काबुल से लौटे लोगों ने सुनाई दहशत भरी आपबीती

श्यामल मुखर्जी, साहिबाबाद। अफगानिस्तान के काबुल से जामनगर होकर हिंडन हवाई अड्डे पर पहुंचे भारतीय नागरिकों ने अपनी आपबीती सुनाई। एक तरफ जहां उनकी जुबा से तालिबानियों के अत्याचारों की कहानी सुनाते हुए सब कुछ खोने का दर्द छलक उठता था तो वहीं दूसरी ओर उनकी आंखों में अपने वतन वापसी की खुशी की चमक भी साफ देखी जा सकती थी। यात्रियों ने बताया कि वे काबुल एयरपोर्ट में कई दिनों से फंसे हुए थे और उनके चारों तरफ तालिबानी सैनिकों का पहरा था । हालत यह थी कि उनकी जिंदगी पूरी तरह से तालिबानी लड़ाकों के रहमों करम पर टिकी हुई थी। उनके अनुसार काबुल एयरपोर्ट में लगभग 25 /30,000 की तादाद में लोग फंसे हुए थे। तालिबानियों से आतंकित होने के कारण इनमें से हर व्यक्ति जल्द से जल्द किसी भी तरह अफगानिस्तान की सीमा से बाहर जाकर खुद को महफूज करना चाहता था । परंतु यहां इंसानों की नहीं केवल बंदूकों की और बर्बरता की हुकूमत चल रही थी। यात्रियों को हर पल हमेशा यही डर सताता रहता था कि पता नहीं कब किस पल कहां से गोली की बौछार शुरू हो और किस का सीना छलनी हो जाए। वहां फंसे हुए हर आदमी की बस यही एक तमन्ना थी कि किसी तरह जल्द से जल्द वहां से निकला जाए । भारतीय नागरिक जब गुजरात के जामनगर से होते हुए हिंडन एयरपोर्ट पर पहुंचे तब जाकर के उन्होंने राहत की सांस ली । लगभग सभी यात्रियों ने एक ही बात बताई कि 15 अगस्त के दिन से अफगानिस्तान का माहौल पूरी तरह से बदल चुका था। सलवार कुर्ता और पाव में चप्पल पहने, पगड़ी बांधे और कंधे पर बंदूक टांगे हुए तालिबान के लड़ाके लोगों के घरों में घुसकर छापे मार रहे थे । वैसे तो उनके टारगेट अफगानी नागरिक थे पर इस बहाने वह जमकर मनमानी कर रहे थे। तालिबानी बोलते कम है पर करते वही है जो उन्हें सही लगता है। कुछ यात्रियों ने बताया कि उन्हें चलते वक्त पैकिंग तक का समय नहीं मिल पाया । कुछ यात्री तो सिर्फ एक ही वस्त्र में घर से निकल भागे थे। कई रास्तों से होकर गुजरने के बाद काबुल एयरपोर्ट पहुंचने पर उन्हें वहां 30 से 35 हजार बदहवास यात्रियों की भीड़ नजर आई जो अलग-अलग देशों में जाने के लिए अथवा अपनी वतन वापसी के लिए आतुर थे। हालांकि तालिबानी लड़ाकों के मुख्य टारगेट अफगानी सैनिक तथा अफगानी नागरिक थे । जिनके पास भारत के पासपोर्ट उपलब्ध थे उन्हें वे जाने देते थे। परंतु यात्रियों के लिए वहां बिताया हुआ एक-एक क्षण किस विभीषिका से कम नहीं था।