भाजपा कर्मियों के बुरे दिन: न वेतन न भत्ता और मांगा तो बाहर का रास्ता

bjp-state-office-

योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। लोकसभा चुनाव से पहले अच्छे दिन वाले है के जुमले ने देश के हर आम और खास को काफी उम्मीदे बंधा दी थी तो भाजपा और इससे जुड़े लोगों ने भी यही उम्मीद रख ली तो क्या गुनाह किया था। लेकिन केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के बाद संगठन में जो फेरबदल हुआ उसके बाद जो निर्णय हुआ उससे तो भाजपा मुख्यालय में काम करने वाले कर्मचारियों के ही बुरे दिन शुरू हो गए। यूपी भाजपा मुख्यालय का तो कायाकल्प कारपोरेट आफिसों की तरह हो रहा है लेकिन यहां दशकों से काम करने वाले कर्मचारियों को एक-एक करके बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। यूपी में भाजपा के तीन मुख्यमंत्री हुए सरकारे भी रही लेकिन कर्मचारियों का भला नहीं हुआ। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान जो वादे किए गए उससे यहां काम करने वाले कर्मचारी भी खासे उत्साहित और आशान्वित थे लेकिन अब जो हकीकत सामने आ रही है वह काफी भयावह है। पार्टी नेताओं का रहन-सहन तो राजा-महाराजाओं सा है और पार्टी कार्यालय के कमरों में सुख सुविधा का सारा सामना मुहैया है। कार्यकर्ताओं को पद प्रतिष्ठïा के प्रलोभन से दूर रहने की नसीहत देने वाले नेता पीएम मोदी की सारी नसीहतों से बेपरवाह होकर अपने सारे शौक पूरे करने में लगे है। जिन दीनदयाल उपाध्याय और श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने अपना सारा जीवन राष्टï्र की एकता अखंडता के लिए समर्पित कर दिया उनके अनुयायी थ्रीडब्लू के कल्चर में ढल गए है। लोक सभा चुनाव के समय पार्टी नेताओं ने कर्मचारियों का वेतन दो गुना करने का भरोसा दिलाया लेकिन जैसे ही पार्टी सत्ता में आई कर्मचारियों की छंटनी शुरू हो गई। संगठन के मुखिया के कमरे की साज सज्जा में लाखों खर्च करने वाले तंत्र ने उन्ही कर्मचारियों को बोझ मानकर बाहर का रास्ता दिखा दिया जिन्होने दिन रात खून पसीने से सींचकर कर पार्टी को इस मुकाम तक पहुंचाया। एक तरफ पार्टी  मुख्यालय भवन का विस्तार शुरू हुआ दूसरी ओर बीस साल से अधिक की सेवा दे चुके लगभग आधा दर्जन कर्मचारियों को दूध की मक्खी की तरह निकाल बाहर किया गया। लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेशाध्यक्ष डा. लक्ष्मीकान्त बाजपेयी ने बताया था कि केन्द्र में सरकार बनने की खुशी में प्रदेश मुख्यालय पर तैनात कर्मचारियों का वेतन दूना या दिल्ली कार्यालय के कर्मचारियों के बराबर कर दिया जायेगा। लेकिन ये मात्र घोषणा बनकर ही रह गयी। किसी कर्मचारी का एक रूपया भी वेतन नही बढ़ा बल्कि कुछ को नौकरी गंवा कर कीमत चुकानी पड़ी। पार्टी सूत्रों पर भरोसा करे तो नेताओं की आपसी लड़ाई के कारण कर्मचारियों का न सिर्फ घोषणा के बाद वेतन वृद्धि रोकी गई बल्कि पांच लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल और प्रदेश कोषाध्यक्ष राजेश अग्रवाल इस बात से बेहद खफ ा थे कि उनसे पूछे बिना ये कैसे तय हो गया कि कर्मचारियों का वेतन बढ़ाया जायेगा। उनका कहना था कि यदि इतनी भारी भरकम कर्मचारियों का वेतन वृद्धि किया गया तो पार्टी पर बड़ा आर्थिक बोझ आ जायेगा और ये पैसा कहां आयेगा। जब आन्दोलित कर्मचारियों ने जानना चाहा कि संगठन मंत्री जैसा प्रचारक व्यक्ति पंच सितारा होटलों की तरह साज-सज्जा वाला शयन कक्ष का निर्माण करता है तब दीन दयाल उपाध्याय की अर्थनीति भूला दी जाती है। भाजपा में काम करने वाले और बाहर किए गए सारे कर्मियों की सारी कवायाद पर तब पानी फिर गया जब हरीराम, मदन, जगजीवन, संजय, राजीव टण्डन और शंकर लाल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। पार्टी के एक पूर्व अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि कर्मचारियों की छंटनी इस नाते की जा रही है जिससे निष्ठावान कर्मचारियों की जगह एक निजी कंपनी के कर्मचारी भरे जा सके। उन्होने बताया कि यह कंपनी भाजपा के एक राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) के मित्र की है। इसके कर्मचारियों का नियुक्ति के समय ही प्ररार िभक वेतन आठ हजार यात्रा भत्ता भोजन आवास और मोबाइल बिल के साथ होता है। जबकि कार्यालय के पुराने कर्मचारियों का वेतन 6 से 7 हजार के बीच बिना अतिरिक्त सुविधा दिये भुगतान किया जाता है। आश्चर्य इस बात का है कि कार्यालय में लगे सफ ाई कर्मी को जितना भुगतान किया जाता है उतना ही पार्टी के कंप्यूटर आपरेटर को किया जाता है।