भारतीय रुपये का इतिहास

डा.राधेश्याम द्विवेदी। रुपया शब्द का उद्गम संस्कृत के शब्द ‘रुप् या ‘रुप्याह् में निहित है, जिसका अर्थ चाँदी होता है और ‘रूप्यकम् का अर्थ चाँदी का सिक्का होता है। मुद्राओं के रंग-रूप और मूल्य कई बार बदले गये हैं. उनमें जालसाजी रोकने के लिए सुरक्षा के उपाय किये जाते रहे हैं. भारत में पहले चीन में चंगेज खां के पोते कुबलाई ख़ान (1260-1264) के शासन में ‘छाओ’ नामक सांकेतिक कागज़़ी मुद्रा चलती थी.दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक ने पहली बार साल 1329-1330 में टोकन करेंसी चलाई थी. उन्होंने चीन…

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नोटबंदी की समीक्षा

डा.राधेश्याम द्विवेदी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को जब यह घोषणा की कि केवल चार घंटे बाद में 500 और 1000 के नोट बड़े नोट चलना बंद हो जाएंगे तो पूरा देश सन्न रह गया. यह सरकार का ऐतिहासिक निर्णय है जिससे पूरा देश प्रभावित है. संसद में कामकाज ठप है और आम लोगों का जीवन भी पूरी तरह प्रभावित है. सरकार के इस निर्णय से देश के का 86 प्रतिशत कैश बेकार हो गया, इस स्थिति ने देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला है. सबसे बड़ा…

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70 वर्ष : भारतीय सुरक्षा का रिपोर्ट कार्ड

वी. पी. मलिक। पिछले सत्तर साल का भारत का सुरक्षा संबंधी रिपोर्ट कार्ड अच्छे अंकों वाला ज्यादा है। लेकिन इसका श्रेय हमारी नीतियों को दिए जाने की बनिस्पत ठोस धरातल पर बनाई गई सामरिक योजनाओं और इनको क्रियान्वित करने वालों को दिया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया का सूत्रपात आजादी के तुरंत बाद ही शुरू हो गया था। चीन के साथ हुई 1962 की लड़ाई वाला कटु अध्याय छोड़ दिया जाए तो बाकी के सभी युद्धों में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा अक्षुण्ण रही है लेकिन बहुत बलिदानों और मुश्किल से प्राप्त…

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जमीन पर भी दिखें नोटबंदी के फायदे

भरत झुनझुनवाला। नोटबंदी के साहसिक कदम के लिये सरकार की जितनी बार सराहना की जाये वह कम ही होगी। इस कदम से आम जनता पर दो तरह का प्रभाव पड़ रहा है। तत्काल भारी समस्या है। सब्जी खरीदने को नगद उपलब्ध नहीं है। लेकिन यह समस्या एक या दो माह तक ही विद्यमान रहेगी। रिजर्व बैंक द्वारा नये नोट छापकर शीघ्र ही बैंकों को उपलब्ध कराये जायेंगे। कुछ ही समय में जीवन पुन: पटरी पर आ जायेगा। जनता इस कष्ट को सहर्ष ही बर्दाश्त कर रही है। सर्वे बताते हैं…

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एशिया केंद्रित नीति के यक्ष प्रश्न

एस. निहाल सिंह। वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की बहुचर्चित पिवेट-टू-एशिया (एशिया-की-धुरी) नामक नीतियां रही हैं, जिसके तहत मध्य-पूर्वी देशों और दक्षिण चीन सागर को लेकर बनाई गई विदेश नीतियों को एशिया के संदर्भ में सबसे अहम माना जाता था। क्या नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप भी इस लीक पर कायम रहेंगे? पीछे मुड़कर देखें तो वैसे भी यह नीति बातों में ज्यादा और अमल में कम ही लाई गई थी। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा 12 देशों के संगठन वाली ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप संधि (टीपीपी-जिसमें चीन शामिल नहीं था), रद्द कर देने…

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