कहीं फिर ‘तेज-चिराग’ तले अंधेरा न रह जाए

मुरली मनोहर श्रीवास्तव। बिहार की सत्ता पर सभी काबिज होने की कोशिश में हैं। होना भी लाजिमी है।लोकतंत्र में सभी को बराबर का हक है। लेकिन एक बात तो तय है कि सभी कीलड़ाई नीतीश कुमार से ही है। पिछले 15 सालों से नीतीश कुमार बिहार की सत्तापर आसीन हैं। इस दौरान उन्होंने बिजली, पानी, सडक़ को दुरूस्त कर बिहार कोनई दिशा देने का काम किया है। यह किसी से कहने की जरुरत नहीं है। इस विकाससे बिहार ही नहीं बिहार के बाहर भी लोग चर्चा कर रहे हैं। वहीं बिहार की सत्तापर एक तो इनका विकास मुद्दा इन्हें स्थापित किए हुए है। वहीं दूसरी तरफ इनकीराजनीतिक चाल ने भी इन्हें ऊंचा कद देने का काम किया है। आपको याद दिला दूंकि इस सरकार को बनाने के लिए नीतीश कुमार राजद के साथ होकर भाजपा का विरोध कर सत्ता पर काबिज हुए थे। मगर 20 माह के बाद राजद से दूर होकरभाजपा के साथ हो लिए। बिहार में विधानसभा चुनाव में सभी दल अपने-अपने तरीके से अपनी एनर्जी झोंक रही है। कोई किसी को बख्शने के मूड में नहीं है।बिहार की सियासत पर जो लगातार सर्वे आ रहे हैं उसको भी दरकिनार नहीं कियाजा सकता है। एक ताजा सर्वे में भाजपा को 33.8 फीसदी समर्थन दिखाया गया हैजो 2015 में उसे हासिल समर्थन 24.8 फीसदी से 9 फीसदी ज्यादा है। वहीं, जदयूको 14.4 फीसदी वोट दिखाया गया है जो 2015 में उसे मिले 16.7 फीसदी से 2.3फीसदी कम है। एनडीए के भीतर भाजपा को 33.8 फीसदी और जदयू को उसकेआधे से भी कम 14.4 फीसदी वोट मिलने को लेकर क्या कहा जा सकता है, यह तोचुनावी नतीजों के बाद ही पता चल पाएगा। सी वोटर का सर्वे कहता है कि भाजपाको 85 सीटें मिलने जा रही है। वही सर्वे जदयू को 70 सीटें दे रहा है। अब ऐसे मेंएनडीए की बिहार में सरकार बनती हुई दिख रही है। जबकि तेजस्वी का मुख्यमंत्रीका सपना फिर से एक बार औंधे मुंह गिर जाएगा तो चिराग का बिहार कीसियासत पर काबिज होने की मंशा पर भी विराम लग जाएगा।सी वोटर-टाइम्स नाऊ का सर्वे आगे कहता है कि जदयू के वोट का पारा गिरेगा,लेकिन सीटें नहीं घटेंगी। आपको एक बात याद दिला दूं कि विगत चुनाव में 71सीटें पाने वाली जदयू को एक बार फिर 70 सीटें मिलती दिखाई जा रही हैं।गठबंधन में भाजपा 110 सीटों पर जदयू 115 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। सोचनेवाली बात ये है कि 9 फीसदी अधिक वोट हासिल करने के बावजूद भाजपा कीसीटों में केवल 32 सीटों का ही फायदा होगा। जबकि सी वोटर-टाइम्स नाऊ कासर्वे यह भी कह रहा है कि लोजपा को 5 सीटें मिलेंगी और वोट 6.7 फीसदीहासिल होगा। ऐसा तब है जब वह एनडीए से बाहर निकलकर चुनाव लड़ रही है।एनडीए में रहकर अगर लोजपा को 2015 में एक भी सीट नहीं मिली थी। मगरउस समय 4.8 फीसदी वोट जरुर मिले थे। एनडीए सरकार से संतुष्ट केवल 25.46फीसदी वोटर हैं और नीतीश कुमार को सीएम देखने वाले लोगों की तादाद भीमहज 32 फीसदी रह गयी है। ऐसे में ये तथ्य एनडीए सरकार के खिलाफ जबरदस्तएंटी इनकंबेंसी का प्रमाण हैं। एनडीए के लिए 44.8 फीसदी और यूपीए के लिए33.4 फीसदी वोट दिखाया था। दूसरे सर्वे में वह गठबंधन के बजाए दलीय आधारपर समर्थन दिखाने लगा।सितंबर के सर्वे में 56.7 फीसदी लोगों में एनडीए सरकार को लेकर गुस्सा था औरवे बदलाव चाहते थे। सितंबर के सर्वे में 25.1 फीसदी लोगों के लिए चुनाव का मुद्दाबेरोजगारी और प्रवासी मजदूर थे, तो अक्टूबर आते-आते 49 प्रतिशत लोग सर्वे मेंमानने लगे कि बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है। सर्वे में वोट शेयर और सीटों के साथ-साथमुद्दे और सरकार से नाराजग़ी जैसे तमाम पहलुओं पर अगर गौर किया जाए तो सर्वेकी अगर बातें सत्य साबित होती हैं, तो एनडीए को बड़ा फायदा हो सकता है।हलांकि 2015 में इसी सी-वोटर के सर्वे ने एनडीए को कांटे की टक्कर में दिखाया थाजबकि नतीजे बिल्कुल उलट आए थे और महागठबंधन को दो तिहाई सीटें हासिलहुई थीं।अब दूसरी तरफ कांग्रेस की बात करें तो 2015 में कांग्रेस को 6.7 फीसदी वोट मिलेथे और ताजा सर्वे में यह प्रतिशत बढक़र 11 हो गया है। मगर 2015 में मिली 27सीटों के मुकाबले कांग्रेस को महज 15 सीटें मिलती बतायी जा रही हैं। राजद को2015 में 18.5 फीसदी वोट मिले थे। इस बार ताजा सर्वे के मुताबिक उसे 24.3प्रतिशत वोट मिलने जा रहा है। यानी 5.8 फीसदी वोटों का इजाफा। मगर, सीटें80 से घटकर 56 होती दिखाई जा रही है। अब ऐसे में इनके सर्वे और आंकड़ों केखेल में किसको कितना फायदा होगा और किसको कितना घाटा होगा यह तोचुनावी नतीजे आने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा।