दुनियाभर की सरकारों से लड़ाई लड़ रहा है ऊबर

uberनई दिल्ली (आरएनएस)। इस सप्ताह की शुरुआत में बॉम्बे हाई कोर्ट ऊबर टेक्नलॉजीज और ओला (एएनआई टेक्नलॉजीज) राइड-शेयरिंग प्लैटफॉर्म्स द्वारा पेश सेवाओं की वैधता पर सवाल उठाया। इस मामले में मुंबई अकेला नहीं है। यह लड़ाई दिल्ली से कोलकाता और बेंगलुरु से भोपाल तक, यूं कहें कि पूरे देश में लड़ी जा रही है। ऐसी सेवाओं की वैधता के साथ-साथ जिन मुद्दों पर विवाद चल रहा है, वह है सर्ज प्राइसिंग (मांग बढऩे पर ज्यादा किराय वसूलना)।
यह मामला तब सामने आया है जब केंद्र सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में दिशानिर्देश जारी कर राइड शेयरिंग प्लैटफॉर्म्स को आईटी आधारित ट्रांसपोर्टेशन ऐग्रिगेटर्स बताते हुए इन्हें टैक्सी ऑपरेटरों से अलग कर दिया। सरकारी गाइडलाइंस में कारों की तय संख्या, 24&7 कॉल सेंटर, स्क्रीनिंग, ड्राइवरों की मॉनिटरिंग और ट्रेनिंग तथा जीपीएस के इस्तेमाल की जरूरतों को रेखांकित किया गया।
ऊबर इंडिया के एक प्रवक्ता ने कहा, रेग्युलेशन का फोकस आम आदमी के हितों पर होना चाहिए। मसलन, उपभोक्ता संरक्षण और प्रतिस्पर्धा। रेग्युलेशन में संरक्षणवादी भावना नहीं होनी चाहिए जो नई कंपनियों के लिए मार्केट में आने का रास्ता रोक दे। लेकिन, अब भी कुछ साफ नहीं हो सका है और ऐसा भी नहीं है कि ऐसी हालत सिर्फ भारत में है।
ऐप आधारित टैक्सी सेवा देनेवाली दुनिया की बड़ी कंपनी ऊबर कथित तौर पर अमेरिका से कनाडा, जर्मनी से यूके और ब्राजील से कोरिया तक कुल 170 कानूनी मामलों का सामना कर रही है। हर देश में इसे अलग-अलग मुद्दों पर सरकारों का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिका में ड्राइवरों को लेकर परेशानी है तो कनाडा में इसे टैक्सी यूनिन्स का विरोध झेलना पड़ रहा है। ऊबर और एयरबीएनबी जैसी शेयरिंग इकॉनमी के लिए कॉमन फ्रेमवर्क तैयार करने के मकसद से जून में न्यू यॉर्क से लेकर पैरिस तक के कम-से-कम 10 शहरों के मेयर इक_ा हुए थे।
क्या ऊबर एक टैक्सी ऑपरेटर है या टेक्नॉलजी कंपनी जो ड्राइवरों को अपना प्लैटफॉर्म ऑफर कर रहा है? क्या ऊबर के ड्राइवर कंपनी के एंप्लॉयी हैं या स्वतंत्र ठेकेदार? क्या शेयरिंग इकॉनमी टेक्नॉलजी के पीठ पीछे बढ़ रही है जिससे होटल से लेकर टैक्सी इंडस्ट्री तक को नुकसान पहुंच रहा है? ये कुछ सवाल हैं जिन पर सरकारों, रेग्युलेटरों और न्यायपालिका को सोच-समझकर स्पष्ट फैसला लेना है।