स्वतंत्रता दिवस: ये कैसी आजादी है…

मफतलाल अग्रवाल। भारत देश अपनी आजादी का 70वां जश्न (स्वतंत्रता दिवस) मनाने जा रहा है। इस जश्न को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ’70 साल आजादी, याद करो कुर्बानीÓ के नारे के साथ मना रहे हैं। लेकिन क्या वास्तव में अंग्रेजों की गुलामी के बाद देश के आम आदमी को आजादी से जीने का अधिकार हासिल हो सका है? क्या देश को अंग्रेजों द्वारा बनाये कानूनों से मुक्ति मिल सकी? क्या देश को अंग्रेजियत की गुलामी से मुक्ति हासिल हो सकी? क्या सुभाष चन्द बोस, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरू आदि शहीदों…

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अग्निपथ पर प्रचंड की परीक्षा

पुष्परंजन। ‘प्रचंड पथ क्या है? किसी ज़माने में इस पर ज़ोरदार बहस होती रहती थी। नेपाल में माओवाद चीन से नहीं, बल्कि पेरू की कम्युनिस्ट पार्टी ‘शाइनिंग पाथ से प्रभावित रहा है। 1980 के दौर में पेरू में सक्रिय ‘शाइनिंग पाथ के छापामार तौर-तरीक़ों को माओवादियों ने उधार लिया था। पेरू में 70 हज़ार मौतों के लिए जि़म्मेदार ‘शाइनिंग पाथÓ के संस्थापक अबिमाइल गुजमान, नेपाली माओवादियों के मसीहा थे। दक्षिण एशिया में प्रचंड अपनी छवि कुछ ऐसी ही चाहते थे, इसलिए मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद का वैचारिक मिश्रण तैयार कर ‘प्रचंड पथ का नारा…

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अन्तर्राष्ट्रीय युवा दिवस: नौजवान देखें नये समाज निर्माण का स्वप्न?

ललित गर्ग। सारी दुनिया प्रतिवर्ष 12 अगस्त को अन्तर्राष्ट्रीय युवा दिवस मनाती है। सन् 2000 में अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन आरम्भ किया गया था। यह दिवस मनाने का मतलब है कि पूरी दुनिया की सरकारें युवा के मुद्दों और उनकी बातों पर ध्यान आकर्षित करे। न केवल सरकारें बल्कि आम-जनजीवन में भी युवकों की स्थिति, उनके सपने, उनका जीवन लक्ष्य आदि पर चर्चाएं हो। युवाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्तर पर भागीदारी सुनिश्चित की जाए। इन्हीं मूलभूत बातों को लेकर यह दिवस मनाया जाता है। इस दिवस…

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कलिखो पुल की आत्महत्या से जुड़े सवाल

ललित गर्ग। अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल की जिन परिस्थितियों में आत्महत्या की घटना सामने आयी है, वह दुखद तो है ही, उसने अनेक प्रश्न खड़े कर दिये हैं। राजनीति की दूषित हवाओं ने न केवल आम-आदमी को बल्कि सत्ता शीर्ष पर बैठे लोगों को भी इस तरह की घटनाओं के लिये विवश किया है, यह एक देश की छवि को सहज ही आहत करता है। आत्महत्या का नाम जहन में आते ही दिल सहर उठता है लेकिन एक पूर्व मुख्यमंत्री की आत्महत्या का शायद यह पहला प्रकरण…

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चिंतन : निश्चित रूप से नाम की महत्ता है

हृदयनारायण दीक्षित। ऋग्वेद के ज्ञान सूक्त में कहा गया है कि प्रकृति के रूपों को नाम देने से ही ज्ञान की शुरुआत हुई. नाम महत्त्वपूर्ण नहीं है. देखने में रूप की महत्ता है और समझने में रूप विशेष के गुण की. कई बार दृश्यमान रूपों की तुलना में अवधारणा से जुड़े नाम ज्यादा प्रभावित करते हैं. अवधारणा एक दो दिन में नहीं बनती. यूरोपीय विचार का राष्ट्र या नेशन भूमि, जन और संप्रभु राज व्यवस्था का जोड़ है. यहां तीनों घटकों के रूप अलग-अलग हैं. भूमि, जन और राज व्यवस्था…

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