नाजिया बोलीं: मुसलमानों के विरुद्ध हथियार बन गया है तीन तलाक

naziकोलकाता (एजेंसियां)। सुप्रीम कोर्ट में इशरत जहां के तीन तलाक मामले की पैरवी करने वाली वकील सुश्री नाजयि़ा इलाही खान ने आज कहा की तीन तलाक के मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की लगातार चुप्पी और टालमटोल का रवैया देश की इस बहुआयामी समाज में मुसलमानो की सामाजिक जीवन के बारे में दोषी दृश्य प्रदान कर रहा है। बोर्ड शायद अब तक वे आवाज़ें सुनने मैं असमर्थ है जो इस मुद्दे पर अपने रुख और स्थिति में ठहराव को लेकर अभी स्पष्ट रूप से अलग अलग दिशा से उठने लगी हैं, बोर्ड को चाहिए कि इस मामले में वह परिणाम तक पहुंचे और इस विवाद को समाप्त करने में अपना सकारात्मक भूमिका निभाए।
उन्होंने कहा कि यह स्थान विचार है कि जिस मुस्लिम पर्सनल लाबोर्ड का सर्वसम्मति से मुसलमानों के पारिवारिक समस्याओं के समाधान हेतु गठन हुआ था वे बोर्ड इन मामलों में चुप है।
याद रहे कि गत शुक्रवार 26 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक की परंपरा के संवैधानिक औचित्य के संबंध में केंद्र सरकार और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (ए आई एम पी एल बी) को नोटिस जारी कर इस मामले में अपना पक्ष प्रस्तुत करने को कहा है इशरत जहां ने अपने वकील ऐ के वीजू और एडवोकेट नाजयि़ा इलाही खान के माध्यम से यह याचिका दाखिल कर कहा है कि उसके पति ने वर्ष 2015 में दुबई से फोन के माध्यम से उन्हें तलाक दे दिया, मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने केंद्र सरकार और ए आई एम पी एल बी को नोटिस जारी कर इस संबंध में पहले से अदालत में लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न कर दिया है, आवेदक ने कहा है कि उसके पति ने दुबई से ही फोन के माध्यम से उसे तलाक दे दी और उसके चारों बच्चों को जबरन छीन लिया। इसके बाद उसके पति ने दूसरी शादी भी कर ली। वर्तमान में वह अपनी ससुराल में ही रह रही है, जहां उसकी जान को खतरा है। आवेदन में अपने बच्चों को वापस दिलाने और उसे सुरक्षा मुहैया कराने की मांग की गई है। इसके साथ ही इशरत ने अपनी याचिका में अदालत से मुस्लिम पर्सनल ला रीपब्लिकेशन अधिनियम 1937 की धारा 2 (दो) को अवैध करार देने की मांग की है। आवेदक ने अदालत से दहेज वापस दिलाने की अपील की है। खंडपीठ ने कहा कि बच्चों को वापस दिलाने के मामले में राहत के लिये आवेदक को अलग से याचिका दाखिल करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट में इशरत की वकील एडवोकेट सुश्री नाजयि़ा इलाही खान ने कहा कि पर्सनल ला बोर्ड के बौद्धिक अप्रवाह से देश के संविधान से टकराव तथा मुस्लिम महिलाओं की परस्पर संरेखण की आशंका पैदा होती नजऱ आ रही है क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक से सम्बंधित समस्या में यथार्थवादी शैली अपनाने के बजाय समाज सुधार के लबादे में जिस तरह अपने महिला विभाग को मैदान में उतार दिया है, विश्वास प्रबल है कि उसका विरोधी प्रतिक्रिया भी प्रभावित मुस्लिम महिलाओं से भी देर या सबेर देखने को मिल सकता है, और जो मीडिया मैं
बार बार उछाले जाने की आशंका है। इस स्थिति में देश में मुस्लिम महिलाओं से कृत्रिम हमदर्दी के पृष्ठभूमि में शरई कानून (मुस्लिम क़ानून) से घृणा का माहौल पैदा करने में भी दूसरों को खूब मदद मिलेगी। इस समय ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अस्तित्व का बे हकीकत होकर रह जाने की आशंका तो है ही, मुस्लिम समाज में महिलाओं के बीच शरीयत और दीन (इस्लाम) से घृणा का माहौल अधिक पनपने का अवसर भी मिलेगा।