पुष्परंजन। ‘प्रचंड पथ क्या है? किसी ज़माने में इस पर ज़ोरदार बहस होती रहती थी। नेपाल में माओवाद चीन से नहीं, बल्कि पेरू की कम्युनिस्ट पार्टी ‘शाइनिंग पाथ से प्रभावित रहा है। 1980 के दौर में पेरू में सक्रिय ‘शाइनिंग पाथ के छापामार तौर-तरीक़ों को माओवादियों ने उधार लिया था। पेरू में 70 हज़ार मौतों के लिए जि़म्मेदार ‘शाइनिंग पाथÓ के संस्थापक अबिमाइल गुजमान, नेपाली माओवादियों के मसीहा थे। दक्षिण एशिया में प्रचंड अपनी छवि कुछ ऐसी ही चाहते थे, इसलिए मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद का वैचारिक मिश्रण तैयार कर ‘प्रचंड पथ का नारा 2001 में दिया गया। 18 अगस्त 2008 को जब पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचंड पहली बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने, तब लगा कि वह कुछ ऐसी नज़ीर पेश करेंगे, जिससे ‘प्रचंड पथ की बात लोगों के गले उतरेगी। मगर, यह एक ऐसा अग्निपथ था, जिस पर प्रचंड लंबा नहीं चल पाये। अंतत: आम नेपाली मानस ने यही मान लिया कि येन-केन-प्रकारेण सत्ता को प्राप्त करना ही ‘प्रचंड पथÓ है। सत्ता चाहे चार दिन की चांदनी जैसी हो।
4 अगस्त 2016 को दूसरी बार शपथ लेते समय प्रचंड को पता है कि उनकी सरकार सिर्फ नौ महीने की है। इस नौ महीने में ‘प्रचंड पथ का क्या होता है, इसे भी नेपाल की जनता को दोबारा से देखना है। इसके बाद की पारी नेपाली कांग्रेस के सभापति शेर बहादुर देउबा खेलेंगे। सहमति इस पर बनी है कि नेपाली कांग्रेस के हिस्से गृह, परराष्ट्र, भौतिक योजना समेत तेरह मंत्रालय आएंगे, दूसरी ओर अर्थ, शिक्षा, स्थानीय विकास समेत आठ मंत्रालय माओवादी संभालेंगे। बाक़ी मंत्री पद सहयोगी पार्टियों के बीच बांटेंगे, पर्दे के पीछे ‘तीन बुंदे सहमति में यही तय हुआ है।
पिछले गुरुवार को शपथ ग्रहण का पहला चरण प्रचंड समेत छह मंत्रियों के साथ पूरा हुआ। इनमें तीन मंत्री माओवादियों के थे। शपथ से पहले तीन मंत्री नेपाली कांग्रेस के तय थे। मगर अर्जुन नरसिंह केसी ने मनचाहा मंत्रालय न मिलने के कारण शपथ लेने से मना कर दिया। अर्जुन नरसिंह केसी सदन में नेपाली कांग्रेस के नेता, उपप्रधानमंत्री व गृह मंत्री बनना चाहते थे। आगे का कि़स्सा कोताह यह है कि नेपाली कांग्रेस के बाक़ी वरिष्ठ नेता मनचाहा मंत्रालय नहीं मिलने के कारण खफा हैं। शेखर कोइराला दूसरे नाराज नेताओं में से हैं, जो विदेश मंत्रालय चाहते थे। पेशे से डॉक्टर होने के कारण शेखर कोइराला को स्वास्थ्य मंत्रालय ऑफर किया गया था।
इस तरह की तलवारें माओवादी खेमें में भी खिंची हुई हैं। कामरेड जनार्दन शर्मा वित्त मंत्री के साथ उपप्रधानमंत्री बनना चाहते थे। हरी झंडी नहीं मिली, तो नाराज़ होकर शपथ लेने से इनकार कर दिया। उपप्रधानमंत्री सह-वित्त मंत्री का पद प्रचंड के सबसे बड़े कृपापात्र कृष्ण बहादुर महरा को मिला है। मुंह फुलाये कामरेड जनार्दन शर्मा ने कहा है कि अगली बार जब नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार का गठन होगा तब उपप्रधानमंत्री बनूंगा। 8 अगस्त को शपथ के दूसरे चरण में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के दो सांसद दीपक वोहरा व विक्रम पांडे और नेकपा (संयुक्त) के जयदेव जोशी मंत्री बनाये गये हैं।
