एसजीपीजीआई ने 2 साल रिसर्च के बाद तैयार की मशीन, पकड़ेगी मच्छर

dengue-feverलखनऊ, आरएनएस। एसजीपीजीआई के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की ओर से 2 साल की रिसर्च के बाद मॉस्किटो ट्रैपर नाम की मशीन तैयार की गयी है। जिससे डेंगू और मलेरिया के मच्छरों को पकड़ा जाएगा। इस मशीन को ऐसे इलाके में लगाया जायेगा जहां पर मच्छरों की सं या ज्यादा हो। पीजीआई के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के हेड प्रो़ टीएन ढोल ने दो साल की रिसर्च के बाद तैयार प्लान प्रमुख सचिव अरुण सिन्हा के सामने पेश किया। दरअसल हाई कोर्ट के आदेश पर बनी टेक्निकल कमेटी की बैठक में केजीएमयू और लोहिया इंस्टिट्यूट समेत कुछ रिसर्च सेंटरों के प्रतिनिधि भी मौजूद थे। माना जा रहा है कि सरकार जल्द ही इसके मुताबिक एक्शन प्लान तैयार कर सकती है। बताते चलें कि प्रो. टीएन ढोल ने मॉस्किटो ट्रैपर पर अपनी रिसर्च गोरखपुर, और कुशीनगर में जेई पीडि़त इलाकों में की है।
400 मशीनों से पकड़ेंगे मच्छर

प्रमुख सचिव की ओर से एक्शन प्लान के लिए 400 मॉस्किटो ट्रैपर मशीनें और करीब 500 कर्मचारियों की फौज तैयार की है। इन मशीनों को ऐसे इलाके में लगाया जाएगा जहां मच्छरों की सं या ज्यादा है। हर इलाके से मशीन के माध्यम से पकडे गए मच्छर लैब में लाए जाएंगे, जहां मच्छर और उसके वायरस की जांच होगी। पकड़े गए मच्छर में वायरस की पुष्टि होते ही उस पूरे इलाके में बाहर और घरों के भीतर फॉगिंग और एंटी लार्वा का छिड़काव किया जाएगा। इसके अलावा लोगों के भी सैंपल को लेकर जांच होगी।

अल्ट्रा वॉयलेट किरणें हैं निकलती

मॉस्किटो ट्रैपर मशीन से अल्ट्रा वॉयलेट किरणें निकलती हैं जिससे रात में मच्छर इकि तरफ आकर्षित होते हैं और इसी में गिर जाते हैं। भीतर चिपचिपा व जहरीले लेप वाला कागज होता है। इसके संपर्क में आते ही मच्छर व कीट-पतंगे मर जाते हैं। इस ट्रैपर में चार जालियां होती हैं। बड़े छेद वाली जाली सबसे ऊपर और सबसे पतली वाली जाली सबसे नीचे। ऐसे में बड़े कीट ऊपर फंसे रहते हैं जबकि मच्छर नीचे गिर जाते हैं।