यूपी लोकायुक्त विवाद: शिवपाल के बाद सरकार ने किया खंडन

cm29 decलखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने दावा किया है कि लोकायुक्त की नियुक्ति की बैठक में जस्टिस वीरेन्द्र सिंह यादव के नाम पर न सिर्फ विचार हुआ था बल्कि नियुक्ति के लिए पहले नंबर पर संस्तुत किया गया था।  मंगलवार को इस बारे में यूपी सरकार ने अपनी स्थिति साफ करते हुए बयान जारी किया है। वीरेन्द्र सिंह कि नियुक्ति की बैठक के एक पखवारे बाद सरकार के इस खंडन को रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। इससे पहले लोकनिमार्ण मंत्री शिवपाल यादव ने खंडन जारी कर कहा था कि जस्टिस वीरेन्द्र सिंह मेरे रिश्तेदार नहीं है। लोकायुक्त प्रकरण पर  4 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है।
प्रदेश सरकार के बयान में कहा गया है कि लोकायुक्त की नियुक्ति के सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय के 14 दिसम्बर 2015 के आदेश के बाद अभी तक मीडिया में प्रकाशित एवं प्रसारित भिन्न- भिन्न खबरों को राज्य सरकार ने गम्भीरता से लिया है। इस तरह से प्रकाशित खबरों का राज्य सरकार खण्डन किया है। राज्य सरकार का यह मत है कि 17 दिसम्बर 2015 को विभिन्न समाचार पत्रों में कदाचित एक पत्र का सन्दर्भ लेकर कुछ खबरें प्रकाशित हुई थीं। इन समाचारों में उक्त पत्र की कतिपय टिप्पणियों का उल्लेख इस प्रकार किया गया कि जैसे उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए नामों में से कुछ नाम विचार विमर्श में सम्मिलित ही नहीं थे। चूंकि उक्त पत्र की गोपनीयता अब नहीं रही इसलिए इस सम्बन्ध में राज्य सरकार द्वारा कुछ तथ्यों पर अपना रुख स्पष्ट किया जाना जरूरी है। 15 एवं 16 दिसम्बर 2015 को लोकायुक्त की चयन सम्बन्धी बैठकों में पहला नाम सेवा निवृत्त न्यायमूर्ति वीरेन्द्र सिंह का ही था और इस पर चर्चा भी हुई थी। उच्चतम न्यायालय के समक्ष जो भी नाम राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए थे, वे वही नाम थे जो सरकार द्वारा प्रस्तावित थे और जिन पर सम्बन्धित पक्षों के साथ विचार विमर्श भी किया गया था।