प्रचंड के पक्ष में नेपाली कांग्रेस, प्रचंड की पार्टी माओवादी केंद्र, उससे संबद्ध संघीय समाजवादी फोरम, मधेसी जनाधिकार फोरम लोकतांत्रिक, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, तराई मधेस लोकतांत्रिक पार्टी, सद्भावना पार्टी, नेकपा (संयुक्त), थरूहट तराई पार्टी नेपाल, संघीय लोकतांत्रिक राष्ट्रीय मंच (थरूहट), समाजवादी जनता दल, नेपाली जनता दल, खुंबुवान राष्ट्रीय मोर्चा, अखंड नेपाल पार्टी, जनजागरण पार्टी नेपाल, दलित जनजाति पार्टी नेपाल, बहुजन शक्ति पार्टी, परिवार दल, नेपाल सद्भावना पार्टी, तराई मधेस सद्भावना पार्टी और एक निर्दलीय सांसद चन्द्रेश्वर झा ने मतदान किया था।
प्रचंड के सिर बीस पार्टियों और एक निर्दलीय को साथ लेकर चलने का बोझ है। ‘शिवजी की बारातÓ को संतुष्ट करते हुए हिमालय में सत्ता चलाना कोई खेल नहीं है। प्रचंड के विरोध में नेकपा-एमाले, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल, नेकपा (माले) और नेपाल मजदूर किसान पार्टी ने मतदान किया था। इसलिए, इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि निवर्तमान प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली शांत बैठे रहेंगे। ओली ने भारत पर ठीकरा फोड़ा था और यह अभियान जारी रखेंगे।
प्रचंड को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा फोन पर बधाई के साथ दिल्ली आने का न्योता मिला है। प्रचंड दिल्ली कब आते हैं, इसकी औपचारिक घोषणा अभी बाक़ी है। इस बार प्रचंड सबसे पहले भारत की यात्रा पर आएंगे, इतना तो तय है। दिल्ली सत्ता प्रतिष्ठान को याद है कि 18 अगस्त 2008 को प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रचंड सबसे पहले चीन की यात्रा पर गये थे। लेकिन इस बार तस्वीर बदली है। प्रचंड ने चुने जाने के बाद पहला बयान यही दिया कि दोनों पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में संतुलन बनाकर रखेंगे। ओली सरकार ने चीन से सड़क, रेल, एयरपोर्ट व ऊर्जा संबंधी जो समझौते किये हैं, उसका पालन करेंगे। यों, दिल्ली में जो लोग शतरंज की बिसात बिछाकर मोहरों पर नजऱ गड़ाये बैठे हैं, उन्हें समझना चाहिए कि अवसर की राजनीति करने वाले प्रचंड, ओली की तरह ‘अनगाइडेड मिसाइलÓ हैं। यह अवसरवाद का ही परिणाम है कि आज की तारीख में प्रचंड के बाद दूसरे नंबर पर माओवादी नेता डॉ. बाबूराम भट्टराई उनके साथ नहीं हैं।
प्रचंड के सामने महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अस्थिरता ही चुनौती नहीं है, अप्रैल 2015 में भीषण भूकंप के बाद तबाह नेपाल को संवारना भी एक बड़ा चैलेंज है। इसके लिए उन्हें भारत में मोदी सरकार से फंड रिलीज कराना है। इस साल बाढ़ व भूस्खलन ने नेपाल का बड़ा नुकसान किया है। 6 मई 2016 को तत्कालीन राजदूत दीप कुमार उपाध्याय को नेपाल बुला लेने का निर्णय लिया गया था। प्रचंड सरकार को इसका भी फैसला लेना है कि भारत जैसे संवेदनशील कूटनीतिक केंद्र के लिए किसे भेजना ठीक होगा। संभव है, यह फैसला प्रचंड की नई दिल्ली यात्रा से पहले हो जाए। प्रचंड सरकार ने 14 ऐसे राजनेताओं को राजदूत नियुक्त किये जाने के फैसले को निरस्त किया है, जिनके नामों की स्वीकृति के.पी. शर्मा ओली प्रधानमंत्री पद छोडऩे से पहले दे गये थे।
सबसे बड़ा सवाल मधेस की समस्या का निराकरण है, जिसे नौ महीने में पूरा करना ‘नौ मन तेलÓ जमा करने के बराबर है। उसकी वजह संसद में प्रचंड सरकार के पक्ष में दो-तिहाई सांसदों का नहीं होना है। तीन अगस्त 2016 को मतदान में 592 सदस्य संसद में उपस्थित थे। प्रचंड को प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में 363 मत पड़े, और 210 विपक्ष में। इसका मतलब यह होता है कि भविष्य में मधेस को लेकर संविधान में सुधार का जो वायदा किया गया है, उसे दो-तिहाई मतों द्वारा पास कराना मुश्किल है!