आखिरकार मोदी ने निभाया पूर्व सैनिकों से किया वादा

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कृष्णमोहन झा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व सैनिकों के लिए वन रैंक पेंशन योजना की घोषणा करके एक बार फिर वह साबित कर दिया है कि महत्वपूर्ण मामलों में त्वरित फैसला करना ही उनकी कार्यशैली की असल पहिचान है। प्रधानमंत्री पद की बागडोर अपने हाथों में आने के बाद से ही नरेन्द्र मोदी ने बार बार पूर्व सैनिकों को यह भरोसा दिलाया था कि इस मुद्दे पर अनिर्णय की स्थिति अब अधिक दिनों तक नहीं रहेगी। यही बात उन्होंने अपने दूसरे स्वतंत्रता दिवस संदेश में कही थी परन्तु एक ओर जहां पूर्व सैनिकों का धैर्य टूटने लगा था वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी ऐसा माहौल बनाने की कोशिश में जुट गई थी कि मोदी सरकार भी इस मुददे को सुलझाने में सफल नहीं हो पाएगी। जरा याद कीजिए पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के रक्षामंत्री एके एंटोनी ने सरकारी खजाने पर पडऩे वाले अतिरिक्त भार की दुहाई देते हुए क्या इस मुददे को सुलझाने में तत्कालीन सरकार की परोक्ष असमर्थता व्यक्त नहीं थी? अब जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व सैनिकों के लिए वन रैंक वन पेंशन योजना लागू करने की घोषणा कर दी है तब वही कांग्रेसी पार्टी मोदी सरकार के इस महत्वपूर्ण फैसलें का श्रेय खुद लेना चाहती है। मैं कांग्रेस नेतृत्व से यह पूछना चाहता हूं कि अगर कांग्रेस नीत पूर्ववर्ती संप्रग सरकार को जवानों के हितों की इतनी ही चिंता थी तो वह इस मुददे पर दस वर्षों तक ठोस फैसला करने से क्यों बचती रही। प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन बिल्कुल सही है कि कांग्रेस पार्टी को उनकी सरकार द्वारा घोषित वन रैंक वन पेंशन योजना के कुछ बिंदुओं पर सवाल उठाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है क्योंकि उसने पूर्व सैनिकों की मांग पर बीते चालीस वर्षों में कुछ नहीं किया। प्रधानमंत्री मोदी स्वयं मानते हैं कि यह एक कठिन फैसला था जिसमें कुछ जटिलताएं हो सकती हैं जिन्हें अभी देखना बाकी है परंतु उन्होंने यह भरोसा भी दिलाया है कि सरकार इन जटिलताओं को सुलझाने में सफल हो जाएगी।
निश्चित रूप से इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान सरकार के इस फैसले में अभी भी कुछ पेंच बाकी हैं जो पूर्व सैनिकों के असंतोष का कारण बने हुए है परंतु उनके संगठन द्वारा दिल्ली में जारी भूख हड़ताल को वापिस लेने से यही संकेत मिलता है कि उनकी मांग पूरी करने के लिए सरकार द्वारा अब तक प्रदर्शित नेक नीयती से इस सरकार में उनका भरोसा बढ़ा है। पूर्व सैनिकों के संगठन के नेता मेजर जनरल अवकाश प्राप्त सतवीर सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा का स्वागत करते हुए यह बयान दिया है कि हम एक रैंक एक पेंशन के वादे को पूरा करने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का शुक्रिया अदा करते हैं, हम रक्षामंत्री का शुक्रिया अदा करते हैं लेकिन पेंशन में समानता लाने समेत चार मुद्दों पर समाधान किया जाना है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इन्हीं बिन्दुओं पर पेंच की बात स्वीकार की है लेकिन उन्होंने पूर्व सैनिकों को संतोषजनक तरीके से सुलझा लेने का आश्वासन भी दिया है। प्रधानमंत्री जब पूर्व सैनिकों से यह कहते हैं कि सरकार आपकी है पूर्व सैनिक गुमराह न हों तब उनकी संवेदनशीलता पर सवाल उठाने का कोई कारण भी नजर नहीं आता। प्रधानमंत्री का मानना है कि जो सैनिक अपना घर परिवार छोडकऱ अत्यत विषम परिस्थितियों में दिन रात देश की सीमा की चौकसी करते हैं उनके हितों की बात सोचना सरकार की पहली जिम्मेदारी है। इसीलिए उनकी सरकार ने वन रैंक वन पेंशन