सबसे ज्यादा गेंहू उत्पादन करने वाले राज्य में खरीद कम क्यों

wheat 1लखनऊ मई। सबसे ज्यादा गेंहू उत्पादन करने वाले राज्य में क्यों होती है गेंहू की सबसे कम खरीद के मुद्दे पर भारतीय खाद्य निगम पर उप्र के साथ भेदभाव का आरोप लग रहें है।
उप्र फूड एंड सिविल सप्लाई इंस्पेक्टर आफिसर्स एसोसिएशन ने भारतीय खाद्य निगम पर आरोप लगाया है कि वह उप्र में खरीद को लगातार हतोत्साहित कर रही है। इस साल प्रदेश में लगभग 300.00 लाख मीट्रिक टन गेहूॅ का उत्पादन की संभावना है। इसके साथ ही एसोसिएशन ने उप्र सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। एसोसिएशन ने कहा कि शान्ताकुमार कमेटी की सिफारिशों के खिलाफ है। शान्ताकुमार कमेटी ने कहा है कि भारतीय खाद्य निगम को पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे खरीद के राज्यों पर फोकस करना चाहिये और पंजाब, हरियाणा, मप्र जैसे राज्यों में गेहूॅ,धान की खरीद से बचना चाहिये।
एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सिंह ने आरोप लगाया कि धान खरीद सत्र 2015-16 में उप्र का करीब 1000 करोड़ रूपये भारतीय खाद्य निगम ने फसा रखा है। जिसमें बरेली सम्भाग 280 करोड़, मिर्जापुर सम्भाग 141.30 करोड़, कानपुर सम्भाग 50 करोड़ और इसी प्रकार अन्य सम्भागों की धनराशियाँ भुगतान लिमिट के नाम पर फंसी हैं और प्रदेश सरकार को भारी ब्याज चुकाना पड़ रहा है। सिंह ने बताया कि पंजाब, हरियाणा, उप्र के मिर्जापुर से करीब 1000 किलोमीटर दूर है और यहाँ से मिर्जापुर के लिये गेहूॅ की रैक आती है। जबकि मिर्जापुर से बिहार 200 किमी दूर है और चावल का आधिक्य होने के बाद भी मिर्जापुर से बिहार रैक भेजने की सम्भावना पर जानबूझकर भारतीय खाद्य निगम विचार नहीं करती। भारतीय खाद्य निगम राज्य के कास्तकारों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने में एक बहुत बड़ी बाधा है जिससे एक बड़ी आबादी उचित मूल्य के लाभ से वंचित हो रही है जिसका असर प्रदेश के समग्र विकास पर पड़ रहा है। प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना लगातार फेल हो रही है।
सन् 2012-13 में उत्तर प्रदेश में 303.01 लाख मी0टन गेहूॅ का उत्पादन हुआ। जबकि पंजाब में 165.91 लाख मी0टन और हरियाण में 111.17 लाख मी0टन गेहूॅ का उत्पादन हुआ। जबकि आज 2016-17 में पंजाब में 83.52 लाख मी0टन, हरियाण में 59.27 लाख मी0टन खरीद हो चुकी है। जबकि
उत्तर प्रदेश में लगभग 5.00 लाख मी0टन पर खरीद का आंकड़ा अटक गया है। मित्रों एक ही देश में उत्पादन और खरीद के बीच में यह विषमता घोर आश्चर्य में डालती है और यह भारतीय खाद्य निगम की दैत्याकार साजिश का नतीजा है। यह स्थिति शान्ताकुमार कमेटी की सिफारिशों के भी पूर्णत: विपरीत है। शान्ताकुमार कमेटी ने साफ सिफारिश की है कि भारतीय खाद्य निगम को पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे खरीद के राज्यों पर फोकस करना चाहिये और पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में गेहूॅ/धान की खरीद से बचना
इस प्रकार ये खाद्यान्न कम उत्तर प्रदेश का धन ज्यादा चूसते हैं। यह स्थिति कृषि पर अपनी जीविका के लिये निर्भर उत्तर प्रदेश की 15 करोड़ (कुल आबादी का 80 प्रतिशत) आबादी के लिये जीवन संकट जैसी है जिसका उत्तर प्रदेश की जी0डी0पी0 में मात्र 27 प्रतिशत हिस्सा है।
