एस. निहाल सिंह। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही की विदेश यात्रा में हमने उन्हें संसार की शक्तिशाली और मशहूर हस्तियों से कसकर गले मिलते देखा, लेकिन अमेरिका की इस पांच दिन लंबी यात्रा से सच में क्या हासिल हुआ? उनकी पहली उपलब्धि यह है कि उनकी और देश की छवि पहले से ज्यादा दिखाई देने लगी है। इसके अलावा दूसरी उपलब्धि यह है कि अमेरिका के राष्ट्रपति और नरेंद्र मोदी के मध्य संवाद का सिलसिला इस बार भी जारी रहा है और तीसरी उपलब्धि यह होगी कि इस दौरे ने…
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सुषमा स्वराज की नेक सलाह माने पाकिस्तान
कृष्णमोहन झा। पाकिस्तान सरकार के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ एक बार फिर हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ अमेरिका में थे परंतु दोनों के बीच बातचीत नहीं हुई। सिर्फ हाथ हिलाकर दोनों ने एक दूसरे का अभिवाद किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने पाकिस्तानी समकक्ष से बातचीत में कोई गुरेज नहीं था परंतु नवाज शरीफ के मन में यह कसक अवश्य थी कि प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सीट की दावेदारी के लिए अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी का समर्थन जुटाने में सफल हो चुके हैं। गौरतलब है कि संयुक्त…
Read Moreआपकी सोच बनाती है आपका व्यक्तित्व
ललित गर्ग। हर व्यक्ति सफल एवं सार्थक जीवन की आकांक्षा रखता है। भौतिक जीवन जीते हुए भी हर व्यक्ति आंतरिक विकास के लिए जागरूक रह सकता है, अपने भीतर की अच्छाई को जिंदा रख सकता है, अच्छा इंसान बनने की यात्रा निरंतर जारी रख सकता है, इसी से जीवन को सार्थकता मिलती है। और यही है अंधकार से प्रकाश का रास्ता। यही है माटी के मंदिर में परमात्मा की प्राण-प्रतिष्ठा का उपक्रम। पर यह सब मनुष्य की सकारात्मक सोच पर निर्भर करता है कि उसे माटी या मोम जैसा बनना…
Read Moreकितना भला करेगी स्टार्टअप कल्चर
पुष्परंजन। प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के बारे में पहले अच्छी-अच्छी बातें कर लें। मोदी जी के मित्र बराक ओबामा ने दो टूक कह दिया कि मसला-ए-कश्मीर भारत-पाक मिलकर ही सुलझाएं। पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को लेकर जो गुब्बारे फुलाये थे, उनकी हवा निकल गई। मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र में इसका संकल्प लिया कि विश्व को हम स्वच्छ वातावरण देंगे। ऐसा पहली बार हुआ कि हमारे देश के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र में ऐलान किया कि भारत में कोयले पर कर दोगुना कर देंगे। यानी, देश में कोयला…
Read Moreसंस्कृति के नाम पर बौद्धिक सेंसरशिप
विश्वनाथ सचदेव। संस्कृति की बात हम अकसर करते हैं। अपनी संस्कृति को दूसरों की संस्कृति से बेहतर मानना तो जैसे किसी का भी स्वयंसिद्ध अधिकार है। पर ऐसा करने वालों से जब संस्कृति का अर्थ पूछा जाता है तो जवाब अकसर गोल-मोल होता है। और अकसर यह बात कोई नहीं समझना चाहता कि संस्कृति किसी भी समाज के जीने का ढंग है, जो परंपरा की परतों से निथरता हुआ समय के साथ नये रूपाकार में प्रकट होता है। जीने का यह ढंग अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों से जुड़ा है-अतीत से…
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