कश्मीरी पंडितों की सुध

KASHMIR_BURHAN_PROTEST_कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन के 27 साल बाद उनकी वापसी के लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पारित प्रस्ताव का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन इसकी सार्थकता तभी साबित होगी, जब उनकी घर वापसी के अनुकूल माहौल भी बनाया जाये। निर्दलीय विधायक इंजीनियर रशीद के विरोध को अगर अपवाद मान लें तो यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि कश्मीरी पंडितों के पलायन की 27वीं वर्षगांठ पर यह प्रस्ताव विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित हुआ। यह भी उल्लेखनीय है कि विपक्ष के नेता एवं नेशनल कानफ्रेंस के मुखिया उमर अब्दुल्ला के सुझाव पर यह प्रस्ताव राज्य की पीडीपी-भाजपा सरकार की ओर से पेश किया गया। इससे संदेश गया है कि राज्य के सभी राजनीतिक दल चाहते हैं कि आतंकवाद के चलते पलायन कर गये कश्मीरी पंडित अपने घर वापस लौटें। अलगाववाद, आतंकवाद और निरंतर अपमान के चलते 27 साल पहले घाटी से पलायन कर गये कश्मीरी पंडितों की संख्या साढ़े तीन लाख के आसपास है। कुछ सिख एवं मुस्लिम परिवार भी घाटी से जम्मू या देश के अन्य हिस्सों को पलायन कर गये थे। 27 साल कम अरसा नहीं होता। दरअसल इस अवधि में एक पूरी पीढ़ी बदल जाती है। जो तब बच्चे रहे होंगे, आज युवा हो चुके हैं और जो युवा रहे होंगे, अब बुढ़ापे की दहलीज पर हैं।
अपने जीवन के ये बेहद महत्वपूर्ण 27 साल अपनी जड़ों से कट कर उन्होंने कैसे गुजारे होंगे-इसकी कल्पना भी सिहरा देने वाली है। देश की राजधानी दिल्ली समेत कई हिस्सों में कश्मीरी पंडित शरणार्थियों का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। बेशक बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद कुछ कश्मीरी पंडित युवाओं ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनायी है, छाप छोड़ी है, लेकिन इससे सरकार और समाज का अपराध कम नहीं हो जाता। आखिर किसी भी सभ्य और कानून सम्मत समाज में ऐसी स्थिति को कैसे स्वीकार्य माना जा सकता है, जिसमें नागरिकों को जान बचाने के लिए घर-बार छोड़ कर पलायन करना पड़ जाये? निश्चय ही यह विविधतापूर्ण कश्मीरी समाज और संस्कृति पर बड़ा सवालिया निशान है। इससे भी बड़ा अनुत्तरित प्रश्न है इन 27 सालों में कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के लिए कोई ठोस प्रयास न किया जाना। ऐसा नहीं है कि इस बीच कश्मीरी पंडितों ने घर वापस जाने की इच्छा नहीं जतायी या ऐसी मांग नहीं उठी। कश्मीरी पंडितों के अपने संगठन के अलावा भाजपा भी उनकी घर वापसी की पैरवी करती रही है। फिर भी जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-भाजपा सरकार बनने के बाद भी इस आशय का प्रस्ताव पारित होने में ही इतना लंबा वक्त लग गया। जाहिर है, प्रस्ताव पारित होने भर से कश्मीरी पंडितों की वापसी नहीं हो जायेगी। उसके लिए सरकार और समाज को सुरक्षा, रोजी-रोजगार समेत अनुकूल माहौल बनाना होगा तथा अभी से विरोध करने लगे अलगाववादियों को सख्ती से खामोश भी करना होगा।