बिहार में बुझ गया पासवान का चिराग

डेस्क। एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव मैदान में उतरी लोजपा एक सीट भी नहीं जीत सकी। इस तरह वह सियासी परिदृश्य से बाहर हो गई है। कुल 135 सीटों पर पार्टी ने उम्मीदवार उतारे थे। आलम यह है कि उसके दोनों विधायक गोविंदगंज से राजू तिवारी और लालगंज से राजकुमार साह तीसरे नंबर पर रहे हैं। भाजपा के कई दिग्गज नेता भी बागी होकर लोजपा के टिकट पर चुनाव में उतरे थे। जदयू नेता और पूर्व मंत्री श्रीभगवान सिंह कुशवाहा भी लोजपा सिंबल पर मैदान में थे। पार्टी को इन दिग्गजों से भी उम्मीद थी, पर सफलता नहीं मिली। हालांकि लोजपा ने कई सीटों पर चुनाव परिणाम को काफी हद तक प्रभावित जरूर किया है। खासकर, जदयू को अधिक नुकसान किया और महागठबंधन को उसका लाभ मिला है। कुछ सीटों पर तो लोजपा उम्मीदवार ने जदयू को तीसरे नंबर पर धकेल दिया है। लोजपा के छह उम्मीदवार भाजपा के खिलाफ भी मैदान में थे। बिहार विधानसभा के पिछले चुनावों की तुलना में जदयू के लिए यह चुनाव थोड़ा महंगा साबित हो रहा है। इस बार जिन 115 सीटों पर जदयू ने उम्मीदवार उतारे थे, उनमें अब तक मात्र 43 सीटों पर यह पार्टी जीतती दिख रही है। उधर, जदयू इस चुनाव में हाल के दिनों में सबसे कम उम्मीदवार जीता सकी है। इसके पहले 2005 के फरवरी के चुनाव में पार्टी को अब तक सबसे कम 55 सीटें मिली थीं। उस समय यह पार्टी 138 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। लेकिन, उसके तुरंत बाद उसी अक्टूबर में हुए चुनाव में जदयू को 88 सीटें मिली थीं। उस समय दूसरी बार नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। तब से आज तक हर चुनाव में उनकी पार्टी विरोधियों को मात देती रही और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनते रहे।
जदयू का वोट शेयर भी इस बार कम हो जाएगा, जबकि सीटों के मामले में पार्टी ने पिछले चुनाव से अधिक पर उम्मीदवार दिए थे। तब राजद के साथ जदयू का गठबंधन था और 101 उम्मीदवारों में उसके 71 उम्मीदवार जीत गये थे। वोट भी उसको 16.83 प्रतिशत मिला था। वोटों की गिनती सीटों की संख्या के आधार पर करेंगे तो उस समय पार्टी को 40.65 प्रतिशत वोट मिले थे। उसके पहले वर्ष 2010 में जदयू का गठबंधन भाजपा के साथ था और 141 सीटों पर उम्मीदवार देकर 115 को जीत दिलाई थी। तब वोट प्रतिशत भी 22.9 और सीटों के हिसाब से 38.7 प्रतिशत मिले थे।