटती जा रही है, बच्चों के खेलने की उम्र को पढ़ाई-लिखाई में झोंका जा रहा है, उन पर तरह-तरह के स्कूली दबाव डाले जा रहे हैं। अभिभावकों की यह एक तरह की अफण्डता है जो स्टेटस सिम्बल के नाम पर बच्चों की कोमलता एवं बालपन को लील रही है, जिसके बड़े घातक परिणाम होने वाले है। इससे परिवार परम्परा भी धुंधली हो रही है। तने के बिना शाखाओं का और शाखाओं के बिना फूल-पत्तों का…

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