2012-13 में उत्तर प्रदेश में 303.01 लाख मी0टन गेहूॅ का उत्पादन हुआ। जबकि पंजाब में 165.91 लाख मीट्रिकटन और हरियाण में 111.17 लाख मी0टन गेहूॅ का उत्पादन हुआ। जबकि आज 2016-17 में
उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारतीय खाद्य निगम का खेल जारी है।
1. शान्ताकुमार कमेटी की सिफारिशों के अनुसार भारतीय खाद्य निगम खरीद, भण्डारण और वितरण तीनों ही क्षेत्रों में बुरी तरह विफल रही है और स्थिति बद से बदतर होती चली जा रही है। नतीजे के तौर पर भारतीय खाद्य निगम धन हानि, सड़ते अनाज और खाद्यान्न मुद्रास्फीति की जन्मदाता बनी हुई है।
2. 3. आपका ध्यान धान खरीद सत्र 2015-16 में मिर्जापुर सम्भाग के अप्रेषित 2 लाख 50 हजार कुंतल सरकारी चावल की ओर आकृष्ट कराना चाहूँगा। ये चावल भारतीय खाद्य निगम की घोर लापरवाही के कारण हमारे अधिकारियों की देखरेख में चावल मिलों पर संग्रहीत है। इस चावल का संग्रहण करने के लिये भारतीय खाद्य निगम में स्थान ही नहीं है और भारतीय खाद्य निगम द्वारा इसे
प्राप्त करने की अन्तिम तिथि 30 जून है। यदि किसी कारणवश भारतीय खाद्य निगम 30 जून तक इस चावल को संग्रहीत करने में विफल रहती है तो इसका सारा दोष उत्तर प्रदेश सरकार के खाद्य विभाग के कार्मिकों पर मढ़ दिया जायेगा जिसके लिये वे किंचितमात्र भी जिम्मेदार नहीं हैं।
इसी प्रकार सन् 2011-12 एवं 2012-13 में भारतीय खाद्य निगम की इन्हीं भयंकर साजिशों के कारण उत्तर प्रदेश सरकार का करीब 500 करोड़ रूपये का चावल फंस गया और हमारे साथियों को कड़े दण्ड दिये गये जिसमें हमारे साथियों पर वित्तीय वसूली सहित तमाम कड़ी अनुशासनात्मक कार्यवाहियाँ शामिल हैं। फलस्वरूप यह मामला मा0 उच्चतम न्यायालय तक गया और अभी भी चल रहा है लेकिन चीफ कल्परिट भारतीय खाद्य निगम से किसी ने औपचारिकता के लिये भी कोई पूछताछ नहीं की।
इस परिदृश्य में भी खेल है। मूलत: भारतीय खाद्य निगम उत्तर प्रदेश में खरीद को लगातार हतोत्साहित कर रही है। अत: पंजाब/हरियाणा से उत्तर प्रदेश में आवश्यकता से भी अधिक खाद्यान्न का रेल-रैक से आगमन तो होता है लेकिन उत्तर प्रदेश के किसी सम्भाग या जनपद में खाद्यान्न का आधिक्य होने पर भी साजिशन प्रदेश या मण्डल से बाहर खाद्यान्न की रैक भेजने पर विचार किया ही नहीं जाता। जबकि शीर्ष स्तर के विभागीय अधिकारी भी इसके लिये प्रयास करते हैं। पंजाब/हरियाणा मिर्जापुर से करीब 1000 किलोमीटर दूर है और यहाँ से मिर्जापुर के लिये गेहूॅ की रैक आती है। जबकि मिर्जापुर से बिहार 200 किमी दूर है और चावल का आधिक्य होने के बाद भी मिर्जापुर से बिहार रैक भेजने की सम्भावना पर जानबूझकर भारतीय खाद्य निगम विचार नहीं करती। रैक के खेल की जड़ों में करोड़ों का भ्रष्टाचार खोजा जा सकता है। इसी भ्रष्टाचार के कारण उत्तर प्रदेश में न तो खरीद हो पाती है और न भण्डारण के लिये स्थान बचता है।
