तिल का ताड़: ममता की राजनीति

mamtaपश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राज्य के कुछ हिस्सों में सैनिकों की मौजूदगी को लेकर जिस तरह हो-हल्ला मचाया, उससे हर कोई हतप्रभ है। किसी भी चीज पर बवाल काट देना ममता का स्वभाव रहा है, लेकिन वह सेना को भी इस तरह राजनीति में घसीट लेंगी, यह शायद ही किसी ने सोचा हो। उनके इस कदम से उन राजनीतिक दलों को भी झटका लगा है, जो उनके साथ मिलकर नोटबंदी के फैसले पर केंद्र सरकार के विरुद्ध अभियान चला रहे हैं। सीपीएम ने साफ कहा कि ममता ने इस मुद्दे पर तिल का ताड़ बना दिया।
ममता का आरोप था कि राज्य सरकार को सूचित किए बगैर सेना तैनात की गई और तैनात सैन्यकर्मी वाहनों से पैसा वसूल रहे थे। वह यहां तक कह गईं कि केंद्र सरकार शायद उनका तख्तापलट करना चाहती है। संभवत: ममता ने यह संदेश देना चाहा कि नोटबंदी पर उनके आंदोलन से केंद्र सरकार इस कदर घबरा गई है कि वह उन्हें बर्खास्त करना चाहती है। अगर ममता को सेना की मौजूदगी को लेकर कोई संदेह था तो वह केंद्र सरकार से संपर्क कर सकती थीं। सैन्य अधिकारियों से भी बात की जा सकती थी, लेकिन ममता ने तो इसके विरोध में धरना दे दिया। जबकि सैन्य सूत्रों का कहना है कि स्थानीय पुलिस अधिकारियों के साथ तालमेल करके ही सैन्य अभ्यास किया जा रहा था।
सेना ने चार ऐसे पत्र भी पेश किए जो राज्य सरकार के अधिकारियों को लिखे गए थे। दरअसल सेना भार संवाहकों (लोड कैरियर) को लेकर आंकड़े जुटाने के उद्देश्य से देश भर में द्विवार्षिक अभ्यास कर रही है और पता लगा रही है कि किसी आकस्मिक घटना की स्थिति में उसकी उपलब्धता हो सकती है या नहीं। इससे पहले पूर्व सेनाध्यक्ष और वर्तमान विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह के कार्यकाल में आगरा और हिसार से सैन्य टुकडिय़ों के दिल्ली की ओर बढऩे पर विवाद हुआ था। यह हमारी व्यवस्था का एक चमकदार पहलू है कि सेना की मौजूदगी नागरिक जीवन में नहीं के बराबर रहती है। हम मानते हैं कि सेना की भूमिका सीमा पर ही है। हां, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में उसकी तैनाती करनी पड़ी है, लेकिन वहां उनका रोल कम करने पर भी मंथन होता रहता है।
सेना आमतौर पर निर्जन क्षेत्र में अभ्यास करती है, जिसके बारे में सामान्य लोगों को पता नहीं रहता। कभी-कभार वह नागरिक इलाके में भी अभ्यास करती है जिसकी सूचना प्रशासन को रहती है। अगर आम नागरिक को भी जानकारी रहे तो किसी तरह का भ्रम नहीं फैलेगा। सेना की अचानक उपस्थिति से लोगों में कई प्रश्न उठ खड़े होते हैं। सरकार किसी मेकेनिज्म के जरिए आम नागरिकों को बताए कि ऐसे सैन्य अभ्यास समय-समय पर होते हैं, जिन्हें सहज रूप में लिया जाना चाहिए। बहरहाल ममता ने सेना पर विवाद खड़ा करके अपना ही नुकसान किया है। आशा है दूसरे दल ऐसे विवाद से बचेंगे।