जीएसटी बढ़ाएगा टैक्स प्रफेशनल्स की कमाई

GST newनई दिल्ली (आरएनएस)। गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) से जहां कारोबारियों की अनुपालन लागत बढऩे के आसार हैं, वहीं चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और टैक्स कंसल्टेंट्स के लिए आमदनी और अवसरों की भरमार होने जा रही है। जानकारों का कहना है कि जीएसटी के तहत न्यूनतम पांच मंथली रिटर्न, हर ब्रांच के लिए अलग रजिस्ट्रेशन, इनपुट टैक्स क्रेडिट की पेचीदगियों के चलते मौजूदा वैट, एक्साइज या सर्विस टैक्स के मुकाबले ज्यादा सावधानी और औपचारिकताओं की जरूरत होगी जिससे टैक्स प्रफेशनल्स की डिमांड बढ़ेगी।
जीएसटी एक्सपर्ट सिद्धार्थ श्रीवास्तव ने बताया, एक सामान्य असेसी के लिए हर महीने पांच रिटर्न प्रति रजिस्ट्रेशन की दर से भरनी होंगी। अगर दिल्ली के किसी ट्रेडर की नोएडा और गुडग़ांव में भी ब्रांच है तो उसे औसतन 200 रिटर्न सालाना भरनी होगी। वैट सिस्टम के उलट जीएसटी में सेंट्रलाइज्ड रजिस्ट्रेशन का प्रावधान नहीं होगा। ऐसे में कंपनियों को हर राज्य में टैक्स मैनेजर या कंप्लायंस सपॉर्ट टीम रखनी पड़ेगी। यहां बेशुमार मौके होंगे। आम तौर पर कंपनियां स्थायी नियुक्तियां नहीं करतीं, ऐसे में सीए और कंसल्टेंट्स को काफी काम मिलेगा। उन्होंने बताया कि जीएसटी के तहत इनपुट टैक्स क्रेडिट लेना आसान नहीं होगा और वित्तीय खाते स्टैट्यूटरी ऑडिट के बाद ही सेटल होंगे। सीजीएसटी, एसजीएसटी और आईजीएसटी के बीच क्रेडिट सेटलमेंट के लिए एक्सपर्ट कैलकुलेशन की जरूरत होगी।
सीए और वैट एक्सपर्ट पी एन गुप्ता कहते हैं कि एक वैट रजिस्टर्ड डीलर के लिए रजिस्ट्रेशन से लेकर रिटर्न भरने की लागत कम से कम पांच गुना बढ़ जाएगी, क्योंकि उसे न सिर्फ सेल ऑफ गुड्स बल्कि सप्लाई ऑफ सर्विसेज को भी रिपोर्ट करना होगा। वैट के तहत बहुत से डीलर एग्जेम्पटेड गुड्स के तहत कारोबार करते हैं, लेकिन जीएसटी में छूट की अवधारणा खत्म होने जा रही है। यहां रेट कम से कम हो सकता है, लेकिन कंप्लायंस से निजात नहीं मिलेगी। ऐसे में टैक्स प्रफेशनल्स के लिए क्लायंट्स का एक नया वर्ग उभरने जा रहा है।
उन्होंने बताया, कुछ साल पहले तक मैं एक छोटे वैट डीलर से तिमाही रिटर्न के लिए 2000 रुपये लेता था। स्टैट्यूटरी फॉर्म्स के साथ यह फीस 3 हजार हो जाती थी। फिर 2ए-2बी आया। उसके बाद फॉर्म-9 और आर-1 जैसे फॉर्म आए। अब आइटम कोड भी भरना है। आज आइटम कोड के साथ रिटर्न भरने की फीस करीब दो गुनी हो चुकी है। डॉक्युमेंट जितने ज्यादा होंगे, लागत बढ़ती जाएगी। जीएसटी में तो पूरा सिस्टम ही बदलने जा रहा है।
शालीमार बाग ट्रेडर्स असोसिएशन के प्रेजिडेंट प्रवीण अरोड़ा कहते हैं, जीएसटी पूरी तरह डिजिटल सिस्टम है, जबकि 80 प्रतिशत छोटे कारोबारी ऑफलाइन मोड में काम कर रहे हैं। ऐसे में सीए पर उनकी निर्भरता और बढ़ जाएगी। जहां एक ओर केंद्र और राज्य सरकारें जीएसटी की तकनीकी तैयारियां कर रही हैं, वहीं टैक्स फर्में भी अपने सॉफ्टवेयर और स्किल्स को अपडेट करने में जुटी हैं।