राखी के धागों से जुड़ी है मानवीय संवेदनाएं

ललित गर्ग। रक्षाबंधन यानी सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता एवं एकसूत्रता का सांस्कृतिक पर्व। प्यार के धागों का एक ऐसा पर्व जो घर-घर मानवीय रिश्तों में नवीन ऊर्जा का संचार करता है। बहनों में उमंग और उत्साह को संचरित करता है, वे अपने प्यारे भाइयों के हाथ में राखी बांधने को आतुर होती हैं। बेहद शालीन और सात्विक यह पर्व सदियों पुराना है- तब से अब तक नारी सम्मान एवं सुरक्षा पर केन्द्रित यह विलक्षण पर्व है। इस दिन बहनें अपने भाई के दायें हाथ पर राखी बाँधकर उसके माथे पर…

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ये पब्लिक है सब जानती है, ये पब्लिक है

इलेक्ट्रोनिक बैंकिंग के बढ़ते चलन के साथ ही बढ़ती धोखाधड़ी की घटनाओं के मद्देनजर उन पर नियंत्रण के उपाय जितने जरूरी हैं, जिम्मेदारी और जवाबदेही भी उतनी ही जरूरी है। इस लिहाज से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा तैयार ग्राहक सुरक्षा प्रस्ताव सही दिशा में सही कदम लगता है। देखा गया है कि इलेक्ट्रोनिक बैंकिंग में धोखाधड़ी का खमियाजा ग्राहक को ही भुगतना पड़ता है, भले ही उसकी उसमें कोई भूमिका न रही हो। ऐसी धोखाधड़ी की सूचना ग्राहक द्वारा दे दिये जाने के बावजूद बैंक अपनी जिम्मेदारी-जवाबदेही से पल्ला झाड़…

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विश्वास की रक्षा ही रक्षाबंधन

बरुण कुमार सिंह। भारतीय परम्परा में विश्वास का बंधन ही मूल है। रक्षाबंधन इसी विश्वास का बंधन है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बांधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता, वरन प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बांधने का भी वचन देता है। पहले आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिए किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। सूत्र अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र बिखरे हुए मोतियों को अपने में…

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असम में होता हिंसा का कारोबार

असम के कोकराझार जनपद में बोडो उग्रवादियों की हालिया हिंसा में चौदह निर्दोषों को जान गंवानी पड़ी। नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड, सोंगबिजित गुट पर इस हिंसा का आरोप लगा है। यह संगठन एनडीबीएफ से 2005 में सरकार से हुए शांति समझौते के बाद अलग होकर हिंसक आंदोलन चलाता रहा है। असम की एक-तिहाई आबादी वाले बोडो समुदाय की अलग पहचान की मांग कालांतर हिंसक संघर्ष में बदल गई। संगठन का एक गुट सरकार में शामिल रहता है तो दूसरा गुट बंदूक थामे रहता है। कभी आदिवासियों, कभी मुस्लिमों तो…

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नये सपने बुनकर स्वतंत्रता को सार्थक दिशा दें

ललित गर्ग। पन्द्रह अगस्त हमारे राष्ट्र का गौरवशाली दिन है, इसी दिन स्वतंत्रता के बुनियादी पत्थर पर नव-निर्माण का सुनहला भविष्य लिखा गया था। इस लिखावट का हार्द था कि हमारा भारत एक ऐसा राष्ट्र होगा जहां न शोषक होगा, न कोई शोषित, न मालिक होगा, न कोई मजदूर, न अमीर होगा, न कोई गरीब। सबके लिए शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा और उन्नति के समान और सही अवसर उपलब्ध होंगे। मगर कहां फलित हो पाया हमारी जागती आंखों से देखा गया स्वप्न? कहां सुरक्षित रह पाए जीवन-मूल्य? कहां अहसास हो सकी…

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