निजता का अधिकार मौलिक अधिकार-सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में देश के नागरिकों के निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है। नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि निजता एक मौलिक अधिकार है। निजता राइट टू लाइफ का हिस्सा है। निजता के हनन करने वाले कानून गलत हैं। कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और यह संविधान के आर्टिकल 21 के अधिकार के तहत आता है। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने दो अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब पांच न्यायाधीशों की पीठ आधार की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
सरकार ने निजता के अधिकार का विरोध करते हुए कहा था कि ये सन्निहित अधिकार है, लेकिन ये कॉमन लॉ में आता है। निजता हर मामले की परिस्थितियों पर तय होती है। संविधान निर्माताओं ने जानबूझकर इसे मौलिक अधिकारों में शामिल नहीं किया था। कोर्ट मौलिक अधिकार घोषित करता है, तो यह संविधान संशोधन होगा जिसका कोर्ट को अधिकार नहीं है। आंकड़े एकत्रित करना निजता के तहत नहीं आता। निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया गया तो तकनीक का सहारा लेकर गुड गर्वनेंस के प्रयास रुक जाएंगे।
जबकि निजता के अधिकार के समर्थकों का कहना था कि निजता सम्मान से जीवन जीने के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। मुख्य अधिकार मौलिक अधिकार है, तो उसका हिस्सा भी माना जाएगा। कोर्ट कई फैसलों में निजता के अधिकार को मान्यता दे चुका है। निजता को स्वतंत्रता व जीवन के अधिकार से अलग करके नहीं देख सकते। अमेरिका और अन्य देशों में निजता को मौलिक अधिकार माना गया है।
निजता के अधिकार पर बहस आधार योजना को चुनौती आधार कार्ड योजना के साथ शुरू हुई थी। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि बायोमीट्रिक डाटा और सूचनाएं एकत्र करने से उनके निजता के अधिकार का हनन होता है। सुप्रीम कोर्ट के दो पूर्व फैसलों में आठ न्यायाधीशों और छह न्यायाधीशों की पीठ कह चुकी है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। ऐसे में भारत सरकार और याचिकाकर्ताओं ने निजता के अधिकार का मुद्दा बड़ी पीठ के द्वारा सुने जाने की अपील की थी। इस पर नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ गठित हुई। पीठ के अध्यक्ष प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर हैं। उनके अलावा पीठ में जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस एस. बोबडे, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एएम सप्रे और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
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