असम में होता हिंसा का कारोबार

terrorismअसम के कोकराझार जनपद में बोडो उग्रवादियों की हालिया हिंसा में चौदह निर्दोषों को जान गंवानी पड़ी। नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड, सोंगबिजित गुट पर इस हिंसा का आरोप लगा है। यह संगठन एनडीबीएफ से 2005 में सरकार से हुए शांति समझौते के बाद अलग होकर हिंसक आंदोलन चलाता रहा है। असम की एक-तिहाई आबादी वाले बोडो समुदाय की अलग पहचान की मांग कालांतर हिंसक संघर्ष में बदल गई। संगठन का एक गुट सरकार में शामिल रहता है तो दूसरा गुट बंदूक थामे रहता है। कभी आदिवासियों, कभी मुस्लिमों तो कभी हिंदी भाषी प्रवासियों को निशाना बनाया जाता रहा है। बोडो बहुल चार जनपदों में स्वायत्त बोडो परिषद और आरक्षण जैसे मुद्दों पर सहमति के बावजूद ये गुट अलग बोडो राज्य की मांग कर रहे हैं। दिक्कत यह है कि इसमें पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों के बोडो बहुल इलाकों को भी शामिल करने की मांग की जाती रही है जो व्यवहार में संभव नहीं है। दरअसल ये संगठन उगाही व आतंक के धंधे में इस तरह लिप्त हो चले हैं कि मुख्यधारा में शामिल होना इन्हें रास नहीं आता। पूर्वोत्तर में शांति स्थापना के लक्ष्य के मद्देनजर सरकार से सख्त कदम उठाने की उम्मीद की जाती रही है।
बोडो उग्रवादियों ने इस हिंसा के लिये ऐसा वक्त चुना जब सरकार बाढ़ से त्रस्त असम का जनजीवन पटरी पर लाने का प्रयास कर रही है। इस गुट का आकलन था कि मुश्किल वक्त में सरकार पर अपनी मांगों के लिये दबाव बनाना असरकारी रहेगा। एनडीबीएफ के एक घटक के सरकार में शामिल होने पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिये एनडीबीएफ (एस) हथियारों से अपनी बात मनवाने की फिराक में है। सुरक्षाबलों ने चौकस रहते हुए आतंकवादियों को खदेडऩे व एक आतंकवादी को मार गिराकर यह संदेश तो दिया है कि उनकी चुनौती का माकूल जवाब दिया जायेगा। पूर्वोत्तर में सक्रिय चरमपंथी संगठनों को संदेश देना जरूरी है कि पृथकतावाद की हर कोशिश को सख्ती से दबा दिया जायेगा। दरअसल भूटान, बांग्लादेश व म्यांमार की सीमाओं में स्थित शिविरों में इन उग्रवादियों को सुरक्षित पनाहगाह मिली हुई है। आज म्यांमार व भूटान सरकार को विश्वास में लेकर चरमपंथियों के खिलाफ बड़ी मुहिम चलाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। यदि समय रहते ऐसी कार्रवाई नहीं होती तो न केवल असम बल्कि पूर्वोत्तर के अन्य राज्य हिंसा की आग में सुलगते रहेंगे।