रैगिंग के मामले में यूपी दूसरे स्थान पर

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लखनऊ। यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन यूजीसी की ओर से यूनिवर्सिटी व कॉलेजों में रैगिंग के मामलों लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। पीछे कुछ सालों के दौरान स्टेट के कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में रैगिंग की घटनाएं काफी बढ़ गई है पर स्टेट गवर्नमेंट और शिक्षण संस्थाएं केवल नाम के लिए एंटी रैगिंग कमेटी का गठन कर अपना पीछा छुड़ा रही है। यूजीसी ने सभी उच्च शिक्षा विभाग, यूनिवर्सिटी और कॉलेजों को रैगिंग की घटनाओं को रोकने के लिए उचित कदम उठाने के निर्देश जारी किए हैं लेकिन हर साल केवल कॉलेजों पर ही रैगिंग रोकने की कार्रवाई पूरी कर जिम्मेदारी से पूरी कर ली जाती है। इस का नतीजा है कि रैगिंग के मामले में प्रदेश का नंबर पूरे देश में दूसरा है वह पहले नंबर पर स्थित पश्चिम बंगाल से केवल एक मामले में पीछे है।
यूजीसी की ओर से जारी सूचना के अनुसार पूरे देश में रैगिंग के मामले में सबसे अधिक घटना पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से मिली है। साल 2015 में उत्तर प्रदेश के विभिन्न यूनिवर्सिटी, डिग्री कॉलेज, मैनेजमेंट व इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट से करीब 44 मामले दर्ज हुए है। वहीं पश्चिम बंगाल में इस साल अभी तक 45 रैगिंग के मामले सामने आ चुके है। यह वह आकड़े है जो यूजीसी को प्राप्त हुए है लेकिन रैगिंग के कई ऐसे मामले भी है जो न तो एंटी रैगिंग कमेटी के पास पहुंचे है और न ही यूजीसी के पास।
साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी यूनिवर्सिटी व शिक्षण संस्थानों को रैगिंग को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने के आर्डर जारी किए थे इसके बाद यूजीसी ने देश के स ाी यूनिवर्सिटी व शिक्षण संस्थानों को सर्कुलर जारी कर एंटी रैगिंग कमेटी बनाने को कहा था। इस कमेटी का काम स्टूडेंट्स के बीच रैगिंग की जानकारी देने व इसे रोकने के लिए स त कदम उठाने थे पर यूजीसी व सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी यह कमेटी केवल कागजों तक सीमट कर रह गई है। 2009 में सख्त काननू के आदेश जारी होने के बाद से अभी तक उत्तर प्रदेश में रैगिंग के 592 मामले सामने आ चुके है। जो पूरे देश में किसी भी स्टेट के तुलना में सबसे अधिक है।