योजना के क्रियान्वयन के लिए आठ हजार से लेकर दस हजार करोड़ रुपए तक का अतिरिक्त सालाना भार उठा लेने में भी कोई हिचक महसूस नहीं की गौरतलब है कि पिछली संप्रग सरकार ने वन रैंक वन पेंशन योजना के लिए अधिकतम 5 हजार करोड़ रुपए खर्च कर सकने की मजबूरी जताई थी। परंतु प्रधानमंत्री ने दरियादिली दिखाते हुए इसके लिए दस हजार करोड़ रुपए तक का प्रावधान करने में कोई संकोच नहीं किया। प्रधानमंत्री का मानना है कि देश की सीमाओं की रखवाली में लगे जवानों के हितों की पूर्ति के मार्ग में धन की कमी को आड़े नहीं आने दिया जाएगा।
दरअसल पूर्व सैनिकों की कुछ शंकाओं का समाधान जब तक वर्तमान केन्द्र सरकार नहीं कर देती तब तक उनके पूरी तरह संतुष्ट होने की संभावना नहीं दिखती। इसलिए अभी सरकार निश्चित होकर भी नहीं बैठ सकती। इस बीच में जो भ्रांतियां फैलती रही है उनके कारण भी पूर्व सैनिकों का आंदोलन तेज होता रहा। प्रधानमंत्री की घोषणा के एक दिन पूर्व ही रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने यह बयान दिया था कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेने वाले सेवकों को इसका लाभ नहीं मिल सकेगा तब आंदोलनरत पूर्व सैनिकों का उत्तेजित होना स्वाभाविक था। उनका तर्क था कि सैन्य सेवाओं में स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति जैसा कोई प्रावधान ही नहीं है, केवल लड़ाई में अपंग होने, पदोन्नति नहीं होने अथवा पारिवारिक विवशता की स्थिति में ही जवान स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेते हैं। रक्षामंत्री के बयान से उपजी भ्रांति को दूर करने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री को आगे आना पड़ा। प्रधानमंत्री ने अपनी घोषणा में कहा है कि सेना में 80 से 90 फीसदी संख्या जवानों की है और उन्हें विभिन्न कारणों से 15-17 साल बाद रिटार्यमेंट लेना पड़ता है। सरकार ने उनकी मजबूरी को समझा है और स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेने वाले सैनिकों को भी वन रैंक वन पेंशन योजना के दायरे में शामिल किया गया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस पर भ्रमित होने की कोई आवश्यकता नहीं है।
प्रधानमंत्री को अब यह देखना होगा कि जिन बिन्दुओं पर अभी भी सहमति नहीं बन सकी है उन बिन्दुओं पर मतभेदों को कैसे दूर किया जाए। प्रधानमंत्री ने इस दिशा में संतोषजनक हल खोजने के उददेश्य से जो एक सदस्यीय आयोग बनाने की घोषणा की है उससे पूर्व सैनिक असंतुष्ट हैं। उनकी मांग है कि इस आयोग में कम से कम पांच सदस्य हों जिनमें पूर्व सैनिकों के अपने तीन प्रतिनिधि भी शामिल किए जाएं। जो पूर्व सैनिकों का पक्ष उचित तरीके से प्रस्तुत कर सके। प्रधानमंत्री ने आयोग को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए छह माह का समय देने की बात कही है परंतु पूर्व सैनिक इस आयोग की रिपोर्ट एक माह के अंदर प्रस्तुत किए जाने की मांग कर रहे हैं। सरकार हर पांच साल में पेंशन की समीक्षा करने के लिए तैयार है जबकि पूर्व सैनिक प्रतिवर्ष पेंशन की समीक्षा चाहते है। सैनिकों की एक मांग यह भी है कि पेंशन का निर्धारण 30 मार्च 2014 के अधिकतम वेतन को आधार मानकर किया जाए। उधर सरकार का कहना है कि पेंशन का आधार वर्ष 2013 रहेगा। पेंशन समीक्षा हर साल किए जाने की मांग पूर्व सैनिकों ने अवश्य की है परंतु वे यह संकेत दे चुके है कि हर 2 वर्ष में पेंशन की समीक्षा के लिए वे तैयार हो सकते है लेकिन बाकी बिंदुओं पर सहमति के लिए निसंदेह दोनों पक्षों को समझौतावादी रूप अपनाना होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व सैनिकों की तकलीफों को महसूस करते हुए अभी तक जो संवेदनशीलता दिखाई है उसके बाद यह उम्मीद करना बेमानी नहीं होगा कि पूर्व सैनिकों को इस सरकार से निराशा हाथ नहीं लगेगी।