थर्ड जेंडर के बढ़ते कदम

transjender yashini

विचार डेस्क। ट्रांसजेंडर समुदाय धीरे-धीरे समाज की मुख्यधारा में अपनी जगह बना रहा है। हालांकि उसे इसके लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है और न जाने कितनी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। उसे कानून के स्तर पर भले ही बराबरी का हक मिल गया हो, पर उसके प्रति समाज की मानसिकता अभी नहीं बदल पाई है। बावजूद इसके उसने अपना हौसला नहीं खोया है। चेन्नै की के. पृथिका यशिनी जल्द ही देश की पहली ट्रांसजेंडर पुलिस सब-इंस्पेक्टर बनने जा रही है। पृथिका के लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं रहा। उसका एप्लिकेशन पहले रिजेक्ट कर दिया गया क्योंकि पुलिस भर्ती बोर्ड के पास न तो थर्ड जेंडर की कैटेगरी थी और न ही ट्रांसजेंडर्स के लिए लिखित परीक्षा, शारीरिक परीक्षा और साक्षात्कार में किसी तरह के कोई आरक्षण या छूट देने का प्रावधान था। पर अदालत ने पृथिका का साथ दिया।
मद्रास हाईकोर्ट ने उसे योग्य उम्मीदवार घोषित किया और भर्ती बोर्ड को निर्देश दिया कि वह नियमों में बदलाव करे, ताकि राज्य पुलिस बल में ट्रांसजेंडरों की भर्ती की जा सके। देश में ट्रांसजेंडर समुदाय बराबरी और सम्मानपूर्वक जीवन के लिए अरसे से संघर्ष करता रहा है। उसे कुछ सामाजिक संगठनों और देश के प्रबुद्ध वर्ग का साथ मिला। इस समुदाय के अनेक लोगों ने अपनी प्रतिभा और लगन के बूते समाज के अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई और दूसरों के लिए मिसाल पेश की। जैसे हैदराबाद की शबनम मौसी देश की पहली ट्रांसजेंडर एमएलए बनीं जबकि छत्तीसगढ़ की मधु किन्नर पहली मेयर।
कोयंबटूर की पद्मिनी प्रकाश न्यूज एंकर हैं जिनकी प्रतिभा का लोहा हर कोई मान रहा है। इस समुदाय के लोगों ने और भी अनेक क्षेत्रों में अपनी क्षमता सिद्ध की है। उनसे ट्रांसजेंडर कम्युनिटी को अपने अधिकारों के लिए लडऩे की प्रेरणा मिली है। पिछले साल उसे बड़ी जीत मिली, जब सुप्रीम कोर्ट ने उसे थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता दी। इससे पहले इस समुदाय के लोगों को कानूनी तौर पर मजबूरी में अपना जेंडर पुरुष या महिला बताना पड़ता था। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा मानते हुए सरकारी भर्तियों और शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण देने का निर्देश दिया। उसने संविधान की धारा 14, 16 और 21 का हवाला देते हुए कहा कि ट्रांसजेंडर देश के सामान्य नागरिक हैं और शिक्षा, रोजगार एवं सामाजिक स्वीकार्यता पर उनका बराबर का अधिकार है।
इस फैसले के बाद राज्य सरकारें सक्रिय हुईं और उन्होंने इस समुदाय के लिए कई कदम उठाए। तमिलनाडु में ट्रांसजेंडर्स को होमगार्ड की नौकरी मिली। बिहार और दूसरे कई राज्यों में उन्हें लोन की वसूली और जन्म व मृत्यु के रजिस्ट्रेशन के काम में लगाया गया। लेकिन अभी और बहुत कुछ किया जाना बाकी है। सबसे बड़ी बात है कि समाज को अपनी मानसिकता बदलनी होगी और इस समुदाय को गले से लगाना होगा।