हेल्थ डेस्क। मासिक धर्म के तुरंत बाद के दिनों में लेडीज संभोग क्रिया में अधिक आक्रामक होती है और सेक्स के लिये अतिऊर्जावान पुरुष द्वारा संभोग की लालसा रखती है। इसके अलावा स्त्रियों में तीव्र कामेच्छा प्राय: वसंत में, पतझड़ में, बरसात में और शरद में बढ़ जाती है।
अमावस्या, पूर्णिमा, चतुदर्शी, नवमी तिथियों, शुक्ल पक्ष के प्रारम्भ में, रविवार या उसके आस पास वाले दिनों में, मासिक के तीन-चार दिनों पूर्व से लेकर मासिक के ठीक पहले तक और मासिक के तुरन्त बाद से लेकर एक सप्ताह तक स्त्रियों में सेक्स इच्छाओं का प्रबलता पायी जाती है।
स्त्रियों में सेक्स की प्यास महासागर की अथाह असीम गहराई लिये होता है। सेक्स में स्त्रियां सागर समान होती है। सेक्स क्रिया में मंथन के दौरान सागर इसलिये नहीं थकता की वह कभी अधीर, अशांत, बेचैन और जल्दी में नहीं होता उसमें पर्याप्त धैर्य बना रहता है। स्त्रियां तो राह होती है राह कभी थकती नहीं, राह पर चलने वाले यात्री थक जाते है। क्योंकि उनके चलते रहने की शक्ति सीमित होती है। यही कारण है कि सेक्स में कोई भी पुरुष किसी भी स्त्री को पूरी तरह तृप्त नहीं कर पाता है। स्त्रियां सेक्स में जल्दी से तो कभी संतुष्ट हो ही नहीं सकती। स्त्रियों को सेक्स में संतुष्ट कर पाना किसी भी पुरुष के लिये दु:ससाध्य कार्य होता है। पुरुष जितना उतावना हेाता है स्त्रियां उतनी ही सहज शांत, स्थिर, संतुलित, अनुद्विग्न बनी रहती है।
स्त्रियां सेक्स में हर बार विशिष्ट अनुभव करना पसंद करती हैं। सेक्स के हर अनुभव को जादुई व यादगार बनाना चाहती है। सीधे सेक्स की मुख्य कार्य पर न पहुंचकर पुरुष को चाहिये की पर्याप्त संयम में रहकर समय लें और स्त्रियों को भी सेक्स की मुख्य कार्य के लिये तत्पर होने का अवसर दें। अधिक से अधिक काम कलाओं में वक्त दें। संभोग तक पहुंचने से पहले पुरुष पूरी तरह निश्चितकर लें कि स्त्री पूरी तरह कामोतेजित हो चुकी हो और वह स्वयं भी सम्पूर्णत: उतेजित हो चुका हो। सेक्स में स्लोनेस ही सौन्दर्य है। जल्दबाजी को भी समय की आवश्यकता होती है यह बात सेक्स में ही लागू होती है। योनि मर्दन रुक-रुक कर धीरे धीरे गिन गिनकर लंबे समय तक जारी रखना ही स्त्रियों को क्लाइमेक्स तक पहुंचाता है। पुरुष को संभोग के दौरान अपनी सांसों पर नियंत्रण पाने में कुशलता प्राप्त कर लेता है वह सेक्स का महारथी बन जाता है।