नये सिरे से परिभाषित करें नेतृत्व

हरीश खरे। बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति का पद खाली कर चुके हैं। वह पद जो दुनिया में सबसे ताकतवर और सबसे प्रभावशाली माना जाता है। उनके स्थान पर अमेरिकियों ने जिस व्यक्ति को चुना है, उन्होंने कभी किसी निर्वाचित पद को कभी नहीं संभाला और न ही जनसेवा का उनका कोई रिकार्ड है। आधुनिक जगत का विज्ञापन तंत्र और सोशल मीडिया के लोग यह सुनिश्चित करते हैं कि विजेता तो सर्वगुण सम्पन्न है। डोनाल्ड ट्रम्प को अमेरिकी लोकतंत्र के तमाम गुणों से सुशोभित किया जा रहा है और उन्हें…

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गणतंत्र का नया सूरज उगाना होगा

ललित गर्ग। यही वही 26 जनवरी का गौरवशाली ऐतिहासिक दिन है जब भारत ने आजादी के लगभग 2 साल 11 महीने और 18 दिनों के बाद इसी दिन हमारी संसद ने भारतीय संविधान को पास किया। खुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करने के साथ ही भारत के लोगों द्वारा 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। अड़सठ वर्षों के बावजूद आज भी हमारा गणतंत्र कितनी ही कंटीली झाडिय़ों में फँसा हुआ प्रतीत होता है। अनायास ही हमारा ध्यान गणतंत्र की स्थापना से लेकर ‘क्या पाया,…

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सामाजिक भेदभाव बढ़ा रहे हैं पर्सनल कानून

सुरेश हिंदुस्थानी। भारत में सम्प्रदाय के बने लिए निजी कानूनों को लेकर हमेशा बहस होती रही है। इस बहस में हमारे देश के राजनीतिक दल भी शामिल हो जाते हैं। प्राय: कहा जाता है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है, लेकिन यह धर्मनिरपेक्षता कहीं भी दिखाई नहीं देती। सरकार ने कुछ किया तो दूसरा दल उसका विरोध करने लगता है। फिर चाहे वह उसकी नीतियों में शामिल हो या न हो। इसमें एक बात का अध्ययन करना जरुरी है कि धर्म निरपेक्षता कहीं न कहीं समाज में भेद को…

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मोहभंग की वजह भी तलाशिये

क्षमा शर्मा। हाल ही में दिल्ली के प्रगति मैदान में नौ दिन चला पुस्तक मेला समाप्त हुआ। इस बार इसका थीम स्त्री लेखन पर केंद्रित था। इसे नाम दिया गया था-मानुषी। बताया गया कि नोटबंदी और ठंड के बावजूद मेले में पुस्तक प्रेमी बड़ी संख्या में आए। किताबें बिकीं भी खूब। अखबारों की खबरों में यह भी कहा गया कि इस बार किताबों की बिक्री से प्रकाशक बहुत खुश हैं। लेकिन प्रकाशकों के जिस वक्तव्य पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया, वह यह था कि इस बार लोग कहानी, कविता,…

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लोकतंत्र के दुर्ग में अनैतिक मूल्यों के छिद्र

ललित गर्ग। इन दिनों सभी दलों द्वारा विभिन्न जातियों में समीकरण बैठाने की कोशिशें की जा रही हैं। पंजाब में तो धार्मिक स्थान राजनीतिक मंच बने हुए हैं। हर कोई डेरों की तरफ दौड़ रहा है। किसी नेता को अर्जुन के रूप में पेश किया जा रहा है तो किसी को भगवान श्रीकृष्ण। कुछ राजनीतिक दल देने की मुद्रा यानी दाता के रूप में खड़े हैं तो कुछ लेने वाले के रूप में। राजनीतिक जोड़-तोड़ के विचित्र खेल चल रहे हैं। जिसके पास जितने अधिक जाति एवं धर्म आधारित वोट…

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