चीन पर भारत के तेवर सख्त : दिखाई गलवान मॉडल की झलक

नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में नौ महीने के लंबे समय तक आमने-सामने रहने की स्थिति के बाद बुधवार से भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के जवान बख्तरबंद वाहनों के साथ पैंगोंग सो लेक के उत्तरी और दक्षिणी किनारे से वापस होने लगे। इसके पीछे की वजह वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति स्थापित करने की ओर एक और कदम बढ़ाना है। इस बाबत देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में गुरुवार को बताया कि पैंगोंग लेक क्षेत्र में चीन के साथ सेनाओं को पीछे हटाने का जो समझौता हुआ है उसके अनुसार दोनों पक्ष अग्रिम तैनाती चरणबद्ध, समन्वय और सत्यापन के तरीके से हटाएंगे। पूर्वी लद्दाख की इस भीषण ठंड में भी मोदी सरकार को पूरा विश्वास था कि देश के जवान सीमा पर डटे रहेंगे और आखिरकार हुआ भी वैसा ही। पैंगोंग के किनारों से चीनी सेना को खदेड़े जाने के पीछे गलवान मॉडल की ही झलक दिखाई दी है। पैंगोंग सो के दोनों किनारों से हो रहे डिस-एंगेजमेंट विदेश मंत्री एस जयशंकर और पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा निर्देशित एनएसए अजीत डोभाल के पर्दे के पीछे की गई कई दौर की बातचीत का ही नतीजा है। वहीं, जमीनी स्तर पर दो कॉप्र्स कमांडर स्तर के अधिकारियों ने महीनों तक चीनी सेना के वरिष्ठ कमांडरों के साथ बैठकें कीं। सरकार के शीर्ष अधिकारियों ने बताया कि इस डिस-एंगेजमेंट के पीछे का मूल सिद्धांत यह है कि दोनों देशों की सेनाएं ठीक उसी जगह पर चली जाएं, जहां पर अप्रैल 2020 में थीं। इसका मतलब है कि चीनी सेना को श्रीजाप सेक्टर से पीछे हटना होगा। यह पैंगोंग सो के उत्तरी किनारे के फिंगर 8 के पूर्व में पड़ता है। वहीं, भारतीय सेना भी 1962 के युद्ध के बाद परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले महान सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल धन सिंह थापा के नाम पर बने फिंगर 3 के स्थायी बेस पर वापस आ जाएगी।