जीवंत समाज के लिए किताबें

नीरज। कभी-कभी मन में आता है कि किसी ने सच ही कहा है कि जब पुस्तकें सड़क के किनारे फुटपाथ पर रखकर बेची जा रही हों और जूते शो-रूम में रखकर तो उस समाज को जूतों की ही जरूरत ज्यादा है, पुस्तकों और ज्ञान की नहीं। यह समय का विडंबनापूर्ण व्यवहार है कि आज हर जगह ऐसी स्थितियां देखने को मिल जाएंगी। एक ओर ऐसी परिस्थितियां बन गयी हैं कि किताबों के प्रति वह स्थान नहीं बन पाता, दूसरी ओर ऐसा वर्ग भी बन गया है कि किताबों आदि के बजाय…

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हर मर्ज की दवा मुआवजा नहीं

रवि पाराशर। यूपी में नोएडा के गांव बिहासड़ा में हुआ कथित गोमांस हत्याकांड सुर्खयि़ों में है, लेकिन मौजूदा दौर की सियासत का एक अजीब-सा पक्ष फिर सामने आ गया है। सरकार ने पीडि़त परिवार को लखनऊ बुलाकर हत्या का बड़ा मुआवजा दे दिया। सवाल यह है कि क्या इस तरह इंसाफ हो जाता है? करीब-करीब सभी सरकारों की सोच इस तरह की ही है। पिछले दिनों जून-जुलाई में दिल्ली सरकार ने राजधानी में एक लड़की की हत्या का मसला केंद्र सरकार के खिलाफ हथियार बनाया। दिल्ली सरकार ने लड़की के परिवार…

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विरासत की राजनीति से आहत लोकतंत्र

विश्वनाथ सचदेव। पता नहीं क्या सोचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में बेटे, बेटी और दामाद का नाम लिया होगा, पर यह सबको पता है कि भारत की राजनीति में बेटों, बेटियों, दामादों, भाइयों, भतीजों की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है। यह सही है कि भाजपा वाले जब राजनीति में परिवारवाद की बात करते हैं तो निशाने पर नेहरू-गांधी परिवार ही होता है, और जब कांग्रेस वाले परिवार की राजनीति पर निशाना साधते हैं तो उनका आशय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मुखियाई वाले संघ परिवार से होता है, पर कन्याकुमारी से लेकर…

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बिहार में यह कैसा चुनाव !

कृष्णमोहन झा। बिहार के विधानसभा चुनावों पर सारे देश की नजरें लगी हुई हैं। इन चुनावों के परिणाम यह तय करेंगे कि क्या वास्तव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई लोकप्रियता में कमी आ चुकी है या वे आज भी देश में उतने ही लोकप्रिय हैं जितने गत लोकसभा चुनावों के समय थे। बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम यह भी तय करेंगे कि क्या सत्ता की खातिर बिहार के मुख्य सत्ताधारी दल जनता दल (यूनाइटेड) का अब राष्ट्रीय जनता दल से चुनावी गठजोड़ करना बिहार की जनता को पसंद आया…

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बिहार चुनाव : बदल रहे समीकरण और सवाल

पुष्पेंद्र कुमार। अब जबकि पहले चरण के चुनाव में मत डाले जाने है, प्रधानमंत्री मोदी ने जैसा कि अपेक्षित था, कांगे्रस, इंदिरा और आपातकाल के खिलाफ संपूर्ण क्रांति कर सियासत का रूप बदलने वाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण की पुण्यतिथि पर लालू-नीतीश की कांगे्रस के साथ महागठबंधन की विडंबना को उभारने के लिए उपयोग किया। बिहार चुनाव की चर्चा जनता परिवार के एकीकरण के दावे से शुरू हुई और समाजवादी पार्टी के बाहर निकल जाने और राजद-जदयू-कांगे्रस के महागठबंधन के बनने में बदल गई। इस महागठबंधन के तीनों ही कोण जनादेश…

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