जीडीए में जेई टिके हैं सालों से: आकाओं से हैं संबंध

गाजियाबाद। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण उत्तर प्रदेश का ऐसा प्राधिकरण बन गया है जहां पर ऊपर से नीचे तक किसी को फुर्सत नहीं है जिम्मेदारी निभाने की। यहां पर रोज अनियमितताओं के,घोटालों के मामले गूंजते रहते हैं। कारण भी स्पष्ट है क्योंकि आरोपितों को माकूल दंड ना देकर सिफारिश के चलते अभयदान दिया जाता है। यहां पर आने वाले अभियंताओं का मन यहां बिखरी मलाई को देखकर गाजियाबाद को छोडऩे का होता ही नहीं है इसलिए वह शासन में बैठे नेताओं,अधिकारियों से जुगाड़ भिड़ा लेते हैं तथा फिर उस नाम की एवज में स्थानीय प्रशासन पर व समाज पर रोब जमा कर माफियाओं से संधि कर स्थानांतरण नीति के विरुद्ध एक ही विभाग में एक ही जिले में वर्षों तक बेखौफ बगैर किसी परेशानी के आराम से बढिय़ा समय काटते हैं। यहां बिखरी मलाई को खाकर मजबूत होकर बेहतरीन आशियाना भी बना लेते हैं। कायदे में तो शासन की जिम्मेदारी है कि एक विभाग में 3 वर्ष होने के उपरांत स्वत: अन्यत्र ट्रांसफर किया जाए लेकिन यदि शासन सुस्त व लापरवाह है तो स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी है कि जहां पर यह जो अभियंता 3 वर्ष से अधिक तैनाती पा रहे हैं तो उनकी सूचना शासन को दे ताकि उनका अन्यत्र ट्रांसफर हो सके। एक ही जिले में अभियंताओं के रुके रहने का एक उदाहरण ही काफी है। सूत्रों के अनुसार जीडीए में सतीश चंद कुशवाहा अवर अभियंता जुलाई 2008 से मई 2012 तक तैनाती में रहे तत्पश्चात जुगाड़ लगाकर नवंबर 2015 से आज तक बगैर किसी परेशानी के निरंतर कायम है। जीडीए का प्रशासन भी जानकर अनजान है क्योंकि वहां पर खुद 10 से 15 वर्षों से लिपिक वर्ग जैसे कि रामबरन यादव लिपिक एक ही अनुभाग में तैनात है। फिर कैसे एक दूसरे की सूचना अग्रसारित करें जब सेवा का मेवा भी दाएं बाएं से मिल जाता है। जीडीए के बराडें में आम चर्चा रहती है कि अभियंता शासन को अपना नाम अन्यत्र प्राधिकरण में ट्रांसफर हेतु लिस्ट में ना भेजने के लिए प्रशासन अनुभाग को अच्छी सेवा/मेवा प्रदान करते हैं।