जयललिता के बाद तमिलनाडु की राजनीति

जे. जयललिता यानी एक ऐसी शख्सियत, जिसकी पहचान ही एक विजेता की थी। तमिलनाडु की द्रविड़ राजनीति को एक नया मोड़ एमजी रामचंद्रन ने एआईडीएमके बनाकर दिया, तो जयललिता ने उसे एक अलग शक्ल ही दे डाली। उनकी राजनीति कांग्रेसी, समाजवादी, मंडलवादी और हिंदूवादी राजनीति से अलग थी। इसे हम सिर्फ और सिर्फ जयललिता शैली की राजनीति कह सकते हैं। इसके केंद्र में एक तरफ जयललिता का अमोघ आकर्षण था तो दूसरी ओर महिलाओं, किसानों और थेवर समुदाय का मजबूत जनाधार। यहां से शुरू करके धीरे-धीरे जयललिता एक बड़े जनसमुदाय…

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सदमे में बोरियां-तिजोरियां

शमीम शर्मा। न तो मोदी ने तैयारी की और न किसी को करने दी। एकदम ही खड़का कर दिया। मन की बात तो मोदी जी हर सप्ताह करते रहे पर मन में क्या उथल-पुथल हो रही थी, उसकी किसी को भनक भी नहीं लगने दी। इसी चक्कर में सारा देश नोटों में लटपट हो गया। दबे पड़े खजानों को ठिकाने लगाने में बड़ों-बड़ों का सिर चकरा गया। बोरियां और तिजोरियां खाली करने में नानी याद आ गई। आम आदमी को अपने टोटे पर पहली बार गर्व हुआ। न किसी का…

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तिल का ताड़: ममता की राजनीति

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राज्य के कुछ हिस्सों में सैनिकों की मौजूदगी को लेकर जिस तरह हो-हल्ला मचाया, उससे हर कोई हतप्रभ है। किसी भी चीज पर बवाल काट देना ममता का स्वभाव रहा है, लेकिन वह सेना को भी इस तरह राजनीति में घसीट लेंगी, यह शायद ही किसी ने सोचा हो। उनके इस कदम से उन राजनीतिक दलों को भी झटका लगा है, जो उनके साथ मिलकर नोटबंदी के फैसले पर केंद्र सरकार के विरुद्ध अभियान चला रहे हैं। सीपीएम ने साफ कहा कि…

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शाहखर्ची जलाती है लाखों चूल्हे

अभिषेक कुमार। बहुत से भारतीय दुनिया के अरबपतियों की सूची में शामिल हैं और यह तर्क दिया जाता है कि भारत के अमीरों को गरीबों के लिए और ज्यादा करना चाहिए। उन्हें अपनी संपत्ति में से कुछ दान करना चाहिए और ऐसे आयोजन करने चाहिए, जिनसे रोजगार पैदा हों। अमीरों और राजसी परिवारों में आमतौर पर होने वाली शादियों के ज्यादा चर्चे उनमें होने वाले खर्च की वजह से होते हैं, पर उनका एक पहलू यह है कि वैभव दर्शाने वाला यह आयोजन कई तरह के रोजगार और कई तबकों…

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अगर बदलाव लाना है तो कानून नहीं सोच बदलनी होगी

डॉ नीलम महेंद्र। नोट बंदी के फैसले को एक पखवाड़े से ऊपर का समय बीत गया है  बैंकों की लाइनें छोटी होती जा रही हैं और देश कुछ कुछ संभलने लगा है। जैसा कि होता है  ए कुछ लोग फैसले के समथज़्न में हैं तो कुछ इसके विरोध में  स्वाभाविक भी है किन्तु समथज़्न अथवा विरोध तकज़्संगत हो तो ही शोभनीय लगता है। जब किसी भी कायज़् अथवा फैसले पर विचार किया जाता है तो सवज़्प्रथम उस कायज़् अथवा फैसले को लागू करने में निहित लक्ष्य देखा जाना चाहिए यदि…

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