4. खाद्यान्न की गुणवत्ता को लेकर भारतीय खाद्य निगम पूरी खरीद प्रक्रिया में व्यापक भय का संचार करती है। अव्वल तो गुणवत्ता के नाम पर भारी मात्रा में खाद्यान्न फेल किया जाता है ताकि पंजाब हरियाणा का खाद्यान्न खपाया जा सके जो खाद्यान्न किसी तरह से स्वीकार भी कर लिया जाता है उस पर भी सरेआम रिश्वत मांगी जाती है और इसके बाद भी प्राप्ति प्रपत्र देने से लेकर खाद्यान्न का भुगतान लेने तक उत्तर प्रदेश सरकार के प्रतिनिधियों/मिलर्स को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता है। फलत: जहाँ
एक ओर खरीद की पूरी प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है तो दूसरी ओर अधिकतर व्यापारी मिलर्स हमारी व्यवस्था में शामिल होने से मना कर देते हैं। कानपुर मण्डल के औरैया जनपद में गुणवत्ता सम्बन्धी एक विवाद पर आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हँू। एक मिलर का भारतीय खाद्य निगम ने अपनी समस्त प्रयोगशालाओं में चावल फेल कर स्वीकार करने से मना कर दिया। अन्तत: मामला सेन्ट्रल ग्रेन एनालिसिस लेबोरेटरी (ब्ण्ळण्।ण्स्) पहँूचा और चावल पास हो गया। चावल तो ले लिया गया लेकिन मिलर को तरह तरह से प्रताडि़त किया गया व मिल बन्द कराने की धमकी भी दी गयी। ये भारतीय खाद्य निगम उत्तर प्रदेश में कृषिगत एवं खाद्यान्न व्यापारिक गतिविधियों की सबसे बड़ी दुश्मन है। सन् 2010-11 जबसे भारतीय खाद्य निगम ने पूरी तरह से उत्तर प्रदेश में काम करना शुरू किया है तब से प्रदेश की 80 प्रतिशत चावल मिलें बन्द हो गयीं हैं। इस प्रकार लाखों लोग बेरोजगार हुये हैं, उत्तर प्रदेश के कुटीर उद्योग का ढांचा चरमरा गया है और प्रदेश का आर्थिक विकास व्यापक रूप से प्रभावित हो रहा है।
गुणवत्ता मानकों में कभी कभी छूट (यू0आर0एस0 स्कीम) दी जाती है। साजिशन ये छूट पहले पंजाब हरियाणा को दे दी जाती है और जब ऐ राज्य पर्याप्त खरीद कर लेते हैं तब इस छूट का विस्तार उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भी कर दिया जाता है। अर्थात अलग – अलग जिलों में अलग – अलग मानक। पिछले वर्ष धान खरीद में बरेली मण्डल के बरेली जनपद को मानकों में छूट नहीं दी गयी जबकि शहजहाँपुर को दे दी गयी। इसी प्रकार हरदोई जिले को ये छूट प्राप्त थी और बगल के जनपद फर्रूखाबाद को एक प्राप्त नहीं थी। ये स्थिति बेहद हास्यास्पद है जहाँ समान गुणवत्ता का खाद्यान्न एक जनपद में स्वीकार्य होता है और दूसरे जनपद में अस्वीकार्य होता है। ये घोर अंधेरगर्दी है। दुनिया के शायद ही किसी लोकतांत्रिक देश में इस प्रकार की घटनाओं की छूट होगी।
5. आइये अब हम भारतीय खाद्य निगम के खुले भ्रष्टाचार की बात करते हैं। वर्तमान गेहूॅ खरीद सत्र की प्रगति अत्यन्त धीमी है। गेहूॅ खरीद की इस शिथिल दशा के लिये भारतीय खाद्य निगम के भ्रष्टाचार का चक्रव्युह जिम्मेदार है। इस भीषण गर्मी में जब राज्य सरकार की विभिन्न एजेन्सियों के प्रभारी एक एक किसान से गेहूॅ की खरीद कर ट्रक पर लोड कर भारतीय खाद्य निगम को भेजते है तो वह ट्रक सुचारू रूप से भारतीय खाद्य निगम में संग्रहीत न होकर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। सुदूर पूर्वांचल के गोरखपुर मण्डल से लेकर मेरठ मण्डल के पश्चिमी छोर या कानपुर मण्डल ,लखनऊ, इलाहाबाद मण्डल, इत्यादि स्थानों पर भारतीय खाद्य निगम का शोषणकारी तंत्र समान रूप से सुनियोजित ढंग से गेहूॅ खरीद को फेल करने पर आमादा है। सेन्ट्रल उत्तर प्रदेश के एक जिले के अधिकारी ने मदवार भारतीय खाद्य निगम के शोषणकारी तन्त्र का उल्लेख किया है। गेट पर 150.00 रूपये, पर्ची 100 रूपये, काँटे पर 200 रूपये, लेवर 1800 रूपये, झाड़ू 100 रूपये, प्राप्ति देने वाला 100 रूपये, कुल 2450.00 रूपये की अवैध वसूली की जाती हे। इसके बाद गुणवत्ता व पावती (एकनालेजमेंट) के नाम पर भी वसूली की जाती है।
