ताकि सबके लिए आसान हो सके उड़ान

air indiaविचार डेस्क। भारतीय सिविल एविएशन क्षेत्र ने उड़ान भरनी तो कब की शुरू कर दी है, पर अपने पंख वह आज भी पूरी तरह नहीं खोल पाया है। विकसित देशों की तुलना में यह कहीं नहीं ठहरता। आज भी भारत में 2 फीसदी से कम लोग हवाई यात्रा करते हैं, हालांकि यात्रियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। बीते 31 मार्च को समाप्त वित्त वर्ष में घरेलू मुसाफिरों की संख्या में 13.9 प्रतिशत और विदेशी पैसंजर्स की संख्या में 9 पर्सेंट की बढ़ोतरी हुई।
सरकार पर नागरिक उड्डयन क्षेत्र के लिए कुछ ठोस कदम उठाने का दबाव लगातार बढ़ता रहा है। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को नई सिविल एविएशन पॉलिसी का ड्राफ्ट जारी किया। इसका जोर विमान किराया कम करने पर है, ताकि हवाई यात्रा मध्यवर्ग के दायरे में आ सके। गवर्नमेंट रीजनल कनेक्विटी को बढ़ावा देना चाहती है। इसके लिए 300 बंद पड़े हवाई अड्डों का इस्तेमाल शुरू किया जाएगा, जिनमें हरेक पर औसतन 50 करोड़ रुपये का खर्च किया जाएगा।
सरकार चाहती है कि हवाई यात्रा का खर्च 2,500 रुपये प्रति घंटे से ज्यादा न हो। हवाई टिकट पर 2 फीसदी सेस लगाने का भी प्रस्ताव है। सरकार ने वादा किया है कि एटीएफ (हवाई ईंधन) महंगा होने की स्थिति में वह आगे आकर मदद करेगी। इसके तहत केंद्र 80 फीसदी और राज्य 20 फीसदी खर्च उठाएंगे। रीजनल उड़ान के लिए एटीएफ पर कस्टम ड्यूटी नहीं लगेगी। मुक्त आकाश नीति लागू होने की स्थिति में घरेलू विमानन कंपनियों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव भी ड्राफ्ट में मौजूद है। अभी यह सीमा 49 फीसदी है।भारत में प्राइवेट एयरलाइंस से कारोबार का दायरा बढ़ाने की उम्मीद की गई थी, लेकिन वे भी मुनाफे वाले पांच-सात रूटों पर ही रहना चाहती हैं। इस कारण कई ऐसे शहर छूट जाते हैं, जहां कारोबारी गतिविधियां तेज हुई हैं और पैसंजर्स भी काफी मिल सकते हैं। विमान कंपनियां अगर इन शहरों का रुख करें तो अच्छा-खासा लाभ कमा सकती हैं। पर इसके लिए जरूरी है कि यहां अच्छे हवाई अड्डे और अन्य सुविधाएं उपलब्ध हों। दो फीसदी सेस के प्रस्ताव से सफर थोड़ा महंगा जरूर होगा, लेकिन अगर सरकार इस पैसे को एविएशन सेक्टर के इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करती है तो इंडस्ट्री के लिए यह फायदे का ही सौदा होगा।
हमारा एविएशन सेक्टर काफी हद तक तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर भी निर्भर रहता है। इस साल तेल सस्ता होने की वजह से ही विमान किराए थोड़े नरम हुए हैं। लेकिन एटीएफ महंगा होने पर एयरलाइंस कंपनियां हाथ न खड़े कर दें, इसके लिए सरकारी सहयोग की पेशकश अहम है। पहले एयर इंडिया और फिर कुछ निजी कंपनियों की दुर्दशा से भारतीय एविएशन सेक्टर की इमेज आईसीयू में पड़े मरीज जैसी बन गई है। एक बार झटका देकर यह छवि बदल दी जाए तो इसे मुसाफिरों के अलावा निवेशकों की भी आंख का तारा बनाया जा सकता है।