6. गेहूॅ खरीद की इस पीड़ा को आयुक्त, मेरठ मण्डल मेरठ ने कहा है कि ट्रकों की अनलोडिंग समय से नहीं की जाती है, ट्रकों को अनावश्यक डिपो पर खड़ा रखा जाता है, भारतीय खाद्य निगम के डिपो पर कृषकों से क्रय किये गये गेहूॅ की डिलीवरी के समय इसे अनलोड किये जाने हेतु डिपो पर तैनात कर्मचारियों द्वारा डाला (अवैध वसूली) की मांग की जाती है और न दिये जाने पर प्रेषित गेहूॅ का उतरवाने में आनाकानी की जाती है व कृषकों से डिलीवरी के पश्चात भारतीय खाद्य निगम के डिपो पर प्राप्ति देने में आनाकानी की जाती है और सम्प्रदान किये गये गेहूॅ के सापेक्ष बिलिंग किये जाने पर इसके भुगतान में काफी समय लगाया जाता है। उनके द्वारा यह भी कहा गया है कि भारतीय खाद्य निगम द्वारा गेहूॅ खरीद में सहयोग नहीं किया जा रहा है।
7. भारतीय खाद्य निगम द्वारा खाद्यान्न प्राप्ति के पश्चात 48 घण्टे में पावती (एकनालेजमेंट) देने का प्रावधान है परन्तु भारतीय खाद्य निगम द्वारा कभी भी समय से पावती नहीं दिये जाते हैं। कुछ मामलों में एक – एक माह तक का बिलम्ब किया जाता है। जानबूझकर अपूर्ण पावती पत्र जारी कर दिये जाते हैं और भारतीय खाद्य निगम के मण्डलीय कार्यालयों द्वारा अपने ही विपत्रों पर आपत्ति लगा दी जाती है। इस प्रकार इन आपत्तियों के निराकरण हेतु 100 से लेकर 200 किमी तक की यात्रा करने के अलावा उनकी जेब भी गर्म करनी पड़ती है।
8. गेहूॅ/धान खरीद के दौरान भारत सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ साथ तमाम आनुशांगिक (प्दबपकमदजंस) व्ययों के लिये कॉस्ट शीट जारी की जाती है। वर्तमान आर0एम0एस0 2016-17 के लिये आनुशांगिक व्यय 241.97 रूपये भारत सरकार ने निर्धारित किये हैं। यह अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है कि ज्यादातर आनुशांगिक व्ययों का
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भुगतान भारतीय खाद्य निगम देती ही नहीं है। इस प्रकार राज्य की तमाम क्रय एजेन्सियों का हजारों करोड़ रूपया वर्ष दर वर्ष भारतीय खाद्य निगम में अन्तग्रस्त होता चला जा रहा है। इस बिन्दु पर यदि जाँच बैठायी जाये तो नतीजे बेहद चौंकाने वाले सामने आयेंगे।
इस प्रकार मित्रों भारतीय खाद्य निगम पंजाब और हरियाणा के आढ़तियों, मिलरों व दबाव समूहों के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश जैस विश्व के सबसे बड़े प्रदेश की खेतिहर आबादी के लिये अभिशाप बनी हुई है। और उत्तर प्रदेश सरकार अपने निर्दोंष कर्मचारियों पर कार्यवाही कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती है। अत: हम उत्तर प्रदेश सरकार से एक स्वर में मांग करते हैं कि उत्तर प्रदेश की 20 करोड़ जनता के हित में अपने निर्दोष कर्मचारियों की बलि चढ़ाना बन्द करें और पंजाब व हरियाणा के दबाव में काम करने वाली भारतीय खाद्य निगम को प्रदेश से उखाड़ फेंकें।